Gorakhpur News : बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में संहिता सिद्धांत विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.वीके द्विवेदी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि आयुर्वेद शब्द की स्थापना पहली बार चरक संहिता में हुई। चरक संहिता वास्तव में महर्षि चरक द्वारा जनकल्याण की भावना से रचित देवकृत ग्रंथ है। चरक संहिता में जीवन से जुड़ी हर विद्या का समावेश है। महर्षि चरक ने आयुर्वेद को सिर्फ चिकित्सा शास्त्र ही नहीं, बल्कि सुख-दुख का विज्ञान माना है और उसके अनुरूप मानव जीवन का मार्गदर्शन किया है।
डॉ. द्विवेदी महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय आरोग्यधाम बालापार के गुरु गोरक्षनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में सातवें आयुर्वेद पर्व एवं धन्वंतरि जयंती साप्ताहिक समारोह के अंतर्गत मंगलवार को 'महर्षि चरक' पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने कहा कि महर्षि चरक एक परम योगी एवं परम वैज्ञानिक थे। उनकी महानता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आजीवन लिखते रहने के क्रम में उन्होंने कहीं भी अपने बारे में कुछ भी नहीं लिखा बल्कि सिर्फ जन कल्याण के लिए सूत्र लिखते रहे। चरक संहिता में ही पहली बार आयुर्वेद की परिभाषा मिलती है। उनका मानना था कि जीवन के तत्व की संतृप्त अवस्था ही सुख है। और, जब हम किसी भी तत्व की अवस्था में अतृप्त होते हैं तो दुखी रहते हैं।
उन्होंने कहा कि आज तक कोई भी स्पष्ट रूप से महर्षि चरक के बारे में बताने में समर्थ नहीं है। उनकी चरक संहिता में त्रेता युग की बात कही गई है लेकिन द्वापर युग का जिक्र नहीं मिलता है। इस आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि महर्षि चरक का काल ईसा पूर्व 500 वर्ष पहले का रहा होगा। बहुआयामी दृष्टि वाले महर्षि चरक ने आयुर्वेद शब्द को मानकीकृत रूप में स्थापित किया। आयुर्वेद को कहीं प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि यह महर्षि चरक के काल से ही प्रमाणित है। डॉ द्विवेदी ने बताया कि महर्षि चरक सनातन परंपरा के कट्टर समर्थक थे। अपनी संहिता में आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र के साथ ही जीवन के सभी भौतिक व आध्यात्मिक पक्षों का ज्ञान समाहित कर महर्षि चरक ने समूची मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए जा रहे प्रयासों की मुक्त कंठ से सराहना भी की।
व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डॉ.अतुल वाजपेयी ने कहा कि आयुर्वेद को जानने के लिए इसके जनक महर्षि चरक को जानना अपरिहार्य है। उन्होंने सारगर्भित व्याख्यान के लिए डॉ वीके द्विवेदी के प्रति आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ प्रदीप कुमार राव, गुरु श्री गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज की प्राचार्य डॉ.डीएस अजीथा, डॉ.गणेश पाटिल और डॉ.प्रज्ञा सिंह आदि की सहभागिता रही।