आजादी का अमृत महोत्सव : अंग्रेज कोतवाल ने पांव तले तिरंगा रौंदा तो उद्वेलित हो गया मऊ

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Uttar Pradesh : आजादी के संघर्ष में उत्तर प्रदेश का हर कोना उद्वेलित था। प्रदेश का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था, जहां के वीर सपूतों ने हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति न दी हो। हर कोई आजादी के लिए अंग्रेजों का लहू बहाने और अपनी शहादत देने के लिए तैयार था। आजादी के अमृत महोत्सव में आज हम आपको एक ऐसी ही रोचक कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आपको आप भी रोमांचित हो जाएंगे। 

मधुबन कांड ने ब्रिटिश हुकूमत के पांवों तले से खिसका दी थी जमीन
उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में आजादी की लड़ाई के दौरान मधुबन कांड ने ब्रिटिश हुकूमत के पांवों तले से जमीन खिसका दी थी। अमृतसर में साल 1919 में हुए जलियावाला कांड की यादें ताजा हो गई थीं। इतिहासकार बताते हैं कि गोबरही इलाके में मंगला की छप्पर में 13 अगस्त 1942 को क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई। बैठक में पहले घोसी तहसील मुख्यालय पर कब्जा करने का निर्णय लिया गया। फिर यह फैसला बदल दिया गया। अगले दिन दुबारी में राम सुंदर पांडेय ने ऐसा जोशीला भाषण दिया कि काफूर हो चले आंदोलन में ऊर्जा भर गई। इस ऐतिहासिक भाषण ने मधुबन और राम सुंदर पांडेय को स्वतंत्रता आंदोलन के स्वर्णिम इतिहास में अमर कर दिया।

भाषण से प्रेरित होकर थाने पहुंच गए 30 हजार लोग
राम सुंदर पांडेय से प्रेरित होकर 15 अगस्त 1942 को आजादी के दीवानों ने रामपुर डाकखाना और पुलिस चौकी, फतेहपुर डाकखाना, कठघरा आबकारी दुकान और उफरौली बीज दुकान नेस्तानाबूद कर दीं। क्रांतिकारियों ने मधुबन डाकखाना को फूंकने के बाद थाने का घेराव किया। लिहाजा, सारे क्रांतिकारियों ने थाने का रुख किया। क्रांतिकारियों के मंसूबों की जानकारी मिली तो पुलिस और प्रशासन के अफसर थाने पहुंच गए। करीब 30 हजार लोगों की भीड़ देखकर कलेक्टर मिस्टर निबलेट ने थानेदार को बाहर भेजा और कहा कि प्रतिनिधिमंडल से वार्ता कर सकते हैं। 

जब हुई पत्थरों की बरसात तो खुद को बचाने लगे बंदूकची
इस वार्ताकार मंडल में मंगलदेव ऋषि, श्याम सुंदर मिश्र, रामसुंदर पांडेय, राम बहादुर लाल और रामवृक्ष चौबे शामिल थे। पांचों ने केवल दो मांगें कलेक्टर के सामने रखीं। कलेक्टर थाना छोड़ दें। थाने पर तिरंगा फहराया जाएगा। इस पर भीड़ ने कहा कि कलेक्टर की मौजूदगी में ही तिरंगा फहराया जाएगा। राम बहादुर लाल ने ऋषि को गोद में उठा लिया। उनसे ही थाने पर चढ़ाई का आदेश मांगा। फिर क्या था, थाने के अंदर, बाहर और छत पर चढ़े सिपाहियों की बंदूकें गरज उठीं। पहली गोली राम नक्षत्र पांडेय के सीने में लगी। इसके बाद भीड़ ने आपा खो दिया और पत्थरबाजी शुरू कर दी। पत्थरों की ऐसी बौछार हुई कि सिपाही, जमींदार और बंदूकची खुद को बचाने के लिए दौड़ पड़े। गोलियों की बरसात में तीन दर्जन से ज्यादा आंदोलनकारी शहीद हो गए। कुछ की पहचान हो पाई और कई शहीदों के परिजन हुकूमत के भय से लाश की शिनाख्त करने भी नहीं आए।

जब पूरा मऊ उद्वेलित हो गया
17 अगस्त 1942 को मुहम्मदाबाद-खुरहट के बीच रेलवे लाइन उखाड़ दी गईं। दूरसंचार भंग कर दिया गया। 21 अगस्त 1942 को रामलखन सिंह, श्याम नरायन सिंह और अवध नरायन सिंह के नेतृत्व में आन्दोलनकारियों के एक जत्थे ने मऊ-पिपरीडीह स्टेशन के बीच रेलवे लाइन व खम्भों को उखाड़कर रेल व्यवस्था भांग कर दी। अंग्रेजों का संचार ठप हो गया। इसके पूर्व 17 अगस्त को इंदारा स्टेशन फूंक दिया गया था। मधुबन कांड से उत्तेजित क्रांतिकारियों ने रामशरण शर्मा के नेतृत्व में खुरहट स्टेशन पर हमला बोल दिया। वहां के कर्मचारियों ने क्रांतिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। क्रांतिकारियों ने उन्हें बाहर निकालकर वहां आग लगा दी। इसी क्रम में मऊ को मोहम्मदाबाद से जोड़ने वाले पुल को तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन मऊ से पुलिस आ गई। फिर फायरिंग हुई और क्रांतिकारी इधर-उधर हो गए।

भाषण सुनकर ही गांधी के अनुयायी बने
प्रोफेसर आरएस पांडेय कहते हैं, मधुबन को शहीदों की धरती नहीं कहा जाता, यदि पंडित रामसुंदर पांडेय 14 अगस्त 1942 को दुबारी में जोशीला भाषण देकर अंग्रेजी हुकूमत के थानेदार मुक्तेश्वर सिंह की करतूत को चुनौती नहीं देते। ऐसा भाषण न होता तो 15 अगस्त 1942 को अंग्रेज डीएम के सामने तिरंगा न फहरता। हजारों देशभक्त थाने का घेराव न करते और धरती दीवानों के लहू से सिंचित न होती। 3 अक्टूबर 1939 को दोहरीघाट में महात्मा गांधी आए थे। 22 वर्षीय युवक रामसुंदर पांडेय ने महात्मा गांधी के शब्दों को अपने लिए ब्रह्म संदेश बना लिया था। रामसुंदर पांडेय की जुबान पर सरस्वती का वास और दिल में भगवान शंकर का प्रलयकारी रूप विराजमान था। 

आजादी के बाद बने विधायक, तेवर रहे बरकरार
9 अगस्त 1942 को बापू ने अंग्रेजों भारत छोड़ो के साथ भारतीयों के लिए करो या मरो का नारा दिया। तमाम बड़े नेता गिरफ्तार तो हो गए, पर उनका संदेश हर भारतीय के लिए आदेश बन गया। घोसी तहसील के बचे-खुचे नेताओं ने आंदोलन को आगे बढ़ाने का फैसला लिया था। दरअसल, चंद दिन पहले मधुबन के थानेदार मुक्तेश्वर सिंह ने दुबारी कांग्रेस कार्यालय में तिरंगा पांव तले रौंद दिया था। यही वजह थी कि राम सुंदर पांडेय ने मधुबन थाने या घोसी तहसील पर तिरंगा फहराने का ऐलान कर दिया। कई बार जेल जाने वाले इस सेनानी का आजाद भारत में भी यही तेवर बना रहा। इसी तेवर, ईमानदारी और जनता के बीच लोकप्रियता के दम पर उन्होंने नत्थूपुर व सगड़ी विधानसभा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व किया। 12 जनवरी 1979 को रामसुंदर पांडेय की मृत्यु हुई। उनके ही नाम पर गजियापुर में स्थापित श्रीराम सुंदर पांडेय सर्वोदय इंटर कॉलेज है। बाद में उनके पुत्र अमरेश चंद पांडेय भी विधायक बने थे।

बिना रुके बरसाईं थीं 149 राउंड गोलियां
ब्रिटिश रिकॉर्ड के मुताबिक मधुबन थाने के अन्दर से पुलिस ने 4 बजे से 6 बजे तक रुक-रुक कर 149 राउंड गोलियां चलाई थीं। जिससे 13 लोग थाने के गेट और आसपास शहीद हो गए थे। इन्हें मिली शहादत में मधुबन तहसील क्षेत्र के कन्धरापुर निवासी राम नक्षत्र पाण्डेय, तिनहरी के रामपति, मर्यादापुर के सोमर राम गड़ेरी, मर्यादापुर के कुमार माझी, गुरूम्हा के हनीफ दर्जी, पहाड़ीपुर के शिवधन हरिजन, भवानी सराय के रघुनाथ भर, रामपुर के राजदेव कान्दू, कुचाई के भागवत सिंह, नेवादा के लक्षनपति यादव, कटघरा शंकर के बनवारी यादव, तिघरा के मुन्नी कुंवर और मछिला के बन्धु नोनिया के नाम शामिल हैं।

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