बड़ी खबर : आईएएस नरेंद्र भूषण को दोबारा मिली नोएडा के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह की जांच, तबादले के बाद लौटा दी थी फाइल

Tricity Today | यादव सिंह



Noida/Lucknow : नोएडा प्राधिकरण में करोड़ों रुपए के घोटाले करने वाले मामले में एक बार फिर जांच तेज हो गई है। प्राधिकरण के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह मामले में एक बार फिर आईएएस नरेंद्र भूषण को जांच मिल गई है। उत्तर प्रदेश शासन ने दोबारा से इस पूरे मामले की जांच करने के आदेश नरेंद्र भूषण को दिए हैं।

नरेंद्र भूषण पहले से कर रहे थे जांच
आपको बता दें कि जब नरेंद्र भूषण ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी थे तो उनको यादव सिंह मामले में पूरी जांच करने के आदेश दिए गए थे, लेकिन पीडब्ल्यूडी में तबादला होने के बाद सीईओ ने इस पूरे मामले में फाइल वापस उत्तर प्रदेश शासन को भेज दी थी। नरेंद्र भूषण इस समय लोक निर्माण के प्रमुख सचिव हैं। अब उत्तर प्रदेश शासन ने यादव सिंह मामले में पूरी जांच करने के आदेश एक बार फिर नरेंद्र भूषण को दिए हैं। जांच के दौरान यादव सिंह के प्रमोशन समेत काफी अनियमितताओं की परतें खोली जा रही हैं। एक बात फिल्म यादव सिंह की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

पहली बार 2015 में जांच शुरू हुई थी
सीबीआई का आरोप है कि यादव सिंह ने 2004 से 2015 के दौरान अवैध तरीके से धन इकट्ठा किया है। यादव सिंह ने इस दौरान गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरण में बतौर चीफ इंजीनियर रहते हुए अवैध तरीके से धन एकत्र किया है। भ्रष्टाचार के माध्यम से यादव सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग किया है। यादव सिंह के खिलाफ पहली बार 2015 में जांच शुरू हुई थी। यह जांच तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने शुरू करवाई थी। हालांकि, बाद में यह मामला गौतमबुद्ध नगर पुलिस से हटाकर उत्तर प्रदेश सीबीसीआईडी को दे दिया गया था। कुछ दिन सीबीसीआईडी ने जांच की और बाद में इस मामले को क्लोज कर दिया गया था।

यादव सिंह पर आरोप
सीबीआई के आरोप पत्र में कहा गया है कि यादव सिंह ने अप्रैल 2004 से अगस्त 2015 के बीच आय से अधिक 23.15 करोड़ रुपए जमा किए है। जो उनकी आय के स्रोत से लगभग 512.6 प्रतिशत अधिक हैं। सीबीआई के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह पर कुल 954 करोड़ की धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। यह धोखाधड़ी नोएडा विकास प्राधिकरण में बतौर चीफ इंजीनियर रहते हुए एक अंडर ग्राउंड बिजली केबलिंग का टेंडर छोड़ने में की गई है। जांच में बात सामने आई है कि बिजली का केबल टेंडर होने से पहले ही सड़क के नीचे दबा दिया गया था। टेंडर बाद में किया गया और भुगतान भी बाद में किया गया था।

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