कानपुर कांड में बड़ा खुलासा, विकास दुबे ने 22 साल पुरानी रंजिश के चलते सीओ देवेंद्र मिश्रा की हत्या की, पढ़िए पूरा मामला

Tricity Today | सीओ देवेंद्र मिश्रा और विकास दुबे



कानपुर कांड में बड़ा खुलासा हुआ है। यह खुलासा उज्जैन पुलिस ने किया है। दरअसल गुरुवार को उज्जैन में गिरफ्तारी के बाद विकास दुबे से पूछताछ हुई थी। उस पूछताछ में विकास दुबे ने पुलिस को बताया कि डीएसपी देवेंद्र मिश्रा और उसका आमना-सामना 22 साल पहले भी कानपुर में हुआ था। उस दिन भी दोनों ने एक-दूसरे पर गोलियां चलाई थीं, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। दोनों के फायर मिस हो गए थे। दोनों के बीच भिड़ंत हुई थी। 22 साल बाद एक बार फिर 2 जुलाई की रात देवेंद्र मिश्रा और विकास दुबे उसी हालत में आमने-सामने आ गए और इस बार विकास दुबे ने 22 साल से चली आ रही रंजिश का बदला लेने के लिए देवेंद्र मिश्रा की हत्या कर दी।

पुलिस पूछताछ में विकास दुबे ने बताया कि दिसंबर 1998 में कानपुर की कल्याण पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। उस समय विकास दुबे बिकरु गांव का प्रधान था। विकास दुबे और कल्याणपुर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर हरिमोहन यादव के बीच भिड़ंत हुई थी। विकास दुबे और इंस्पेक्टर के बीच जमकर मारपीट हुई थी। उस समय देवेंद्र मिश्रा बतौर सिपाही कल्याणपुर थाने में तैनात थे। जब विकास और हरिमोहन यादव के बीच मारपीट हो रही थी तो देवेंद्र मिश्रा ने विकास पर गोली चला दी थी। लेकिन विकास दुबे की किस्मत अच्छी थी और देवेंद्र मिश्रा का फायर मिस हो गया था। 

इसके जवाब में विकास ने भी देवेंद्र मिश्रा पर फायर किया था, लेकिन विकास दुबे का फायर भी चूक गया था। उस दिन कल्याणपुर पुलिस ने विकास दुबे को गिरफ्तार किया और उसके कब्जे से 30 पुड़िया स्मैक और अवैध असलहा बरामद किया था। विकास मिश्रा के खिलाफ इस मामले में एनडीपीएस एक्ट, आर्म्स एक्ट और आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज करके पुलिस ने उसे जेल भेजा था।

वक्त बीतता गया और देवेंद्र मिश्रा परीक्षा पास करके कंस्टेबल से सब इंस्पेक्टर बन गए। देवेंद्र मिश्रा की गिनती उत्तर प्रदेश पुलिस के तेजतर्रार अफसरों में होती थी। देवेंद्र मिश्रा मार्च 2020 में रिटायर होने वाले थे। वह मूल रूप से बांदा जिले के महेवा गांव के रहने वाले थे। उनके परिवार में पत्नी आस्था और दो बेटियां वैष्णवी व वैशरादी हैं। उनकी बड़ी बेटी मेडिकल की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही है। वहीं, छोटी बेटी 12वीं की छात्रा है। पिता की मौत पर वैष्णवी ने बयान दिया था कि वह मेडिकल की परीक्षा छोड़कर पुलिस अफसर बनने के लिए तैयारी करेगी।

देवेंद्र मिश्रा का परिवार अभी कानपुर के स्वरूप नगर में पामकोर्ट अपार्टमेंट में रह रहा है। देवेंद्र मिश्रा कानपुर के मूलगंज, रेल बाजार, नजीराबाद, बर्रा और किदवई नगर समेत कई थानों में एसएचओ रह चुके हैं। वर्ष 1980 में बतौर सिपाही उत्तर प्रदेश पुलिस में भर्ती हुए थे। 1999 में वह सब इंस्पेक्टर बने और 2007 में उन्हें बतौर इंस्पेक्टर प्रोन्नत कर दिया गया था। 2016 में वह डीएसपी बने और गाजियाबाद जिले के मोदीनगर सर्किल के क्षेत्राधिकारी तैनात किए गए थे। इसके बाद देवेंद्र मिश्रा का तबादला एक बार फिर कानपुर कर दिया गया और उन्हें पहले स्वरूप नगर का सीओ बनाया गया था। करीब 2 साल पहले वह बिल्हौर के सीओ बनाकर भेजे गए थे। और इस तरह एक बार फिर नियति ने 22 वर्ष बाद विकास दुबे और देवेंद्र मिश्रा को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया था।

देवेंद्र मिश्रा की इस पेशेवर यात्रा के दौरान विकास दुबे पहले जैसा छोटा-मोटा बदमाश नहीं रह गया था। अब उसके मजबूत राजनीतिक तालुकात बन चुके थे। इस दौरान वह भारतीय जनता पार्टी के दर्जा प्राप्त मंत्री संतोष शुक्ला की हत्या करके अपना दबदबा पूरे इलाके में कायम कर चुका था। वह और उसकी पत्नी जिला पंचायत के सदस्य रह चुके थे। तमाम नेता मंत्री और विधायक उससे मदद ले रहे थे। देवेंद्र मिश्रा लगातार विकास दुबे पर दबाव बना रहे थे। दूसरी ओर चौबेपुर थाने की पुलिस विकास दुबे से मुरव्वत बरत रही थी। इसके बारे में देवेंद्र मिश्रा ने लिखाई-पढ़ाई तक कर डाली थी। जिसकी वजह से विकास दुबे एक बार फिर 22 साल पुरानी रंजिश को याद कर बैठा था।

विकास दुबे ने उज्जैन पुलिस को बताया की सीओ देवेंद्र मिश्रा उसे पसंद नहीं करते थे। वह भी सीओ देवेंद्र मिश्रा को पसंद नहीं करता था। हालांकि विकास दुबे ने कहा था कि उसने सीओ की हत्या नहीं की है। सीओ को उसके गैंग के लोगों ने मारा है।

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