Uttar Pradesh : स्वाधीनता की लड़ाई में देवरिया के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दंपति दो वर्ष तक जेल की सलाखों के पीछे कैद रहे। उस वक्त दोनों की नई-नई शादी हुई थी। पति आंदोलनकारी थे। वह अंग्रेज पुलिस के डराने और धमकाने से डरे नहीं, बल्कि साहस के साथ उनका सामना किया। जिले में सलेमपुर के मधवापुर गांव के रहने वाले एकलौते जीवित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दंपति 99 वर्षीय श्रीराम पांडेय और 97 वर्षीया उनकी पत्नी प्रभावती पांडेय हैं। पूरे देश में 'आजादी का अमृत महोत्सव' मनाया जा रहा है। इससे दोनों पति-पत्नी बहुत खुश हैं।
महात्मा गांधी के 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन में कूदे श्रीराम पांडेय
श्रीराम पांडेय बताते हैं, "राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पूरे देश को उद्वेलित कर दिया था। उनके आह्वान पर वर्ष 1942 में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन शुरू हुआ। तमाम लोग आंदोलन में कूद पड़े। मैं भी शामिल हो गया। पुलिस को पता लगा तो मुझे तलाश करने लगी। रोजाना कई बार पुलिस वाले हमारे घर छापा मारने आते थे। 12 अगस्त की रात बांगरबारी गांव के रामदरश राव, सहला गांव के रघुनाथ तिवारी, टैरिया गांव के मुक्तिनाथ तिवारी, पुरैनी परसिया गांव के ज्वाला प्रसाद मिश्र, बनकटा गांव के वसुधानंद पांडेय, केहुनिया गांव के चुम्मन दुबे आदि मेरी घर में आए हुए थे। हम लोग आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीति बना रहे थे। किसी मुखबिर ने अंग्रेज अफसर लार्ड वेलेंक्टन को हमारे बारे में जानकारी दे दी।
अंग्रेज पुलिस ने श्रीराम पांडेय के साथ प्रभावती को किया गिरफ्तार
श्रीराम पांडेय कहते हैं, "अचानक पुलिस ने हमारे घर छापा मार दिया। हम घर में भीतर घुस गए। मेरी पत्नी प्रभावती पांडेय ने दरवाजा खोला तो पुलिस ने तुरंत पूछताछ शुरू कर दी। प्रभावती ने उन्हें कहा कि घर में कोइ नहीं है। पुलिस के अफसर जबरदस्ती घर में घुस गए। मैं और मेरे सारे साथी आंदोलनकारी पकड़े गए। पुलिस ने प्रभावती को भी गिरफ्तार कर लिया।" पांडेय जी मुस्कुराते हुए कहते हैं, "तब हमारी नई-नई शादी हुई थी। अगले दिन अंग्रेज जज के सामने नवेली दुल्हन प्रभावती कटघरे में पहुंची। जज ने अपने साथियों का नाम बताने और गलती मान कर माफी मांगने को कहा, लेकिन प्रभावती ने माफी नहीं मांगी। किसी का भी नाम बताने से साफ इंकार कर दिया।"
दोनों को गोरखपुर जेल की अगल-अलग बैरक में रखा गया
पति श्रीराम पांडेय के साथ प्रभावती को भी दो साल सश्रम कारावास की सजा अंग्रेज अदालत ने सूना दी। दोनों को गोरखपुर जेल भेज दिया गया। वहां अलग-अलग बैरकों में उन्हें रखा गया था। वर्ष 1944 में दोनों को रिहा कर दिया गया। वर्ष 1946 में बिहार के पूर्णिया में श्रीराम पांडेय को फिर गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया और उसके दो दिन पूर्व 13 अगस्त 1947 को उन्हें रिहा किया गया था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस और बापू के विचारों का प्रभाव पड़ा
श्रीराम पांडेय उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, "मैं कलकत्ता में पिताजी के साथ जूट मिल में नौकरी करता था। वह आजादी की लड़ाई से जुड़ी जनसभाओं में जाते थे। उनके साथ सभाओं में जाने का अवसर मिलता था। मैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित होकर स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़ा। पिताजी के साथ गांव आने पर पड़ोस के गांव पुरैना की रहने वाली प्रभावती से शादी हो गई थी।" स्वतंत्रता आंदोलन में पत्नी प्रभावती पांडेय के साथ भाग लिया था। वह बताते हैं, "नेताजी ने जनसभा में अंग्रेजों को सबक सिखाने की बात कही थी। इसके साथ ही महात्मा गांधी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' आंदोलन का नारा दिया था। उसके बाद मेरे मन में अंग्रेजों को भगाने का विचार आया और आंदोलन में कूद गया।