जैविक खेती के गुर सिखा रही है योगी सरकार, खुशहाल किसान बनाएंगे प्रदेश को उन्नत, जानें कैसे

प्रशिक्षण : जैविक खेती के गुर सिखा रही है योगी सरकार, खुशहाल किसान बनाएंगे प्रदेश को उन्नत, जानें कैसे

जैविक खेती के गुर सिखा रही है योगी सरकार, खुशहाल किसान बनाएंगे प्रदेश को उन्नत, जानें कैसे

Google Image | प्रतीकात्मक फोटो

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली राज्य सरकार किसानों को जैविक खेती करने के नुस्खे सिखा रही है। सरकार चाहती है कि किसान जैविक खेती के जरिए कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमा सकें। साथ ही उर्वरकों की भारी मांग में भी कमी आएगी। फसलों की गुणवत्ता में भी प्राकृतिक तत्तों की भरपुर मात्रा मौजूद रहेगी। केंद्र सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। सरकार कई तरह की आर्थिक और प्रेरित करने वाली योजनाएं चला रही है। केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ ने भी प्रदेश के किसानों के लिए एक मुहिम शुरू की है। संस्थान 10 किसान उत्पादक समूहों को करीब 200 हेक्टेयर खेत में जैविक कृषि करने संबंधी प्रशिक्षण दे रहा है।

जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक वर्मी कंपोस्ट, बॉयोडायनेमिक एवं नाडेप खाद तथा बॉयो-इन्हानसर को बनाने का प्रशिक्षण किसानों के खेत में ही दिया जा रहा है। किसानों की जमीन का पीजीएस के माध्यम से प्रमाणीकरण कराने का कार्य किया जा रहा है, जिससे उन्हें देश के विभिन्न भागों में प्रमाणित जैविक उत्पादों को बेचने में सुविधा मिलेगी। किसानों को फसल तैयार होने पर उत्पाद की ग्रेडिंग, पैकिंग, ब्रॉडिंग और मार्केटिंग की ट्रेनिंग भी दी जाएगी। प्रशिक्षण के लिए 1० जैविक उत्पादन समूहों के प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है। यह जैविक उत्पादक समूह बाराबंकी, बांदा और हमीरपुर जिलों में हैं। संस्थान इन समूहों को उनके पैतृक जिलों में ही प्रशिक्षण दे रहा है। प्रशिक्षण मिलने के बाद किसान कम लागत में ज्यादा उत्पादान का लाभ ले सकेंगे। किसानों का मुनाफा भी बढ़ेगा।

प्रशिक्षण संस्थान के वैज्ञानिकों ने बाराबंकी के शैली किरतपुर गांव में नया प्रयोग किया गया है। यहां 21 पंजीकृत किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। किसानों को जरूरी जैविक उत्पादन के लिए आवश्यक वस्तुएं जैसे नीम की खली, स्प्रेयर, स्टिकी इंसेक्ट ट्रैप, नीम का तेल, वर्मी कंपोस्ट बेड और केंचुए प्रदान किए गए। संस्थान ने एक विशेष तरह के जैविक इनपुट सीआईएसएच-बॉयो-इन्हानसर विकासित किया है। इसे छोटे और सीमांत किसानों के बीच में वितरित किया गया। इससे किसान मिट्टी का स्वास्थ्य सुधार सकेंगे और जैविक उत्पादन में बेहतर उपज प्राप्त कर सकें। यह एक विशेष प्रकार का फॉर्मूलेशन है, जिसमें परंपरागत रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले पंचगव्य, वर्मीवाश अमृतवाणी और काऊ पेटपिट के लाभकारी बैक्टीरिया का समावेश किया गया है।
      
संस्थान के निदेशक डॉ शैलेंद्र राजन ने प्रशिक्षण का उद्घाटन करते हुए बताया कि व्यावसायिक और सफल जैविक उत्पादन के लिए हमें अपनी सोच में परिवर्तन करना पड़ेगा। बागवानी फसलों में जैविक उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। फसल का सही चुनाव और अच्छी मात्रा में उत्पादन करके मार्केटिंग में सफलता हासिल की जा सकती है। अच्छी मार्केटिंग के जरिए जैविक उत्पादों से प्राप्त होने वाली आय में जोखिम को कम किया जा सकता है। कृषि वैज्ञानिक डॉ राम अवध राम ने परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत कई तरह के जैविक इनपुट्स के उत्पादन को प्रदर्शित किया। वैज्ञानिक डॉ आशीष यादव ने इस ट्रेनिंग प्रोग्राम का संयोजन किया। डॉ आशीष ने किसानों को जैविक उत्पादन की विशेष तकनीकी एवं सावधानियों से अवगत कराया।

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