BIG BREAKING : यूपी पंचायत चुनाव का रास्ता साफ़, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की, हाईकोर्ट के आदेश को वैध माना

Tricity Today | यूपी पंचायत चुनाव



UP Panchayat Chunav : उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) से बड़ी खबर सामने आ रही है। अब राज्य में पंचायत चुनाव का रास्ता साफ हो गया है। कोई अड़चन बाकी नहीं रही है। दरअसल, पंचायत चुनाव में आरक्षण प्रक्रिया को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Prayagraj High Court) के आदेश को वैध करार दिया है। लिहाजा, अब राज्य सरकार के सामने आरक्षण लागू करने में कोई बाधा शेष नहीं है। 27 मार्च तक सभी जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायतों में आरक्षण व आवंटन प्रक्रिया पूरी कर दी जाएगी।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर नया पेंच फंस गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में कहा गया कि आरक्षण का आधार वर्ष 1995 को ही माना जाए। वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानकर अगर आरक्षण लागू किया जाएगा तो यह गैर संवैधानिक होगा। इससे दलित, पिछड़ों और महिलाओं के अधिकारों का हनन होगा। सीतापुर के दिलीप कुमार और लाल सिंह यादव की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई। इनका कहना था कि वर्ष 1995 को आधार वर्ष मानकर सीटें आरक्षित की जानी चाहिए। मतलब, अभी जो आरक्षण घोषित किया गया था, वह सही था। वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानकर आरक्षण के फैसले को संविधान के खिलाफ बताया गया। याचियों का कहना था कि वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानने पर दलितों, पिछड़ों, वंचितों और महिलाओं को नुकसान होगा।

पहले सरकार ने 1995 को आधार वर्ष माना
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव करवाने के लिए राज्य सरकार ने आरक्षण की घोषणा कर दी थी। जिलों में लागू किए गए आरक्षण पर आपत्तियां भी ले ली गई थीं। अंतिम रूप से पंचायतों का आरक्षण और आवंटन घोषित किया जाना था। उससे ठीक पहले अजय कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार जनहित याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुनवाई की। याची ने हाईकोर्ट को बताया कि उत्तर प्रदेश में आरक्षण की चक्रीय व्यवस्था वर्ष 1994 में लागू की गई थी। जिसके लिए वर्ष 1995 को आधार वर्ष माना गया। 

पिछली सरकार ने व्यवस्था बदल दी थी
अदालत को बताया गया कि उस समय की जनगणना के आधार पर आरक्षण लागू किया गया। इसी व्यवस्था पर वर्ष 1995, 2000, 2005 और 2010 में पंचायत चुनाव करवाए गए थे। इसके बाद 2015 में राज्य सरकार ने यह व्यवस्था बदल दी। सरकार का तर्क था कि वर्ष 1995 से 2015 तक नए जिलों का गठन किया गया है। नई क्षेत्र पंचायत बनी हैं। ग्राम पंचायतों का परिसीमन भी बदल गया है। जनसंख्या में भी बड़ा बदलाव हुआ है। लिहाजा, अब चुनाव के लिए नया आधार वर्ष 2015 घोषित किया गया।

2015 के चुनाव नई व्यवस्था से हो चुके हैं
अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने चुनाव करवाने के लिए एक बार फिर वर्ष 1995 को आधार वर्ष मानकर आरक्षण घोषित किया था। जिसे जनहित याचिका में चुनौती दी गई। कहा गया कि जब वर्ष 2015 के चुनाव नई व्यवस्था से करवा लिए गए हैं तो एक बार फिर पीछे लौट कर नहीं जाया जा सकता है। इस तर्क को हाईकोर्ट ने उचित करार दिया। सरकार ने भी वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानकर आरक्षण लागू करने की सहमति दे दी। अब सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में कहा गया है कि आरक्षण व्यवस्था वर्ष 1995 के आधार पर ही लागू की जानी चाहिए। जानकारी मिल रही है कि सुप्रीम कोर्ट मामले पर सोमवार को सुनवाई कर सकता है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में बदलाव आने की संभावना बेहद कम है।

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