Google Image | Yogi Adityanath
लखनऊ और गौतमबुद्ध नगर में भूमि से जुड़े विवादों में कार्रवाई शुरू करने की शक्ति वाले अधिकार वापस जिला मजिस्ट्रेट को दिए जा सकते हैं। इन दोनों जिलों में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू करते वक्त यह अधिकार जिला मजिस्ट्रेट से हटाकर पुलिस आयुक्त में निहित कर दिए गए थे। अब यह शक्तियां वापस जिला मजिस्ट्रेट में बहाल करने के प्रस्ताव पर यूपी सरकार ने नोएडा और लखनऊ के जिलाधिकारियों से प्रतिक्रिया मांगी हैं।
यह शक्ति पहले डीएम के पास थी, लेकिन जनवरी में इन दोनों जिलों में आयुक्तालय प्रणाली स्थापित होने के बाद पुलिस आयुक्तों को स्थानांतरित कर दी गई थी। 10 नवंबर को लिखे पत्र में गृह विभाग ने डीएम को सीआरपीसी की धारा 133 और 145 के तहत शक्तियों के हस्तांतरण के बारे में अपनी राय देने को कहा है। उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि सीआरपीसी के ये दोनों खंड जमीन से जुड़े विवादों को निपटाने के हैं, जो लेखपालों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। उन्होंने कहा कि लेखपाल पुलिस आयुक्त को रिपोर्ट नहीं करते हैं, वह जिलाधिकारी के मातहत हैं और उन्हें रिपोर्ट करते हैं। इसलिए डीएम को यह शक्तियां बहाल करने का प्रस्ताव बनाया गया है।
सीआरपीसी की धारा 133 किसी गैरकानूनी बाधा या किसी सार्वजनिक स्थान पर उपद्रव से संबंधित है। किसी इमारत के निर्माण या निपटान के कारण उपद्रव की संभावना से जुड़ा है। धारा 145 समूहों और लोगों के बीच भूमि और जल निकायों से उत्पन्न विवादों से संबंधित है। यदि सरकार इन शक्तियों के डीएम को हस्तांतरण की मंजूरी देती है, तो यह गौतमबुद्ध नगर में अधिक प्रभावशाली होगा। गौतमबुद्ध नगर में सरकारी एजेंसियों और निजी डेवलपर्स के बीच भूमि विवादों के बहुत सारे मामले हैं। किसानों, विकास प्राधिकरण और डेवलपर्स के बीच भी ऐसे विवादों की कोई कमी नहीं है।
इस कदम को लखनऊ और गौतमबुद्ध नगर में पुलिस आयुक्तालय प्रणाली के लिए एक और झटके के रूप में देखा जा रहा है। यहां, बंदूक लाइसेंस जारी करने, उत्पाद शुल्क परमिट और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) लागू करने जैसी शक्तियां पहले से ही डीएम के पास निहित हैं। जबकि, दिल्ली समेत कई राज्यों में यह सब पुलिस बल का डोमेन हैं। अवनीश कुमार अवस्थी ने कहा, "जमीन के तमाम मामले लंबित हैं। दिल्ली में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम है। भूमि संबंधी सभी मामले डीएम द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं। हमने नोएडा और लखनऊ के डीएम से इन शक्तियों को बहाल करने के प्रस्ताव पर विवरण मांगा है। पुराने मामलों को अभी भी डीएम द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है, लेकिन सभी नए मामले पुलिस आयुक्त के पास गए हैं। बहुत सारे मामले लंबित हैं।"
उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में सरकार के इस निर्णय को पुलिस आयुक्तों के लिए एक झटका के रूप में देखा जा रहा है। एक वरिष्ठ नौकरशाह, जिन्होंने लंबे समय तक नोएडा में सेवा की है, उन्होंने कहा कि यह कदम महत्वपूर्ण था, क्योंकि पिछला स्थानांतरण केवल 10 महीने पहले हुआ था। उन्होंने कहा, “यह देखने की जरूरत है कि सरकार के पास क्या डेटा है, क्योंकि वह दोनों जिलों में स्थापित होने वाली आयुक्तालय प्रणाली के एक साल के भीतर इस कदम पर विचार कर रही है। नोएडा में, जो राज्य का वित्तीय केंद्र है, भूमि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सरकार और प्राइवेट प्लेयर्स के बीच स्वामित्व के महत्वपूर्ण मामले हैं। इन मामलों को संवेदनशील तरीके से संभालने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पुलिस को इस तरह के मामलों से निपटने की इतनी गम्भीर जरूरत नहीं है, बल्कि जिले में सीआरपीसी की धारा 151 के कामकाज पर बेहतर ढंग से ध्यान दिया जाना चाहिए।"
(लखनऊ से इनपुट्स के साथ)
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