Tricity Today | प्रतीकात्मक फोटो
नए शिक्षण सत्र की पहली तिमाही में फीस माफ करने की मांग को लेकर अभिभावकों ने रविवार को एक बार फिर सोशल मीडिया पर आवाज बुलंद की है। रविवार की दोपहर पूरे दिल्ली एनसीआर के अभिभावकों ने एक साथ मिलकर ट्विटर पर कैंपेन रन किया। जिसमें महज 2 घंटों में 35,000 से ज्यादा ट्वीट किए गए हैं। अभिभावकों का हैशटैग टॉप 10 तक पहुंच गया। इस अभियान में नोएडा, ग्रेटर नोएडा, ग्रेटर नोएडा वेस्ट, गाजियाबाद, दिल्ली, गुड़गांव और फरीदाबाद तक की पेरेंट्स एसोसिएशन ने भाग लिया।
ग्रेटर नोएडा वेस्ट में फ्लैट खरीदारों की संस्था नेफोवा ने के अध्यक्ष अभिषेक कुमार ने कहा, "रविवार को तीसरी बार सभी स्कूल अभिभावकों और कई अभिभावक संघ के साथ मिलकर नेफोवा ने फीस माफी को लेकर ट्विटर पर महा अभियान चलाया। लगातार जा रही नौकरी, ठप व्यापार और घटती सैलरी से परेशान अभिभावकों ने ट्विटर के माध्यम से सरकार से अपील की कि स्कूल फीस में राहत मिले। 35,000 से ज़्यादा ट्वीट करके अभिभावकों ने अपना दर्द रखा सामने। रविवार के ट्विटर अभियान में दो हैशटैग को एक साथ चलाया गया। इनमें पहला #NoSchoolNoFees और दूसरा #WaiveSchoolFees हैं।"
अभिषेक कुमार ने कहा, "इन दोनों हैशटैग के साथ लगभग 35 हजार से ज्यादा ट्वीट किए गए हैं। ट्विटर के ग्राफ रिपोर्ट के अनुसार रविवार का अभियान लगभग 25 लाख लोगों तक अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहा है। यदि हम सभी तीन अभियानों को एकसाथ शामिल करेंगे और उसके ग्राफ रिपोर्ट के अनुसार यह लगभग 55 लाख लोगों अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रहा है। हालांकि, आज मदर्स डे था, फिर भी दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में ट्विटर के टॉप ट्रेंड में हमारा अभियान शामिल हुआ। इंडिया रैंकिंग में टॉप 15 में पहुंच गया था।"
नेफोवा अध्यक्ष अभिषेक कुमार का कहना है कि जब तक सरकार हमारी फीस माफी के मांग को पूर्ण रूपेण नहीं मानती है, तब तक इसी तरह से हम आगे भी अभिभावकों की मांग को ट्विटर पर उठाते रहेंगे। आशा करते हैं कि सरकार सभी अभिभावकों के दर्द को समझेगी। जल्द से जल्द सकारात्मक कदम उठाते हुए लोगों के हितों के लिए जरूर फैसला लेगी।
फीस माफी अभियान से जुड़े ग्रेटर नोएडा वेस्ट के प्रकाश कोटिया ने कहा, "हम लोग लगातार अपना मुद्दा उठाते रहेंगे। हम ट्विटर, फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगातार जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदार सरकारी अफसरों से सवाल पूछ रहे हैं। अपनी मांग को उनके सामने दोहरा रहे हैं। रविवार को ट्विटर पर एक साथ पूरे दिल्ली-एनसीआर की पेरेंट्स एसोसिएशन एकजुट होकर शामिल हुईं। हमारा तर्क है कि जब स्कूल का फर्नीचर, बिल्डिंग, बिजली और कोई भी इंफ्रास्ट्रक्चर इस्तेमाल नहीं हो रहा है तो स्कूल पूरी फीस किस आधार पर ले सकते हैं। हम लोग तो केवल चालू शिक्षण सत्र की पहली तिमाही की फीस माफ करने की मांग कर रहे हैं। हमारे बहुत सारे साथी अभिभावक तो आधी फीस खत्म करने की मांग कर रहे हैं।"
प्रकाश कोटिया ने आगे कहा, "एक तरफ कोई ऐसी कंपनी नहीं है जो सैलरी में कटौती नहीं कर रही है। ऊपर से लोगों की नौकरी जाने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में स्कूल फीस घटाने की वजह बढ़ाने पर तुले हुए हैं। पूरे दिल्ली-एनसीआर के अभिभावक एकजुट हैं। ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। जरूरत पड़ेगी तो हम सब मिलकर कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। अभी तक उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले में तीन शासनादेश जारी कर चुकी है। लेकिन उनसे अभिभावकों को रत्ती भर भी फायदा नहीं हुआ है। स्कूल बदस्तूर अपनी मनमानी कर रहे हैं। जिला प्रशासन और सरकार के आदेशों का उन पर कोई असर नहीं है।"
रविवार के इस अभियान में नोएडा ऑल स्कूल पेरेंट्स एसोसिएशन ने भी भाग लिया। एसोसिएशन के अध्यक्ष यतेंद्र कसाना ने कहा, हम लोगों ने जिला प्रशासन, उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को पत्र भेजे हैं। अभिभावकों का तर्क बिल्कुल जायज है। फीस बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है। स्कूलों को फीस घटाने चाहिए। हम लोगों ने पहली तिमाही की फीस खत्म करने की मांग की है। ट्विटर और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिए हम अपनी मांग सरकार तक पहुंचाने का भरपूर प्रयास कर रहे हैं। अगर स्कूल अपनी मनमानी पर अड़े रहेंगे तो हम लोग कोर्ट भी जाएंगे। अदालत को बताएंगे कि यह सारे स्कूल नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर चलने वाली संस्थाओं ने खड़े किए हैं। इनके पास करोड़ो रुपए की एफडी मौजूद हैं। ऐसे संकट वाले समय में अगर स्कूल अभिभावकों को राहत नहीं दे सकते तो फिर सामाजिक संस्थाएं होने का आडंबर क्यों भरा जा रहा है।"
यतेंद्र कसाना ने कहा, "जमीन आवंटन से लेकर टैक्स रिबेट और तमाम तरह की दूसरी छूट सरकारों ने इन स्कूलों को दी हैं। उन सब को खत्म कर देना चाहिए। आज तक शहर के किसी स्कूल ने राइट टू एजुकेशन एक्ट, राइट टू इनफार्मेशन एक्ट और फीस रेगुलेशन एक्ट का पालन नहीं किया है। जिला प्रशासन से शिकायत करने का कोई फायदा नहीं होता है। मेल कर दीजिए या ज्ञापन भेज दीजिए, कोई संज्ञान नहीं लेता है। अगर जिला प्रशासन या फीस रेगुलेशन कमेटी किसी मामले पर संज्ञान ली भी लेती है तो स्कूल आसानी से जवाब नहीं देते हैं। जब अभिभावक दबाव बनाते हैं तो स्कूल बच्चों के नाम काटने की धमकी देने लगते हैं। परीक्षा में फेल करने की घुड़की देते हैं। स्कूलों की पूरी तरह मनमानी चल रही है।"
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