Google Image | विकास दुबे
कानपुर के बिकरू कांड के खूंखार हत्यारे विकास दुबे का किस्सा शुक्रवार की सुबह खत्म हो गया लेकिन उसकी मौत कई सवाल छोड़ गई है। जिसका जवाब विपक्ष मांग रहा है, लेकिन अगर विपक्ष उसके खूनी तांडव में शामिल रहे बदमाश प्रभात के बयान सुन ले तो सिहर जाएगा। उज्जैन से कानपुर लाते वक्त सड़क हादसे एटीएफ के हाथों मारा गया विकास दुबे पल-पल अपनी रणनीति बदलने में माहिर था। वह साथियों पर भी भरोसा नहीं कर रहा था।
थाने में घुसकर भाजपा नेता संतोष की हत्या के बाद जिस तरह पुलिस से बचने के लिए फरारी काटी थी, उसी तरह उसकी योजना इस बार भी थी। उसकी योजना चार माह तक भूमिगत होकर पुलिस को छकाने की थी। फिर मामला ठंडा होते ही सरेंडर करना था। पल-पल रणनीति बदले में माहिर विकास दुबे फरीदाबाद पहुंचा। उसकी दिल्ली मेें सरेंडर करने की योजना परवान नहीं चढ़ी तो मैनपुरी में अपने उसी दोस्त के ठिकाने पर जाने की योजना बनाई, जहां संतोष हत्याकांड में उसने फरारी काटी थी।
फरीदाबाद में पुलिस को चकमा देकर विकास दुबे तो फरार हो गया लेकिन मुठभेड़ में बिकरू कांड में शामिल प्रभात मिश्रा उर्फ कार्तिकेय पकड़ा गया। प्रभात मिश्रा ने फरीदाबाद पुलिस ने पूछताछ के दौरान उसने कई अहम जानकारियां दीं। उन जानकरियों को फरीदाबाद पुलिस ने यूपी पुलिस से शेयर किया है। जिसके बाद यूपी एसटीएफ अमर दुबे के पास तक हमीरपुर पहुंची और उसे वहां ढेर कर दिया।
सीओ को देखकर भड़क गया और जमकर कर खेला खूनी खेल
सूत्रों के मुताबिक फरीदाबाद पुलिस ने प्रभात से जो पूछताछ की, उसमें खूनी खेल की पूरी कहानी सिलेसिलेवार बताई है। उसने बताया कि विकास दुबे ने 2 जुलाई की रात साढ़े बारह बजे के आसपास सभी साथियों को बुलाया। उसमें गांव में ही रहने वाले उसके रिश्तेदार थे और कुछ गांव के लड़के थे। कुछ ने शुरू में आने से मना किया तो कहा कि अगर नहीं आए तो घर में घुस कर गोली मार दूंगा। डर से वह भी विकास के घर पहुंच गए। कुछ समय बाद पुलिस आ गई और फिर फायरिंग शुरू कर दी गई। कई पुलिस वालों पर विकास दुबे और अन्य लोगों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की। फिर उन्हीं पुलिस कर्मियों के हथियारों से गोलियां बरसा दी थीं। सीओ देवेन्द्र मिश्रा, विकास दुबे के सामने वाले घर में छिपे थे। जानकारी मिलने पर विकास दुबे पहुंचा और उनकी टांग में गोली मार दी। जिससे उनकी टांग फट गई। इसके बाद साथियों ने चलने के लिए कहा तो उन्हें गालियां देते हुए सीओ के सिर पर गोली मार दी। जिससे उनका भेजा बाहर आ गया। विकास दुबे पर खून करने का जूनून सवार था।
गांव वालों ने भी उसे समझाना चाहा तो उन्हें भी गाली दी। जब उसका गुस्सा शांत हुआ तो उसने सभी को अलग-अलग भागने के लिए कहा। प्रभात और अमर के साथ वह खुद नदी के पुल की तरफ से सुबह चार बजे के आसपास निकला। अमर दुबे ने फोन करके शुभम को रास्ते में मिलने के लिए बुलाया और इसके बाद विकास ने अमर और प्रभात के फोन के सिम तोड़ दिए थे। फोन भी फेंक दिया था। इसके बाद पौने छह बजे के आसपास वह लोग झिंझक में शुभम पाल के घर पहुंच गए।
खूनी तांडव का पछतावा नहीं, खूब सोया विकास दुबे
सूत्रों के मुताबिक दो दिन तक तीनों लोग शुभम के घर मे रहे और इस दौरान लूटे गए हथियार वहां भूसे के ढेर में छुपा दिए गए। शुभम पाल के घर में दो दिन तक रहने के दौरान वह एक बार भी बाहर नहीं निकले। शुभम जब भी बाहर निकलता तो ताला बाहर से लगा कर निकलता था। दो दिन के दौरान विकास दुबे ने अखबार पढ़े और नहाने के बाद खाना खाया और खूब सोया। उसे खूनी तांडव और आठ पुलिस कर्मियों की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं था। वह बिल्कुल सामान्य सा व्यहार अपने दोनों साथियों के साथ कर रहा था। दो दिन बाद वह फरीदाबाद जाने के लिए निकल गया। शुभम की ओमिनी मारूति कार से वह औरेया तक आए। जहां स्लीपर कोच बस में तीनों सवार होकर फरीदाबाद तक आए। रिश्तेदार के घर एक दिन रुकने के बाद गेस्ट हाउस में अमर और विकास दुबे रहे। बातचीत के दौरान विकास ने गेस्ट हाउस में तय किया कि अब वह मैनपुरी अपने दोस्त रवि पांडेय के घर जाकर रुकेगा। रवि पांडेय का एक घर रोहिणी दिल्ली में भी था, लेकिन वहां जाने की बात नहीं बनी।
रवि पांडेय ने संतोष शुक्ला हत्याकांड में मदद की थी
रवि पांडेय ने संतोष शुक्ला हत्याकांड में भी उसका साथ देते हुए अपने घर पनाह दी थी। अमन दुबे ने हमीरपुर में अपने रिश्तेदार के घर आने की बात कही और प्रभात को भी कही और चले जाने का आदेश विकास दुबे ने दिया। उसने बताया कि वह चार माह तक इधर-उधर रहेगा। जब मामला शांत होगा तो वह सरेंडर कर देगा। वह दोनों को भी बचा लेगा। वह खुद अन्य मददगारों से बात कर रहा था, लेकिन उन्हें कुछ नहीं बता रहा था। इसके बाद प्रभात अपने रिश्तेदार के फरीदाबाद वाले घर वापस लौटा तो पुलिस ने छापा मारकर मुठभेड़ में पकड़ लिया। लेकिन जब पुलिस गेस्ट हाउस पहुंची तो विकास फरार हो चुका था।
विकास ने पैंट-शर्ट खरीदी और मैनपुरी की जगह पहुंच गया उज्जैन
फरीदाबाद पुलिस सूत्रों के मुताबिक पूछताछ में पता चला कि घटना को अंजाम देकर जब विकास दुबे फरार हुआ तो बैग में एक भगवा रंग की शर्ट और एक गुलाबी रंग की शर्ट थी। एक लोअर था। पैरो में काले रंग की चप्पल थी। काले रंग का चश्मा था और हरे रंग का मास्क था, लेकिन जब उज्जैन में गिरफ्तार हुआ तो सफेद रंग की शर्ट में था। यानि उसने रास्ते में पैंट-शर्ट खरीदी थी। शातिर विकास दुबे ने मैनपुरी जाने की बात शायद अपने साथियों को गुमराह करने के लिए कहीं थी। ताकि अगर वह पकड़े जाएं तो पुलिस मैनपुरी में तलाश करे और वह उज्जैन पहुंच गया।
यूपी एसटीएफ की बड़ी चूक!
अगर यूपी एसटीएफ सर्विलांस और सीडीआर की मदद से एक-एक फोन नंबर की जांच की और वहां तक पहुंची। जिसके चलते उसके कई साथी पकड़े गए। साथी मुठभेड़ में मार गिराए लेकिन एनसीआर में उसके चार नंबर ऐसे थे, जहां उसने एक साल पहले कभी कभार बात की थी। अगर एसटीएफ उन नंबरों पर घटना के दूसरे या तीसरे दिन गौर करती तो शायद फरीदाबाद में वह उनके हाथ से नहीं फिसलता। एनसीआर के नंबरों में एक नंबर नोएडा और एक नंबर दिल्ली में रहने वाले उसके करीबी का था। नोएडा का नंबर उसी क्रिमिनल लॉयर का बताया जा रहा है, जो विकास दुबे को नोएडा, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक लेकर गया था। यह क्रिमिनल लॉयर विकास दुबे का सिलेंडर करवाने की जुगत भिड़ा रहा था।
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