Uttar Pradesh News : आजादी की लड़ाई में एक वक्त ऐसा आ गया था, जब महात्मा गांधी का अहिंसक और क्रांतिकारियों का रास्ते लगभग एक हो गए। शायद गांधी जी ने इसी वजह से महात्मा गांधी ने 'करो या मरो' का नारा दिया था। महात्मा गांधी ने मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान (अगस्त क्रांति मैदान) से 8 अगस्त, 1942 को 'भारत छोड़ो आंदोलन' का आह्वान करते हुए देशवासियों से कहा था, "करो या मरो।" कमोबेश देश को आजाद देखने की इच्छा रखने वाले करोड़ों लोग यह भूल गए थे कि रास्ता कौन सा है, उन्हें बस आजादी की जरूरत थी। तभी तो तमाम ऐसे फ्रीडम फाइटर हैं, जो महात्मा गांधी को सहयोग कर रहे थे, लेकिन जरूरत पड़ने पर क्रांतिकारियों के साथ भी खड़े थे। ऐसे ही एक आजादी के दीवाने पंडित राजाराम रूपोलिहा थे।
पंडित राजाराम रूपोलिहा ने अतर्रा में महात्मा गांधी की मेजबानी की
बुंदेलखंड में 1857 से आजादी की अलख जग रही थी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राजाराम रूपोलिहा के योगदान को यादकर बुंदेली आज भी गर्व करते हैं। रेल पटरी उखाड़ने के जुर्म में उन्हें जेल और 21 कोड़ों की सजा दी गई थी। वह अतर्रा कस्बे के बदौसा रोड आंबेडकर नगर के निवासी थे। उनके पौत्र देशबंधु रूपौलिहा ने बताया कि पांच नवंबर 1931 को महात्मा गांधी ने अतर्रा के टापू (चौक बाजार) में भाषण दिया और तिरंगा फहराया था। यह जगह अब गांधी चौक के नाम से जानी जाती है। हर वर्ष राजाराम रूपोलिहा 15 अगस्त और 26 जनवरी यहां पर झंडा फहराते थे। महात्मा गांधी दो दिन पंडित जी के घर ठहरे थे। राजाराम ने 1941 में सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया। इस पर अंग्रेजी शासन ने उनके ऊपर एक साल का कारागार और 10 रुपये जुर्माना लगाया था।
अगस्त क्रांति के लिए पत्नी के साथ मुंबई गए और गिरफ्तार हो गए
देशबंधु रूपौलिहा बताते हैं, "बाबा जी ने मलाका जेल (वर्तमान में रानी अस्पताल) प्रयागराज में सजा की अवधि बिताई थी। 1942 में बाबा जी हमारी दादी जी लक्ष्मी देवी के साथ महासमिति की बैठक में शामिल होने पंजाब मेल ट्रेन से मुंबई गए थे। वहां महासमिति की बैठक को भंग करने के लिए अंग्रेजी पुलिस और सीआईडी ने धर्मशाला में छापा मारा था। बाबा और दादी को वहां पुलिस ने गिरफ्तार किया और कई दिन दोनों को जेल में बिताने पड़े थे। महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई से 'भारत छोड़ो आंदोलन' का ऐलान किया। मुंबई से वापस लौटकर बाबा जी ने 21 अगस्त 1942 को तुर्रा में रेल पटरी उखाड़ दी। इस जुर्म में 26 अगस्त को अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ब्रिटिश कोर्ट ने 21 कोड़ों की सजा सुनाई थी।
आजादी के बाद अतर्रा के पहले नगर पंचायत चेयरमैन बने
देश आजाद होने के बाद 1949 में वह अतर्रा नगर पंचायत के चेयरमैन बने और गरीबों का टैक्स माफ किया। तब तक अंग्रेज गरीबों से भी टैक्स वसूल करते थे। देश आजाद होने के बाद अतर्रा नगर पंचायत के प्रथम चेयरमैन बने थे। हालांकि, यह टाउन एरिया ब्रिटिश हुकूमत से चला आ रहा था। 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजाराम रूपोलिहा को दिल्ली के लाल किले में ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था। यह ताम्रपत्र आज भी उनके घर रखा है। 1950 में जमींदारी उन्मूलन कोष के संग्रह में सहायता दी। तत्कालीन बांदा कलक्टर शिवराम सिंह ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया था। विनोबा भावे के 'भूदान आंदोलन' में काम किया। उनके पौत्र बताते हैं, "बाबाजी को युवाओं में बढ़ते अपराध पर बहुत चिंता रहती थी। जिसके लिए उन्होंने बहुत काम किया था। 5 फरवरी 1951 को कानपुर के डीआईजी एमएस माथुर ने अपराधीकरण को मिटाने और पुलिस की सहायता पर पुरस्कृत किया था।
चंद्रशेखर आजाद फरारी के दौरान इनके घर रुके थे
महात्मा गांधी जब अतर्रा आए थे तो दो दिन पंडित जी के घर ठहरे थे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजाराम रूपोलिहा के अतर्रा स्थित घर में चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए चार दिन ठहरे थे। देशबंधु कहते हैं, "बाबाजी एक तरफ गांधी जी के भक्त थे लेकिन वह क्रांतिकारियों की मदद के लिए भी तैयार रहते थे। उन्हें पुलिस से या जेल जाने से कोई डर नहीं लगता था। वह अकसर कहते थे कि एक वक्त ऐसा आ गया था कि हर कोई बस आजाद मुल्क देखना चाहता था। इसमें गांधी जी का योगदान था तो क्रांतिकारियों की शहादत भी कमतर नहीं थी।" देशबंधु ने बताया कि बाबा राजाराम रूपोलिहा की मृत्यु 13 मई 1982 को उनके आवास पर हुई थी। एक पुत्र जगत सेवक रूपोलिहा थे। जिनका निधन भी कुछ वर्षों पूर्व हो गया था। देशबंधु रूपोलिहा नरैनी ब्लॉक के बसरेही गांव में उच्च प्राथमिक विद्यालय में इंचार्ज प्रधानाध्यापक के तौर पर कार्यरत हैं। इनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं। इन सभी को अपने दादा और परदादा पर बड़ा नाज है।