Tricity Today | Dadi Sati Statue
आज ग्रेटर नोएडा के दुजाना गांव में दादी सती के मंदिर पर मेला लगा है। मेले में हजारों लोग पहुंचे। कार्यक्रम में सांसद सुरेन्द्र नागर, स्वास्थ राज्य मंत्री अतुल गर्ग, गन्ना विकास संस्थान के अध्यक्ष नवाब सिंह नागर, विधायक तेजपाल नागर और जेवर के विधायक धीरेंद्र सिंह ने शिरकत की। आखिर दादी सती की क्या कहानी है और वहां हर साल क्यों विशाल मेला लगता है? आइये आज हम आपको यह पूरी कहानी बताते हैं।
दादी सती के मंदिर में लगने वाला मेला 250 वर्षों से अधिक समय से लगता आ रहा है। हर वर्ष धुलकैंडी (रंग के दिन) से अगले दिन यह मेला लगता रहा है। आस्था के इस केंद्र में हजारों लोग पहुंचते हैं। बुधवार को भी श्री गांधी इण्टर कॉलेज में एक कार्यक्रम हुआ।
सांसद सुरेंद्र सिंह नागर ने कहा कि दुजाना गांव का सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में बहुत योगदान रहा है। उनके पिता स्वर्गीय वेदराम नागर के नाम पर जो स्टेडियम बना हुआ है जल्द ही उसका सौंदर्यकरण कराया जाएगा।
गन्ना विकास संस्थान के अध्यक्ष नवाब सिंह नागर ने कहा कि इस गांव से उनका बहुत लगाव रहा है। इस गांव के बुजुर्गों ने हमेशा उन्हें आशीर्वाद दिया है। राज्य मंत्री अतुल गर्ग, विधायक धीरेंद्र सिंह और तेजपाल नागर ने सरकार की योजनाओं के बारे में जनसमूह को बताया और क्षेत्र के पूर्णत: विकास का वादा किया। कार्यक्रम में सभी अतिथियों का मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया।
लोक गीत कलाकार महाशय सतपाल दोसा ने लोकगीत प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में भाजपा के जिला अध्यक्ष विजय भाटी, मयंक गोयल, अनिल नागर, अजीत मैनेजर, डॉ. वीरेंद्र कसाना, पवन बबली, मुकेश नागर, राधाचरण भाटी, देवा भाटी, प्रोफेसर ज्ञानेंद्र, जगदीश नंबरदार, धनपाल महाशय, ऋषि नागर आदि शामिल रहे।
यह दादी सती मंदिर की कहानी
दुजाना गांव में करीब 264 साल पुराने दादी सती मंदिर में होली के अगले दिन लगने वाले मेले में बड़े-बड़े दिग्गज आते रहे हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, देश में पांच साल पहली गैर कांग्रेसी सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री अटल विहारी बाजपेयी, गुर्जर नेता और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं शामिल रहे राजेश पायलट समेत तमाम राजनेता यहां आए और मंदिर से आशीर्वाद लेकर गए। इस बार भी यहां मेला बुधवार को मेले का आयोजन किया गया है।
यह मेला हर साल लगता है। इस आयोजन में बड़े-बड़े लोग आते रहे हैं। गांव के मेजर रूप सिंह नागर ने बताया कि 10 नवंबर 1963 को पंडित जवाहर लाल नेहरू इस आयोजन में आए थे। जबकि, 1980 में अटल बिहारी वाजपेयी भी यहां आए थे। उन्होंने मंदिर में पूजा-अर्चना भी की थी। चौधरी चरण सिंह, राजेश पायलट सरीखे नेता भी मेले में शिरकत कर चुके हैं। इस गांव के श्री गांधी इंटर कॉलेज में कार्यक्रम होता है।
यहां तिलहेंड़ा (होली के रंग वाले दिन से अगला दिन) पर होने मेले में यूपी के अलावा हरियाणा और राजस्थानी कार्यक्रम होते हैं। मेले में लोगों के खाने-पीने के लिए स्टॉल लगते हैं। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूला आदि लगाए जाते हैं। यहां दूरदराज से लोग आकर प्रसाद चढ़ाते हैं। इसकी तैयारी में ग्रामीण एक महीने पहले ही लग जाते हैं। घरों की भी साफ-सफाई की जाती है। यहां बंब (ढोल-नगाड़े) बजाई जाती हैं।
ऐसे बना गांव में मंदिर
दुजाना गांव में दादी सती मंदिर की स्थापना 264 वर्ष पूर्व की गई थी। मास्टर भूपेन्द्र नागर ने बताया कि दुजाना गांव के भगीरथ सिंह का विवाह हरियाणा के पाली गांव की रामकौर से हुआ था। भगीरथ सेना में कार्यरत थे। विवाह के तुरंत बाद वह बॉर्डर पर अपनी पलटन में चले गए। वहां पर वह शहीद हो गए थे। बताते हैं कि शहीद होने की सूचना मिलने से पूर्व उनकी पत्नी रामकौर को अनिष्ट होने का आभास हो गया था। उन्होंने सती होने का प्रण लिया और आधिकारिक सूचना आने से पहले वह सती हो गई थीं। जहां पर देवी रामकौर ने अग्नि समाधि ली थी, उस स्थान पर गांव के लोगों ने मंदिर का निर्माण किया है।
क्षेत्र के लोगों का कहना है कि दादी सती आज भी यहां साक्षात रूप से विद्यमान हैं। वह न केवल पूरे क्षेत्र की रक्षा करती हैं बल्कि लोगों की मन्नत भी पूरी करती हैं। शुरूआती दौर में इसे नागर गोत्र वाले गुर्जरों का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता था लेकिन वक्त के साथ इसकी मान्यता बढ़ती गई। अब यहां सभी गोत्र के गुर्जर ही नहीं 36 बिरादरी के लोग आस्थावान रहते हैं। मान्यता है कि अगर कोई सच्चे दिल से दादी सती के मंदिर पर मत्थ टेकता है तो उसकी मन की मुराद पूरी होती है। हर चुनाव में यहां सारे उम्मीदवार मन्नत मांगने जरूर आते हैं।
नागर गोत्र के गुर्जरों के लिए यह सामाजिक और राजनीतिक शक्ति का स्थान भी है। यहीं नागर तय करते हैं कि चुनाव में किसे समर्थन करना है। इसके अलावा पूरे क्षेत्र में शादी-ब्याह या कोई भी शुभ कार्य संपन्न करने से पहले और बाद में यहां लोग प्रसाद चढ़ाने, भंडारा करने और ज्योति जलाने आते हैं।