उत्तराखंड की यात्रा : शिव-पार्वती के विवाह स्थल पर हैरान करते हैं ये मंदिर, हजारों वर्षों से नदी में खड़ी है बेजोड़ स्थापत्यकला

न्यूज़ | 3 साल पहले | Pankaj Parashar

Tricity Today | शिव-पार्वती मंदिर



A visit to Uttrakhand : उत्तराखंड को जितना देखो उतना कम है। बागेश्वर जिले में बैजनाथ (Baijnath Temples) के मंदिर बेजोड़ हिंदू स्थापत्यकला के प्रतीक हैं। हजारों वर्षों से यह मन्दिरों का समूह गोमती नदी (Gomati River) में खड़ा है। शायद भूकम्प के झटकों ने मुख्य मन्दिरों में से एक को थोड़ा तिरछा कर दिया है। मन्दिरों के प्राचीर टूट चुके हैं। ज्यादातर में मूर्तियां नहीं हैं। यहां दो मंदिर उल्लेखनीय हैं। एक में भगवान शिव का स्वयम्भू लिंग और माता पार्वती स्थापित हैं। पढ़िए बैजनाथ शहर और वैद्यनाथ मन्दिरों पर पंकज पाराशर की खास रिपोर्ट।



कल-कल करती गोमती नदी का सुरम्य किनारा : बैजनाथ उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के बागेश्वर जिले में गोमती नदी के तट पर एक छोटा सा कस्बा है। यह स्थान प्राचीन शिव-पार्वती मंदिरों के लिए सबसे प्रसिद्ध है। इन्हें भगवान वैद्यनाथ के मंदिर कहते हैं। देवादिदेव महादेव का एक नाम वैद्यनाथ भी है। 


इस मंदिर समूह को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों के रूप में मान्यता दी है। बैजनाथ को भारत सरकार की 'स्वदेश दर्शन योजना' के तहत कुमाऊं में 'शिव हेरिटेज सर्किट' से जोड़ा गया है। जिसमें बैजनाथ के अतिरिक्त 3 देवस्थान और हैं।



पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ : प्रसिद्ध बैजनाथ या वैद्यनाथ (भगवान शिव) के मंदिर गोमती नदी के तट पर हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हें कुमाऊं के कत्यूरी राजा ने लगभग 1,150 ईस्वी में बनवाया था। यह कत्यूरी राजवंश के राजाओं की राजधानी थी। 



बैजनाथ में घूमने के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक बारहवीं शताब्दी में निर्मित यह ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण बैजनाथ मंदिर समूह है। इस मंदिर का महत्व इसलिए है, क्योंकि हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव और पार्वती का विवाह गोमती नदी और गरुड़ गंगा के संगम पर हुआ था।



1,126 मीटर की ऊंचाई पर चिकित्सकों के भगवान वैद्यनाथ को समर्पित हैं मन्दिर : गोमती नदी के किनारे पर खड़े मंदिरों का यह समूह चिकित्सकों के भगवान शिव वैद्यनाथ को समर्पित है। बैजनाथ के मंदिर भगवान शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर, सूर्य और ब्रह्मा की मूर्तियों के साथ निर्मित किए गए थे। कत्यूरी राजाओं ने यह पूरा मंदिर परिसर बनाया गया है। बैजनाथ कस्बे का नाम भी मंदिर के नाम पर पड़ा है। गोमती नदी के बाएं किनारे पर 1,126 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मंदिरों का निर्माण पत्थर से किया गया है। मुख्य मंदिर में पार्वती की एक सुंदर मूर्ति है, जो काले पत्थर में तराशी गई है। करीब 6 फुट ऊंची माता पार्वती की यह मूर्ति एक ही पत्थर से बनाई गई है। कत्यूरी रानी के आदेश से पत्थरों से बनी सीढ़ियों की एक श्रृंखला से नदी के किनारे मन्दिरों तक पहुंचा जाता है।



कई दशकों के दौरान अलग-अलग समय में बनाए गए एक दर्जन से ज्यादा मंदिर : फिलहाल बैजनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी पूर्णगिरी गोस्वामी हैं। उम्र ज्यादा होने के चलते वह आजकल पूजा-पाठ में हिस्सा नहीं ले पा रहे हैं। उनके बेटे त्रिलोकगिरी गोस्वामी मंदिर से जुड़ा कामकाज संभाल रहे हैं। गुरुवार को मंदिर परिसर में पूर्ण गिरी गोस्वामी के नाती पंकज गोस्वामी मिले। जिस वक्त हम लोग मंदिर परिसर में पहुंचे तो पंकज गोस्वामी उत्तराखंड पटवारी परीक्षा की तैयारी के लिए पढ़ाई कर रहे थे।



कत्यूरी राजाओं ने एक ही रात में बनवाया था बामणी का शिव मंदिर : पंकज गोस्वामी ने बताया कि मुख्य मंदिर के रास्ते में महंत के घर के ठीक नीचे बामनी का मंदिर है। किंवदंती है कि मंदिर एक ब्राह्मण महिला द्वारा बनाया गया था और भगवान शिव को समर्पित था। ऐसा माना जाता है कि इसे कत्यूरी राजाओं ने एक ही रात में बनवाया था।



बैजनाथ का है धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व : बैजनाथ को प्राचीन काल में कार्तिकेयपुरा के नाम से जाना जाता था। यह कत्यूरी राजाओं की राजधानी था। जिन्होंने आधुनिक समय के उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं के संयुक्त भागों और आधुनिक नेपाल में डोटी तक मिलाकर पूरे क्षेत्र पर शासन किया था। इस क्षेत्र का पहला राजस्व स्थायी बंदोबस्त करवीरपुर या करबीरपुर नाम का एक कस्बे के तौर पर था। 



इस शहर के खंडहरों का इस्तेमाल कत्यूरी राजा नरसिंह देव ने किया। उन्होंने शहर के खंडहरों का जीर्णोद्धार करके इस्तेमाल अपनी राजधानी स्थापित करने के लिए किया था। लम्बे अरसे तक बैजनाथ कत्यूरी राजवंश की राजधानी बना रहा। जिसने 7वीं से 13वीं शताब्दी ईस्वी तक इस क्षेत्र पर शासन किया था। तब इसे कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था।



उत्तराखंड और नेपाल तक फैला था कत्यूरी साम्राज्य : कत्यूरी साम्राज्य में तब गढ़वाल और कुमाऊं के संयुक्त हिस्से शामिल थे। जो आधुनिक समय के उत्तराखंड में हैं। आधुनिक नेपाल में डोटी क्षेत्र भी कत्यूरी राजाओं के अधिकार में था। संयुक्त कत्यूरी साम्राज्य के अंतिम राजा बिरदेव की मृत्यु के बाद 13वीं शताब्दी में राज्य विघटित होकर 8 विभिन्न रियासतों में बंट गया था। बैजनाथ 1565 तक कत्यूर के शासन में रहा था।



नेपाल के गोरखाओं ने खत्म किया कत्यूरी साम्राज्य : नेपाल के गोरखाओं ने काली नदी के पार पश्चिम की ओर अपने राज्य का विस्तार किया था। गोरखाओं ने अल्मोड़ा पर आक्रमण किया और 1791 में कुमाऊं साम्राज्य और कुमाऊं के अन्य हिस्सों पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने गोरखाओं को हराया था। 1814 में एंग्लो-नेपाली युद्ध हुआ और सुगौली की संधि हुई। जिसके तहत गोरखाओं को कुमाऊं अंग्रेजों को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा था।



अंग्रेजों ने इसे मुकम्मल शहर की शक्ल दी : अंग्रेजों ने प्रशासनिक दृष्टिकोण से पूरे उत्तराखंड को एक मुकम्मल शक्ल दी थी। वर्ष 1901 में ब्रिटिश साम्राज्य ने पूरे भारत में पहली जनगणना करवाई थी। जिसके मुताबिक तब बैजनाथ महज 148 लोगों की आबादी वाला एक छोटा सा गांव था। तब से इसमें बड़ी वृद्धि हुई है। फिलहाल भौगोलिक दृष्टि से बैजनाथ उत्तराखंड में बागेश्वर जिले में बागेश्वर शहर के उत्तर-पश्चिम में 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मुख्य रूप से डीडीहाट-कौसानी-ग्वालदम मार्ग पर है। कौसानी से बैजनाथ कस्बे की दूरी करीब 19 किलोमीटर है। इसकी औसत ऊंचाई 1,130 मीटर (3,707 फीट) है। बैजनाथ कस्बा गोमती नदी के बाएं किनारे पर कुमाऊं हिमालय की कत्यूर घाटी में स्थित है। आसपास के गांवों में डांगोली, गगरीगोल, हाट, टीट बाजार, पुरारा और नोघर आदि शामिल हैं।



नदी और झील में खूबसूरत गोल्डन महाशीर मछलियों का गजब नजारा : वर्ष 2007-08 में मंदिर परिसर के पास एक कृत्रिम झील की घोषणा की गई थी। मकरसंक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी 2016 को उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसका निर्माण पूरा करवाया और इसका उद्घाटन किया था। झील "गोल्डन महासीर" मछलियों से भरी हुई है। गोमती नदी में भी कई तरह की मछलियां देखने को मिलती हैं। हालांकि इस स्थल पर मछली पकड़ना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। झील एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है, जहाँ पर्यटक मछलियों को खाना देते हैं। पास का बाजार गरूर है, जो इस क्षेत्र का सबसे पुराना बाजार माना जाता है। नदी के पास स्थित होने और पौराणिक कथाओं के कारण यह मंदिर हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।



पर्यटकों के लिए खूब सुविधाएं हैं, खुद कार चला कर पहुंच सकते हैं बैजनाथ : बैजनाथ तक उत्तराखंड ट्रांसपोर्ट की बस पहुंचती हैं। हल्द्वानी से रानीखेत और कौसानी होते हुए बैजनाथ खुद कार ड्राइव करके जाया जा सकता है। हल्द्वानी से बैजनाथ की दूरी करीब 160 किलोमीटर है। रास्ते में हरे-भरे पहाड़ और सुरम्य घटियां आपका मन मोह लेंगी। बरसात के तुरंत बाद इन दिनों में जगह-जगह पहाड़ों से बहते झरने देखने को मिलेंगे। यात्रियों के लिए बैजनाथ में राज्य सरकार के पर्यटक स्वागत केंद्र (TRC) में बजट आवास के साथ अच्छी ठहरने और रहने की सुविधा हैं। सभी आधुनिक सुविधाओं के साथ अच्छे कमरे बहुत सस्ती दरों पर उपलब्ध हैं। बैजनाथ से दो किलोमीटर आगे राज्य और रक्षा उपयोग के लिए आपातकालीन लैंडिंग हेलीपैड सुविधा है।



पूरे इलाके में युवाओं की संख्या कम और पेंशनभोगी बुजुर्ग ज्यादा हैं : यहां के निवासियों का मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी और टूरिज्म से जुड़ी दुकानदारी है। सरकारी सेवाओं के पेंशनभोगी, राज्य सरकार के शिक्षक, बैंकर, डाक अधिकारी-कर्मचारी, वन सेवा, कृषि विभाग के सेवानिवृत्त और सेवारत रक्षा कर्मी, छोटे और बड़े दुकानदार हैं। दुकानदार यहां दिन-प्रतिदिन की वस्तुएं उपलब्ध करवाते हैं। चाय की दुकानों के मालिक, कसाई और छोटे पैमाने पर टैक्सी सेवाओं की कमी नहीं है। बैजनाथ के करीब डांगोली में एक बाजार है, लेकिन गरुड़ में मुख्य बाजार है, महज दो किलोमीटर दूर है। हालांकि, बैजनाथ और गरुड़ के बीच कोई फ़ासला नहीं रह गया है दोनों कस्बे आबादी से जुड़ चुके हैं।



बैजनाथ से लगभग 2 किमी दूर भगवती माता कोट भ्रामरी देवी मंदिर या (कोट का मंदिर) का मंदिर है। माँ भ्रामरी का उल्लेख दुर्गा शप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के अंतिम दो पैराग्राफ में उपलब्ध है। हिंदुओं में दुर्गा शप्तशती को गीता और रामायण की बराबर महत्व प्राप्त है। इस मंदिर के बारे में कल विस्तार से जानकारी देंगे।

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