Tricity Today | Yogi Adityanath, Narendra Modi and Amit Shah
UP News : उत्तर प्रदेश को लेकर राजनीतिक गलियारों से बड़ी खबर सामने आ रही है। खबर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर है। बताया जा रहा है कि टीम गुजरात की आंखों में योगी बाबा कांटे की तरह खटकने लगे हैं। सूत्रों का यहां तक कहना है कि योगी बाबा की कार्यशैली और उनके चहेते अफसरों को भी अब दिल्ली की नजर लग चुकी है। बताया जा रहा पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत में कुछ बड़ा होने की आशंका जताई जा रही है। जानकारों का मानना है कि अगर ऐसा होता है तो बीजेपी के लिए यह आत्मघाती कदम सिद्ध होगा।
समस्या की जड़, मोदी के बाद की दौड़
पीएम नरेंद्र मोदी के बाद आज के वक्त की बात करें तो योगी आदित्यनाथ हिन्दुत्व के सबसे बड़े ब्रांड अंबेसडर हैं। गाहे बगाहे बाबा के समर्थक यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं कि नरेंद्र मोदी के बाद बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के वे ही विकल्प हैं। यही बात मोदी-शाह को खटकने लगी है। योगी समर्थकों का कहना है कि मोदी को हर जगह सिर्फ अपना ही चेहरा चाहिए और केंद्र सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले अमित शाह खुद को मोदी के बाद अगले पीएम के तौर पर देखते हैं। ऐसे में मोदी-शाह अपने से बड़े कद को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।
बाबा का विरोध फिर भी राजभर को एंट्री
घोसी उपचुनाव से पहले सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर को यूपी में एनडीए गठबंधन का सहयोगी और सपा के विधायक दारा सिंह को इस्तीफा दिलाकर भाजपा में शामिल करने के पीछे टीम गुजरात की रणनीति लोकसभा चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना रहा हो। किन्तु, बाबा को उनका आना किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं था। फिर भी दिल्ली दरबार ने ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान को शामिल किया। साथ ही घोसी उपचुनाव में जीत दर्ज करने के लिए लगाया। इसमें कई केबिनेट मंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री, विधायकों और संघ के लोगों ने घोसी में डेरा डाल दिया, किन्तु विजयश्री भाजपा की दहलीज से कोसों दूर ही दिखी।
फिर टीम गुजरात से टकरा गए बाबा
एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनाते वक्त ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह को यूपी केबिनेट में शामिल करने का वादा किया गया था। किन्तु, बाबा की तरफ से इस तरह की कोई चर्चा तक नहीं की गई। दिल्ली दरबार से दोनों नेताओं के लिए नवरात्र से पहले फिर दिवाली के बाद मंत्रिमंडल के विस्तार की बात कही गई। बीते दिनों ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह ने वादा पूरा होता न देख एक बार फिर दिल्ली दरबार में हाजरी लगाई। किन्तु, बाबा ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया जाएगा। योगी आदित्यनाथ केंद्र सरकार या बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के रबर स्टैंप की तरह नहीं रहना चाहते और अपनी इस मंशा को केंद्रीय नेतृत्व को स्पष्ट भी कर देना चाहते हैं।
योगी की कसम बनी मजबूरी
कहा जाता है कि बाबा ने सीएम बनने के बाद यूपी के तीन बड़े मुस्लिम चेहरों को मिट्टी में मिलाने की कसम खाई थी। जिसे बाबा काफी हद तक पूरी कर चुके हैं। पहला चेहरा अतीक अहमद सल्तनत खत्म, इस दुनिया से ही रुखसत। दूसरा चेहरा सपा के कद्दावर नेता आजम खां की जो दुर्गति हुई है वह किसी से छिपी नहीं है। तीसरा चेहरा मुख्तार अंसारी की हालत बाबा ने ऐसी कर दी है कि वह भी पानी मांगने लगा है। किन्तु, ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा से मुख्तार अंसारी का बेटा अब्बास अंसारी अब एनडीए का हिस्सा हो गया है। ऐसे में बाबा लोकसभा चुनावों के दौरान मुख्तार अंसारी के बेटे के साथ मंच कैसे शेयर कर सकते हैं। क्योंकि उन्होंने यूपी से माफियाराज पूरी तरह खत्म करने की कसम खाई है तो उसका क्या होगा?
बाबा के पर कतरने की तैयारी
दिल्ली दरबार की टीम गुजरात को बाबा की ना नागवार गुजरी है। ऐसे में दिल्ली के सूत्रों का कहना है कि पांच राज्यों के चुनावी रिजल्ट यानी तीन दिसंबर के बाद यूपी में कुछ बड़ा होने जा रहा है। कहा जा रहा है कि टीम गुजरात ने बाबा और उनके चहेते अफसरों पर जांच बैठा दी है। बाबा के यूपी को भष्टाचार मुक्त होने के दावे की भी हवा निकालने की खुद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने तैयारी कर ली है। नवनिर्मित बुंदलेखंड एक्सप्रेस वे और पूर्वांचल एक्सप्रेस वे धंसने की खबर ने इनके निर्माण में भष्टाचार होने की पुष्टि कर दी है। जिसको लेकर दिल्ली दरबार ने जांच बैठा दी। बता दें कि इन दोनों ही एक्सप्रेस वे का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी ने किया था।
पहले भी टकरा चुके हैं योगी
इससे पहले रिटायरमेंट से महज कुछ दिन पहले इस्तीफ़ा देकर बीजेपी में शामिल होने वाले साहेब के पसंदीदा ब्यूरोक्रेट अरविंद शर्मा को बीजेपी ने यूपी विधान परिषद के ज़रिए सदन में भेज दिया था। इसको लेकर राजनीतिक गलियारों में राज्य सरकार में 'बड़े बदलाव' की तैयारी की बात की जा रही थी। उनके डिप्टी सीएम या फिर गृह मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभागों के साथ कैबिनेट मंत्री बनने की चर्चाएं थीं। लेकिन, बाबा तो बाबा हैं। अरविंद शर्मा को बाबा न तो मंत्रिपरिषद में जगह दी और न ही कोई अन्य महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी। बाबा ने साफ़ तौर पर कह दिया है कि अरविंद शर्मा को कोई महत्वपूर्ण विभाग तो छोड़िए, कैबिनेट मंत्री भी बनाना मुश्किल है। राज्यमंत्री से ज़्यादा वो उन्हें कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं।
योगी की ताक़त के पीछे आरएसएस
यूपी बड़ा राज्य है। यहां का मुख्यमंत्री ख़ुद को अगले प्रधानमंत्री के तौर पर देखने ही लगता है। चाहे वो क्षेत्रीय दलों के नेता हों या फिर बीजेपी के। दूसरे, योगी आदित्यनाथ के साथ संघ है। तमाम विरोधों के बावजूद संघ की वजह से ही वो मुख्यमंत्री बने थे और अभी भी वो संघ की पहली पसंद हैं।
योगी को हटा भी नहीं पा रही बीजेपी
मंत्रियों, विधायकों की जिस तरह की शिकायतें हैं कि उन्हें कोई महत्व नहीं दिया जाता है, सिर्फ़ कुछ चुनिंदा अधिकारी ही पूरी सरकार चला रहे हैं, ऐसे में यह तो तय है कि योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली को लेकर संघ और बीजेपी में मंथन शुरू हो गया है। यह भी सही है कि योगी आदित्यनाथ की ओर से भी अपनी ताक़त का एहसास कराया जाता रहता है। अब यह स्थिति है कि बीजेपी योगी को हटा भी नहीं पा रही है और उनके नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रही है।
उल्टा न पड़ जाए ये दांव
भाजपा का गुजरात के बाद अगर कोई सबसे मजबूत किला है तो वह उत्तर प्रदेश ही है। सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अब हिन्दुत्व के बड़े नाम और ब्रांड बन चुके हैं। ऐसे में राजनीतिक जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव से पहले योगी बाबा से छेड़छाड़ ठीक नहीं है। माना जा रहा है कि अगर बाबा से छेड़छाड़ हुई तो इसका असर पूरी पूर्वांचल बेल्ट पर पड़ेगा। दूसरा, इस वक्त पश्चिम यूपी में किसान आंदोलन और आरक्षण की मांग को लेकर किसान और जाट दोनों ही टीम गुजरात से नाराज चल रहे हैं। तो कहा जा रहा है टीम गुजरात का यह कदम घातक सिद्ध हो सकता है।