इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेवायतों ने कहा- नहीं देंगे धन, सरकारी हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं

मथुरा के श्री बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामला : इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेवायतों ने कहा- नहीं देंगे धन, सरकारी हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेवायतों ने कहा- नहीं देंगे धन, सरकारी हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं

Google Image | Allahabad High Court

Prayagraj News : इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्री बांके बिहारी मंदिर मथुरा गलियारा (कॉरिडोर) मामले में सुनवाई के दौरान सेवायतों की तरफ से कहा गया गया कि मंदिर प्रबंधन कॉरिडोर के लिए न तो धन देगा और न ही मंदिर के कामकाज में सरकार के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को स्वीकार किया जाएगा। यदि सरकार कुछ बेहतर करना चाहती है तो वह अपने स्तर से करे। मंदिर के चढ़ावे का इस्तेमाल न करें। सेवायतों को सरकार का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है।

अदालत ने पूछा काशी कॉरिडोर पर कितना खर्च हुआ
मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य सरकार से पूछा है कि वह मंदिर के पैसे को छोड़कर अन्य कोई तरीका बताए कि किस प्रकार कॉरिडोर का निर्माण संभव हो सकेगा। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि कॉरिडोर बनाने में कितना खर्च आएगा और इसका इंतजाम वह (सरकार) किस प्रकार से करेगी? यह भी पूछा है कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने में कितना धन खर्च हुआ था।

ट्रस्ट बना तो सरकार भी कर सकती है अंशदान
राज्य सरकार का पक्ष रख रहे अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि यदि एक ट्रस्ट बना दिया जाए तो उसमें सरकार भी अंशदान दे सकती है, लेकिन मंदिर सेवायतों को ट्रस्ट का प्रस्ताव मंजूर नहीं था। अपर महाधिवक्ता का कहना था कि जमीन अधिग्रहण में लगभग 100 करोड़ रुपये खर्च होंगे और अन्य धनराशि भी लगेगी, जिसका इंतजाम मंदिर में आने वाले चढ़ावे और सरकारी सहयोग द्वारा मिलकर किया जा सकता है। इस पर कोर्ट का कहना था कि सरकार अपनी ओर से क्या करेगी, इस बारे में जानकारी दे। अपर महाधिवक्ता ने कहा कि बेहतर हलफनामा दाखिल करने के लिए उन्हें और समय चाहिए। तब कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि पांच अक्टूबर नियत कर दी।

कोर्ट ने दोनों पक्षों पूछा समाधान
श्री बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं को भीड़ से होने वाली असुविधा व अप्रिय घटनाओं को देखते हुए राज्य सरकार ने गलियारा (कॉरिडोर) बनाने का प्रस्ताव दिया है। सरकार चाहती है कि मंदिर में आने वाले चढ़ावे की रकम से कॉरिडोर का निर्माण किया जाए, लेकिन मंदिर के सेवायतों का कहना है कि मंदिर उनकी प्राइवेट संपत्ति है। इसमें सरकार का किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों को इस मसले का समाधान बताने के लिए कहा है।

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