आज़ादी का अमृत महोत्सव : कासगंज में आजादी के पांच दीवाने और उनका क्रांतिकारी पेड़

Tricity Today | आज़ादी का अमृत महोत्सव



Uttar Pradesh : स्वतंत्रता संग्राम में शामिल रहने वालों में शायद पढ़े-लिखे लोग उतने नहीं होंगे, आम किसान और देहाती थे। कासगंज के किसरोली मार्ग पर बसा गांव नरोली आजादी का शानदार इतिहास समेटे हुए है। इस छोटे से गांव के पांच स्वतंत्रता सेनानियों ने एकसाथ आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया। जेल में यातनाएं सहीं। अंग्रेजों ने इनके घर जलाए जमीन छीन लीं। परिवार भटकने को मजबूर हुए। आज इन स्वतंत्रता सेनानियों के परिजन गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। आजादी को पाने के लिए कासगंज के सेनानी पीछे नहीं रहे। आजादी के इन दीवानों ने न दिन देखा और न रात। इनके मन में बस देश को आजाद करने का जज्बा था।

छोटे से गांव के किसान बन गए बड़े क्रांतिकारी
नरोली गांव के राम सिंह, रामलाल, उनके पुत्र नंद किशोर, लाल सिंह और टीकाराम ने आजादी की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इनमें लाल सिंह को छोड़कर बाकी स्वतंत्रता सेनानियों की पीढ़ियां गांव में रहती हैं, लेकिन अब गुमनामी का जीवन जी रहे हैं। सरकार तमाम योजनाएं संचालित करती है लेकिन स्वतंत्रता सेनानियों की पीढ़ियों के हिस्से कुछ नहीं है। खेती-किसानी के जरिए परिवार पल रहे हैं। गांव में 105 वर्षीय बुजुर्ग मुकुंदीलाल का शरीर तो बहुत कमजोर है, लेकिन उनकी यादें पुख्ता हैं। वह कहते हैं। हमारे पूरे गांव में देश को आजाद करने का जज्बा था। सारे ग्रामीण रोजाना शाम के वक्त बरगद के पेड़ के नीचे एकत्रित हो जाते थे। आंदोलन की रणनीति बनाते थे। बाहर से गांधी जी और दूसरे क्रांतिकारियों से जुड़े समाचार आते थे। स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह के पुत्र उमराव सिंह अब 82 वर्ष के हैं। वह बताते हैं। पिताजी के साथ गांव से लाल सिंह, रामलाल, उनके बेटे नंद किशोर और टीकाराम आजादी की लड़ाई में शामिल थे। इन सबकी 26 जनवरी 1931 को कासगंज से गिरफ्तारी हुई थी। अब उस जगह गांधी मूर्ति स्थापित है।

ग्रामीण ने भी लिया बढ़ चढ़कर हिस्सा 
9 मार्च 1931 को जेल से पिताजी को रिहा किया गया था कोई कुंवारा था तो कोई अकेली संतान गांव के पूर्व प्रधान चतुर भारती बताते हैं, देश को आजाद करने में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ हमारे गांव के ग्रामीण भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे। हमें स्वतंत्रता सेनानियों का गांव होने पर गर्व है, लेकिन समय के साथ इस गांव को भुला दिया गया है। स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को कोई सुविधा नहीं मिल रही। अब तो किसी परिजन को समारोहों में बुलाया भी नहीं जाता है। स्वतंत्रता सेनानी नंद किशोर के पुत्र रघुवीर सिंह बताते हैं कि आजादी के आंदोलन के समय उनके पिता की शादी नहीं हुई थी। उनके साथ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी टीकाराम अकेली संतान थे। उन्होंने तो अपने पिता के साथ एक माह की जेल काटी थी।

पिता-पुत्र एक साथ लड़े थे आजादी की लड़ाई
रामलाल और उनके पुत्र नंद किशोर ने तो एक साथ आजादी की लड़ाई लड़ी थी। गांव वाले बताते हैं कि दोनों में बहुत प्रेम था। आजादी के कुछ दिनों बाद स्वतंत्रता सेनानी रामलाल की मृत्यु हो गई। उनके पुत्र नंद किशोर भी कुछ साल बाद चल बसे थे। नंद किशोर के बेटी रघुवीर सिंह, मोहर सिंह और पोते गांव में रहते हैं। स्वतंत्रता सेनानी लाल सिंह की गांव में अब स्मृतियां ही शेष रह गई हैं। उनके तीन बेटियां हैं।जिनकी शादी हो चुकी हैं। तीनों अपनी ससुराल में रहती हैं। उनका कोई बेटा नहीं है। गांव में उनका एक मकान है, जो देखभाल के अभाव में पूरी तरह खंडहर हो चुका है। जिसमें ग्रामीण अपने पशुओं को बांध लेते हैं।

बरगद के पेड़ के नीचे बनती थी रणनीति
गांव में एक पुराना बरगद का पेड़ आजादी के आंदोलन का गवाह है। इस पेड़ के नीचे बैठकर आंदोलन की रणनीति ग्रामीण बनाते थे। ग्रामीणों ने इस पेड़ को सहेज कर रखा है। पेड़ के चारों ओर बाउंड्री कर दी है और पास में एक मंदिर का निर्माण कर लिया है। जिसमें पूरा गांव पूजा करने जाता है।

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