यूपी के प्राइमरी शिक्षकों के लिए बड़ी खबर : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया माइलस्टोन जजमेंट, पढ़िये पूरा मामला 

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Noida Desk|Prayagraj News : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से बड़ी खबर सामने आ रही है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन शिक्षकों को जोर का झटका दिया है, जो मनचाहे जिले में तैनाती को अपना अधिकार मानते हैं। हाईकोर्ट ने कहा है कि जनपद में कार्यरत और स्वीकृत पद के सापेक्ष 30 अप्रैल-2023 तक कार्यरत अध्यापकों के अधिकतम 10 प्रतिशत तक ही अंतर्जनपदीय तबादला नीति मनमानी नहीं है। यह जानते हुए खुली आंख से अध्यापकों ने निश्चित जिले में नियुक्ति प्राप्त की है। कोर्ट ने यह साफ किया कि किसी को भी मनमाफिक जिले में कार्य करने का विधिक अधिकार नहीं है।

क्या है पूरा मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि कल्याणकारी राज्य की तबादला नीति न ही मनमानी है और न ही किसी कानून के खिलाफ। ऐसे में तबादला नीति में हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने अंतर्जनपदीय तबादले की मांग को लेकर दाखिल दर्जनों याचिकाएं खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने रचना और दो अन्य सहित कुल 57 याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाओं में अंतर्जनपदीय तबादला नीति के उपखंड चार की वैधता को चुनौती दी गई थी। इसके तहत पहले से स्वीकृत पद से अधिक अध्यापक होने की दशा में उस जिले में तबादले से आने की अनुमति नहीं है।

क्या है इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
इस मामले में राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि 11 जिलों बागपत, चित्रकूट, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हापुड़, कन्नौज, कानपुर नगर, लखनऊ, मऊ, मेरठ और मुजफ्फरनगर में स्वीकृत पदों से अधिक अध्यापक कार्यरत हैं। वहां से सैकड़ों अध्यापकों को दूसरे जिलों में भेजना होगा। इसलिए स्वीकृत पद से पहले ही अधिक अध्यापकों वाले किसी जिले में नहीं भेजा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि इन जिलों में तबादले से आने की अनुमति दी गई तो स्वीकृत पदों के सापेक्ष अध्यापकों की संख्या और अधिक हो जाएगी। इसलिए सरकार की तबादला नीति मनमानी नहीं है। किसी भी अध्यापक को अपनी मर्जी के जिले में कार्य करने का विधिक अधिकार नहीं है।

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