Noida News : अगर गौतमबुद्ध नगर के रियल एस्टेट सेक्टर में हुई व्यापक धांधली, जमीन की लूट और फ्लैट खरीदारों के शोषण पर बात करें तो दो कंपनियों आम्रपाली और सुपरटेक के नाम सामने उभर कर आते हैं। इन दोनों समूह के खिलाफ बड़ा एक्शन हुआ है। आम्रपाली समूह के चेयरमैन अनिल शर्मा और सुपरटेक समूह के चेयरमैन आरके अरोड़ा को लंबे अरसे तक जेल में रहना पड़ा है। फिलहाल, इनके खिलाफ केंद्रीय एजेंसियां जांच कर रही हैं। इनके अलावा और भी ऐसे बिल्डर हैं, जिन्होंने नोएडा की लूट में खूब मलाई काटी है, लेकिन उन तक जांच की आंच नहीं पहुंच सकी है। ऐसा तीसरा नाम गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड है।
अब तक आपने पढ़ा...
हमने इस कंपनी के कारनामों के बारे में आपको पहले बताया है कि नोएडा के पूर्व सीईओ मोहिंदर सिंह की खराब पॉलिसी का फायदा उठाकर गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी नेटवर्थ से 24 गुना ज्यादा कीमत की जमीन हासिल की। उस समय इस कंपनी की कुल नेटवर्थ ₹15.47 करोड़ थी। कंपनी की आवश्यक नेटवर्थ कम से कम ₹225 करोड़ होनी चाहिए थी। इस कंपनी के निदेशकों ने प्लॉट लेने के लिए कंसोर्टियम बनाए। बड़ी-बड़ी कंपनियों को छोटे-छोटे हिस्से मिले। सारी बड़ी कंपनियां जमीन छोड़कर फटाफट कंसोर्टियम से बाहर निकल गई थीं। गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड की बदौलत अरबों रुपये की जमीन महज 11.59 करोड़ रुपये नेटवर्थ वाली तीन छोटी-छोटी कंपनियों के हवाले कर दी गई। हमने गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मंडल से ये सवाल किए थे, जिनका जवाब उनकी ओर से नहीं दिया गया।
कंसोर्टियम से बाहर कैसे निकले : क्या आप विस्तार से बता सकते हैं कि संघ से बाहर निकलने की संरचना कैसे बनाई गई? एसपीसी के भीतर शेयरधारिता व्यवस्था क्या थी, और शेष या नए हितधारकों को शेयर कैसे हस्तांतरित किए गए?
संघ के गठन के पीछे की मंशा : बहुसंख्यक हितधारकों का तेजी से बाहर निकलना आवंटन की मूल शर्तों के संभावित उल्लंघन का संकेत देता है। क्या झूठे बहाने से प्लॉट को सुरक्षित करने के इरादे से संघ का गठन किया गया था? नोएडा के दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
पारदर्शिता और विनियामक : यदि शेयर हस्तांतरण का उचित रूप से खुलासा नहीं किया गया, तो इससे पारदर्शिता और विनियामक अनुपालन के बारे में चिंताएं पैदा होती हैं। क्या आप पुष्टि कर सकते हैं कि नोएडा और अन्य विनियामक निकायों को सभी प्रासंगिक खुलासे किए गए थे?
चार साल में 25 ग्रुप हाउसिंग स्कीम आईं
नोएडा अथॉरिटी ने वर्ष 2006-07, 2008-09, 2009-10 और 2010-11 के दौरान ग्रुप हाउसिंग स्कीम लॉन्च की थीं। ब्रोशर में पात्रता और आवंटन की शर्तों का प्रावधान किया गया। कोई कंपनी एक योजना या सभी समवर्ती योजनाओं में प्रस्तावित सभी भूखंडों में से अधिकतम दो भूखंडों के लिए बोली लगा सकती थी। हालांकि, उस मामले में आवेदक कंपनी की कुल संपत्ति प्रत्येक प्लॉट की कुल कीमत से अधिक होनी चाहिए। वर्ष 2006-07, 2008-09, 2009-10 और 2010-11 के दौरान नोएडा अथॉरिटी ने क्रमशः नौ, तीन, नौ और चार योजनाएं लॉन्च की थीं।
कैग के ऑडिट में हुआ बड़ा खुलासा
कैग ने लेखा परीक्षा में पाया कि नोएडा अथॉरिटी ने एक समय में एक ही योजना या एक साथ शुरू की गई योजनाओं में अधिकतम दो भूखंड हासिल करने की शर्त निर्धारित की थी। नोएडा अथॉरिटी ने इन वर्षों के दौरान कई-कई योजनाएं एकसाथ निकालीं। कई योजनाओं के लॉन्च होने से बिल्डरों को एक वर्ष में दो से अधिक भूखंडों के लिए बोली लगाने का मौका दिया। इस गड़बड़ी का तीन कंपनियों ने भरपूर फायदा उठाया है। इनमें सुपरटेक लिमिटेड और आम्रपाली समूह की कंपनी अल्ट्राहोम्स कंस्ट्रंक्शन प्राइवेट लिमिटेड के साथ गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल है।
₹15.47 करोड़ की कंपनी को 357.40 करोड़ की जमीन
गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड ने कंसोर्टियम के खेल का भरपूर फायदा उठाया। इस कंपनी ने कंसोर्टियम की आड़ में तीन बड़े-बड़े भूखंड हासिल किए। यह तीनों भूखंड वित्त वर्ष 2009-10 में कंपनी को आवंटित किए गए, जबकि दो ही भूखंड आवंटित करने का प्रावधान था। बड़ी बात यह कि कंपनी ने तीन ही स्कीम के लिए बिडिंग की और तीनों में सफलता हासिल की थी। इन तीनों भूखंडों के लिए गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड की नेटवर्थ कम से कम 225 करोड़ रुपये होनी चाहिए थी, लेकिन कंपनी की नेटवर्थ केवल 15.47 करोड़ रुपये थी। एकाधिक आवंटनों में प्रयुक्त कुल नेटवर्थ 32.60 करोड़ रुपये इस्तेमाल की गई। तीनों भूखंडों की कीमत 357.40 करोड़ रुपये थी।
गुलशन होम्स का 100% स्ट्राइक रेट
सुपरटेक लिमिटेड ने सात हाउसिंग स्कीम में बिडिंग की थी और चार भूखंड लेने में सफल हुई थी। मतलब, सुपरटेक लिमिटेड जैसी बड़ी कंपनी की सफलता का प्रतिशत 57% था। आम्रपाली समूह की कंपनी अल्ट्राहोम्स कंस्ट्रंक्शन प्राइवेट लिमिटेड ने भी सात हाउसिंग स्कीम में बिडिंग की थी और चार भूखंड लेने में सफल रही थी। इस तरह उस वक्त के सबसे प्रभावशाली बिल्डर अनिल शर्मा की कामयाबी का फीसद भी 57 ही था। जबकि गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड ने तीन बिडिंग की और तीनों में कामयाबी अर्जित की थी। मतलब, यह कंपनी 100% कामयाब रही थी। यहां बताना लाजिमी है कि नोएडा अथॉरिटी ने वित्त वर्ष 2008-09 और 2009-10 में 12 ग्रुप हाउसिंग स्कीम निकाली थीं, जिनमें से 11 भूखंड इन तीनों कंपनियों को आवंटित किए गए थे।
सबकुछ चोरी-छिपे हुआ
नेटवर्थ के संदर्भ में ब्रोशर में दी गई शर्त के पीछे तर्क यह था कि प्रमोटर की क्षमता अनुमानित परियोजनाओं के कुल मूल्य के अनुरूप होनी चाहिए। हालांकि, मूल्यांकन के दायरे को केवल एक साथ शुरू की गई योजनाओं तक सीमित किया गया। जब नोएडा अथॉरिटी ने अलग-अलग वर्षों के दौरान कई-कई योजनाएं शुरू कीं तो बिल्डरों को अपर्याप्त नेटवर्थ के बावजूद गुप्त रूप से कई भूखंड हासिल करने लायक बना दिया था। कुल मिलाकर नोएडा प्राधिकरण ने वित्तीय रूप से अयोग्य बिल्डरों को अपर्याप्त नेटवर्थ के आधार पर अरबों रुपये की जमीन दी। गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड जैसे बिल्डरों को अनुचित लाभ मिला है।
प्राधिकरण और सरकार का जवाब
नोएडा अथॉरिटी ने कैग को जवाब दिया, "योजनाएं अलग-अलग थीं और बोलीदाताओं पर उनकी वित्तीय क्षमताओं के अनुसार एक से अधिक योजनाओं में बोली लगाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था।" कैग ने अपनी रिपोर्ट में अथॉरिटी के इस जवाब पर कहा, "उत्तर स्वीकार्य नहीं है। क्योंकि अपात्र बिल्डरों को आवंटन मिलने की संभावना पैदा की गई। यह निर्धारित पात्रता शर्तों के पीछे की भावना का उल्लंघन किया गया है। नोएडा अथॉरिटी एक ही वित्तीय वर्ष में शुरू की गई सभी योजनाओं के लिए समग्र आधार पर वित्तीय पात्रता शर्त लागू करने में विफल रही है। इस प्रकार, एक वर्ष में कई-कई योजनाएं लॉन्च की गईं। शर्तों को एक योजना के लिए विशिष्ट रखा गया और एक साथ लॉन्च की गई योजनाओं में उपयोग किया गया। इससे व्यवस्था ने मूल्यांकन में कमी पैदा की है।"
उत्तर प्रदेश सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (बुनियादी ढांचा और औद्योगिक विकास विभाग) ने कहा कि भविष्य की योजनाओं के लिए बिल्डरों की मूल्यांकन व्यवस्था को मजबूत किया गया है।