Noida: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (Indian Medical Association-IMA) नोएडा से जुड़ी बड़ी खबर है। डॉक्टरों से जुड़ी इस संस्था की एक महिला पदाधिकारी ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि आईएमए नोएडा के कुछ सदस्य लोकतांत्रिक प्रणाली के खिलाफ हैं। इसके चलते वह अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन नहीं कर सकीं। उन पर दबाव बनाया जा रहा था। इसमें गौतमबुद्ध नगर के एक बड़े डॉक्टर जनप्रतिनिधि के रसूख इस्तेमाल करने का भी आरोप है। दरअसल उनका आईएमए में पूरा प्रभुत्व है। वह गाहे-बगाहे इसका उपयोग करते रहते हैं। लेकिन महिला डॉक्टर मोहिता शर्मा के आरोपों के बाद आईएमए की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
डॉ मोहिता शर्मा ने अपनी पूरी व्यथा आईएमए के व्हाट्सएप ग्रुप में लिखी है। इसमें उन्होंने लिखा है, यह बहुत दुख की बात है कि आईएमए नोएडा के कुछ वरिष्ठ सदस्य लोकतंत्र के खिलाफ हैं। क्योंकि वे हुक्म चलाना और शासन करना चाहते हैं। मैं और मेरी टीम संगठन के चुनाव में नामांकन दाखिल करने की योजना बना रहे थे। मगर पिछले कुछ दिनों से कुछ वरिष्ठ सदस्य मुझे नामांकन नहीं करने के लिए समझा रहे थे। उनका कहना था कि इससे चुनाव होने से बच जाएगा। इस लिहाज से यह भले स्वीकार्य है। मैं डॉ शालिनी से सहमत हूं। लेकिन बीते सोमवार और मंगलवार को जो हुआ, वह बेहद दुखद था। नामांकन से ठीक पहले वरिष्ठ सदस्यों एक ग्रुप ने हम पर दबाव बनाने के लिए मनगढंत गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने हम पर सवाल उठाए।
बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप है
उन्होंने धमकी दी कि अगर मैंने नामांकन दाखिल किया तो वे इन आरोपों को उछालेंगे। मेरा सवाल यह है कि अगर मैं चुनाव में नामांकन करती हूं, तो हम पर आरोप हैं। अगर मैंने नामांकन नहीं किया, तो कोई आरोप नहीं है। क्या यह उचित है? या यह धमकी है? क्या एक महिला होने के नाते मेरे साथ ऐसा हो रहा है? या फिर आईएमए में ऐसा होता है? इन हालात में क्या आईएमए नोएडा डॉक्टरों और खासकर महिला चिकित्सकों को अनुकूल माहौल देने में सफल है? चुनाव से बचने के लिए सामंजस्यपूर्ण चर्चा शांति के लिए अच्छा है। लेकिन क्या जबरदस्ती करना और धमकी देना अच्छा है? जो लोग आईएमए के सदस्य नहीं हैं, आखिर वो किस अधिकार से इसमें हस्तक्षेप कर रहे हैं। जबकि उन्हें बोलने का बिलकुल हक नहीं है।
पद की लालसा नहीं थी
उन्होंने आगे कहा है, मुट्ठी भर सीनियर हर निर्णय लेते हैं और फिर धमकियां देते हैं। वरिष्ठों को मार्गदर्शक की स्थिति में होना चाहिए न कि तानाशाह की स्थिति में। नामांकन में सबको हिस्सा लेने की अधिकार है। उन्हें अनुमति दी जानी चाहिए। उसके बाद वे आपस में बातचीत कर कोई निर्णय ले सकते हैं। आखिर हम सब दोस्त और सहकर्मी हैं।, मेरे नामांकन का मतलब यह नहीं था कि मैं पद के लिए लालायित थी। मेरा लक्ष्य सिर्फ अधिक स्वस्थ और भय मुक्त वातावरण बनाना था। मैंने अभी नामांकन करने के बारे में निर्णय नहीं लिया था। मगर उससे पहले ही मुझे धमकी मिलने लगी। गंभीर आरोप शुरू हो गए। डर के इस माहौल में आईएमए नोएडा कभी भी मजबूत संगठन नहीं बन सकेगा।