कौन जीतेगा यूपी : मुरादाबाद देहात में सपा का किला बेहद मजबूत, रालोद का साथ बनाएगा अभेद्य, VIDEO

Tricity Today | मुरादाबाद में ग्राउंड रिपोर्टिंग



मुरादाबाद देहात सीट पर अल्पसंख्यक, दलित, जाट और सैनी वोटरों का दबदबा है। इस सीट का समीकरण बेहद टेढ़ा है। आधा निर्वाचन क्षेत्र मुरादाबाद शहर और आधा ग्रामीण इलाकों में है। जिसकी वजह से बड़ी संख्या में शहरी मतदाता भी यहां परिणाम प्रभावित करते हैं। सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो वोटरों की संख्या 3,56,446 थी। मुकाबला समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच था। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी और मौजूदा विधायक हाजी इकराम कुरैशी को 97,916 वोट मिले थे, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हरिओम शर्मा को 69,135 वोट मिले थे। करीब 28,000 वोटों के बड़े फ़ासले से यहां समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी। बड़ी बात यह है कि राष्ट्रीय लोकदल से चुनाव लड़ रहे मोहम्मद कामरान-उल हक ने 23,404 और बहुजन समाज पार्टी के पन्नालाल बबलू सैनी ने 20,054 वोट हासिल किए थे। मतलब, अल्पसंख्यक मतदाताओं में अच्छा-खासा विभाजन होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी इस सीट पर कामयाबी हासिल नहीं कर पाई थी। दूसरी ओर बसपा के बबलू सैनी ने भाजपा के परंपरागत सैनी वोटों में सेंधमारी की थी।



अब अगर आने वाले विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस सीट पर समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन का पलड़ा भारी नजर आता है। इसकी 4 प्रमुख वजह हैं।
  1. इस बार जाट मतदाता किसान आंदोलन के चलते भारतीय जनता पार्टी से खफा हैं। फिलहाल यह तो नहीं कहा जा सकता कि कितने जाट मतदाता भाजपा को छोड़कर सपा-रालोद गठबंधन की ओर जाएंगे, लेकिन विभाजन साफ नजर आ रहा है।
  2. दूसरी तरफ अल्पसंख्यक वोटर पूरी तरह समाजवादी पार्टी को लेकर लामबंद हैं। अल्पसंख्यक वोटरों का साफ कहना है कि सपा के टिकट पर चुनाव कोई भी लड़े, उन्हें साइकिल के निशान पर मुहर लगानी है।
  3. पिछले चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार मोहम्मद असलम केवल 3,503 वोट हासिल कर पाए थे। बिहार और बंगाल चुनाव के बाद मुसलमान एआईएमआईएम को लेकर खासे सतर्क नजर आ रहा हैं।
  4. बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस का प्रभाव फीका है। साथ ही दोनों पार्टियों के उम्मीदवार अभी तय नहीं हैं। मतलब, अगर इन दोनों पार्टियों में से किसी ने मुसलमान उम्मीदवार बनाया तो भी विभाजन बहुत मुश्किल है।

भाजपा और सपा से मिली जानकारी के मुताबिक दोनों मुख्य राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवार बदलेंगी। कुल मिलाकर उम्मीदवारों की घोषणा होने के बाद स्थिति और साफ होगी। दूसरी ओर इस सीट के समीकरणों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि अल्पसंख्यक वोटों की संख्या लगभग 50 फ़ीसदी है। जिस तरह मुस्लिम वोटर सपा के पक्ष में लामबंद नजर आता है, उसे देखकर नहीं लगता कि यहां सपा को भाजपा चुनौती दे पाएगी। दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड लहर थी। तब भी यह सीट सपा के खाते में गई थी। मतलब साफ है कि मुरादाबाद देहात सीट पर समाजवादी पार्टी का किला पहले ही बेहद मजबूत है। अब जब रालोद गठबंधन में आएगा तो यह सीट अभेद्य बन जाएगी।

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