Padmashree Vishwanath Tiwari Said In Gorakhpur Litfest That Human Solution To Problem Is Possible With Combination Of Intelligence And Power
गोरखपुर लिटफेस्ट में बोले पद्मश्री विश्वनाथ तिवारी : विरोध की छूट है लोकतंत्र की सुंदरता, बुद्धिमत्ता और शक्ति के संयोग से समस्या का मानवीय समाधान संभव
Gorakhpur News : पूर्वांचल के बड़े शहरों में शुमार सीएम योगी के गृह जनपद गोरखपुर में शनिवार को दो दिवसीय गोरखपुर लिटफेस्ट 'शब्द संवाद' की शुरुआत हुई। इसका शुभारंभ प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार प्रो. विश्वनाथ तिवारी की अध्यक्षता में हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार अग्नि शेखर रहे। अतिथि वक्ता के रूप में पद्मश्री प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, मेयर डॉक्टर मंगलेश श्रीवास्तव ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम की शुरुआत में सम्मान आमंत्रण समिति के अध्यक्ष प्रो. संजयन त्रिपाठी और कोषाध्यक्ष जीएलएफ अनुपम सहाय ने पद्मश्री प्रो. विश्वनाथ तिवारी का सम्मान किया। मुख्य अतिथि अग्नि शेखर का सम्मान कन्वीनर अचिन्त्य लाहिड़ी एवं कुटुंब ग्लोबल की संयोजक अनुपम श्रीवास्तव ने किया। मेयर डॉक्टर मंगलेश श्रीवास्तव ने कहा कि गोरखपुर लिटफेस्ट गोरखपुर की विकास यात्रा में साहित्यिक विकास के मंच पर नया आयाम स्थापित कर रहा है। साहित्य जगत में लिटफेस्ट का यह छठा अध्याय इतिहास गढ़ेगा, ऐसा विश्वास है।
लोकतंत्र और साहित्य एक दूसरे के पूरक
मुख्य वक्ता कुलदीप सुम्बली उपाख्य अग्निशेखर ने कहा कि स्वामी अमरनाथ की भूमि से गुरु गोरखनाथ की भूमि पर आना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। गोरखपुर की भूमि में चुम्बकत्व है, जो साहित्य प्रेमियों को बरबस ही खींच लेती है। आज के समय में यह विकट समस्या है कि हममें दूसरों को सुनने की आदत खत्म हो गई है। हमारे पूर्वाग्रह ने हमें ऐसा बना दिया है कि हम स्वभाव से लोकतांत्रिक न रहकर वह सुनना पसंद करने लगे हैं, जो हमें सुनना पसंद है। स्वतंत्रता समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तत्त्व आज व्यवाहरिकता से दूर हो रहे हैं। साहित्य शब्द को सबसे पहले कश्मीरी विचारक कुंतक ने प्रयोग में लाया। साहित्यकार स्वयं में एक राजसत्ता होता है। वह सत्ता का चाटुकार नहीं होता। लेखक स्वायत्त होता है। वह किसी रिमोट कंट्रोल का गुलाम नहीं होता। बुद्धिमत्ता और शक्ति के संयोग से किसी भी बड़ी समस्या का मानवीय समाधान किया जा सकता है। शब्द और कर्म की स्वायत्तता से समाज के परिवर्तन की यात्रा पूरी की जा सकती है। लोकतंत्र और साहित्य इस दृष्टि से एक दूसरे के पूरक हैं। लोकतंत्र में प्रश्न पूछना एक महत्वपूर्ण पक्ष है। प्रश्न पूछना तो हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। प्रश्नों पर तो हमारे यहां उपनिषद हैं।
साहित्य की पक्षधर है लोकतंत्र
पद्मश्री प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि लोकतंत्र और साहित्य का बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध है, क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि समस्त शासन प्रणालियों में यह न्यूनतम शासन की अवधारणा और व्यावहारिक रूप से स्वीकार्य होने के कारण सबसे बेहतर शासन प्रणाली है। गांधीजी ने सभ्यता को नीति का पालन करने और इंद्रियों पर अंकुश रखने के रूप में परिभाषित किया। इस परिभाषा के अनुसार, चरित्र रखने वाले समाज को राज्य की कोई आवश्यकता नहीं। यह कोई ज़रूरी नहीं कि जो विकसित हो वह सभ्य भी हो। लोकतंत्र की सबसे सुंदर बात यह है कि उसमें असहमति और विरोध की छूट है। आपातकाल के दौरान लेखक और पत्रकार सर्वाधिक प्रताड़ित किये गए थे, क्योंकि लेखक और साहित्यकार सदैव लोकतंत्र के पक्षधर होते हैं और लिखते समय हर लेखक स्वयं को स्वाधीन मानता है। लेखन की बुनियाद है स्वाधीनता। दुनिया के बड़े से बड़े उल्लेखनीय साहित्य तानाशाही के विरोध में ही लिखे गए हैं। साहित्य के पक्ष में अगर कोई व्यवस्था खड़ी दिखती है तो वह लोकतंत्र है।