Tricity Today | रामलीला मैदान में रावण दहन की तैयारियां तेज
लखनऊ : देश भर में दशहरा की धूम है। हर साल इसे नवरात्र के 10वें दिन ही मनाया जाता है। भारत के कोने-कोने में अलग-अलग तरीकों से लोग इस पर्व को मनाते हैं और लंकापति राणव का पुतला दहन करते हैं। इस बार दशहरा 15 अक्टूबर यानी शुक्रवार को है जिसको लेकर रामलीला समिति ने रावण दहन को लेकर अंतिम तैयारियाँ कर ली हैं। इस बार ऐशबाग रामलीला मैदान में 80 फ़ीट के रावण का दहन होगा। जिसको लेकर कारीगर रावण के पुतले को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। बता दें कि बहुत सारे अच्छे काम लंकापति रावण ने किए थे जिसके चलते उनकी पूजा होती हैं। इसके बाद पुतला खड़ा करते हैं।
इन स्थानों पर होगा रावण दहन
इसके अलावा अलीगंज में दशहरे के मेले में जवाबी आतिशबाजी होगी शहर में ऐशबाग रामलीला मैदान, खदरा मौसम गंज, सदर, राजाजीपुरम, मानक नगर, महानगर, अलीगंज, चिनहट, महोना, निगोहा समेत कई अन्य स्थलों पर चल रही रामलीला और मेलों में रावण वध का मंचन और पुतला दहन किया जाएगा।
अच्छे कामों की वजह से रावण की होती है पूजा
श्री रामलीला समिति ऐशबाग के सचिव पंडित आदित्य द्विवेदी ने बताया कि जब हम रावण बनाते हैं और उसको खड़ा करते हैं तब उसकी पूजन होता है क्योंकि वह ब्राह्मण कुल के थे रावण के अंदर सिर्फ एक अवगुण था जो उन्होंने सीता जी का हरण किया। लेकिन बहुत सारे अच्छे काम लंकापति रावण ने किए थे जिसके चलते हम लोग उनकी पूजा करते हैं। इसके बाद पुतला खड़ा करते हैं और फिर उनकी बुराई का दहन करते हैं। हालांकि कोरोना काल का असर रावण दहन में देखने को मिल रहा है क्योंकि पहले बहुत ही ज्यादा भव्यता रहती थी। इसी वजह से प्लाईवुड का 121 फीट का बहुत ही बड़े आकार का पुतला बनाया जाता था।
सामाजिक कुरीति का होता है दहन
उन्होंने बताया कि हर वर्ष रावण के पुतले पर एक बुराई लिखी जाती है। इसीलिए गौ हत्या पर रावण जलाया, घोटालों पर रावण जलाया, नारी उत्पीड़न का रावण जलाया, भ्रष्टाचार पर रावण जलाया उसपर आज सरकार काम कर रही है। इस तरह से सामाजिक कुरीति का दहन करते हैं जिससे यह कुरीतियां समाज से और जनता के बीच से खत्म हो जाएं। उन्होंने कहा कि कोरोना गाइडलाइंस को ध्यान में रखते हुए जिनका वैक्सीनेशन हो चुका है सिर्फ वही रावण दहन का आनंद लेने आए लेकिन फिर भी अगर कुछ बच्चे जिद करते हैं तो उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते लाए। यहां आने की अनुमति है लेकिन कोविड प्रोटोकॉल के तहत ही आ सकते हैं।
ढांचे को खड़ा करना सबसे बड़ी चुनौती
कारीगर राजू ने बताया कि रावण का पुतला बनाने से पहले बांस और औज़ारों की पूजा की जाती है, और जब पुतले का निर्माण शुरू किया जाता है तब एक बार फिर औज़ारों की पूजा की जाती है। सबसे पहले बांस की सहायता से रावण कि ढाँचा तैयार किया जाता है, फिर उनको ढँकने के लिए पतंगी काग़ज़ कि इस्तेमाल किया जाता है। राजू ने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती ढाँचे को रामलीला ग्राउंड में खड़े करने की होती है। इस बार ऐशबाग में 80 फीट ऊंचा रावण का पुतला बनेगा और 15 अक्टूबर को दहन होगा।