लारेंस बिश्नोई गैंग ने की थी वर्चुअल कॉल, अपराधी क्यों करते हैं इसका इस्तेमाल

गाजियाबाद के कारोबारी से रंगदारी का मामला : लारेंस बिश्नोई गैंग ने की थी वर्चुअल कॉल, अपराधी क्यों करते हैं इसका इस्तेमाल

लारेंस बिश्नोई गैंग ने की थी वर्चुअल कॉल, अपराधी क्यों करते हैं इसका इस्तेमाल

Tricity Today | साइबर एवं डिजिटल फोरेंसिक एक्सपर्ट अवनीन्द्र कुमार सिंह

Ghaziabad News : गाजियाबाद के बिल्डर सुधीर मलिक को लारेंस बिश्नोई गैंग के नाम पर दो करोड़ की रंगदारी के लिए की वुर्चअल कॉल थी। यह बात पुलिस की जांच में सामने आई है। इस तरह की कॉल में नंबर को ट्रेस करना बहुत मुश्किल होता है। दरअसल वर्चुअल कॉल के लिए कोई सिम इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि एक विशेष तकनीक से वर्चुअल सिम ‌क्रिएट किया जाता है और इस्तेमाल करने के बाद इसे बंद कर दिया जाता है, इसीलिए आजकल अपराधी वर्चुअल कॉल करके अपराध को अंजाम देते हैं। वर्चुअल नंबर कैसे क्रिएट किए जाते हैं, ट्राईसिटी टुडे ने साइबर एवं डिजिटल फोरेंसिक एक्सपर्ट (कंसलटेंट लॉ इन्फोर्समेंट- भारत सरकार) अवनीन्द्र कुमार सिंह से वर्चुअल कॉल के बारे में जानने का प्रयास किया।

लंबी दूरी के टेलीफोन शुल्क कम करने को हुआ था आविष्कार
अवनीन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि वर्चुअल सिम या सेवा का आविष्कार 1990 के दशक में लंबी दूरी के टेलीफोन शुल्क से निपटने के लिए किया गया था।वर्चुअल सिम दरअसल प्ले स्टोर पर उपलब्ध कुछ एप्लिकेशन के माध्यम से उपलब्ध विदेशी नंबर हैं। वे मामूली फीस लेते हैं जिसका भुगतान क्रिप्टो द्वारा उपयोगकर्ता की पहचान छिपाकर आसानी से किया जा सकता है। हालांकि ये एप्लिकेशन उपयोगकर्ताओं के विवरण रिकॉर्ड रखने की कोशिश करते हैं, फिर भी उपयोगकर्ता नकली ईमेल और क्रिप्टो मुद्राओं का उपयोग करके भुगतान के तरीके का उपयोग करके अपनी पहचान छिपा सकते हैं।

कैसे क्रिएट करते हैं वर्चुअल नंबर
साइबर एक्सपर्ट का कहना है कि दरअसल कुछ अवैध वेबसाइट और एप्लिकेशन चार्जेबल आधार पर विदेशी नंबर के लिए व्हाट्सएप ओटीपी प्रदान कर रहे हैं, जिसका भुगतान क्रिप्टो फॉर्म या अन्य स्रोतों से किया जा सकता है। ये वर्चुअल नंबर व्हाट्सएप ओटीपी प्रदान करने वाले विभिन्न अवैध स्रोतों के द्वारा उत्पन्न होते हैं, जिसका अपराधी विभिन्न अवैध गतिविधियों के लिए कॉल करने के लिए उपयोग करते हैं और फिर उपयोग के बाद इन वर्चुअल नंबरों को छोड़ दिया जा सकता है।

पुलवामा हमले में इस्तेमाल हुई थी यह तकनीक
साइबर एवं डिजिटल फोरेंसिक एक्सपर्ट (कंसलटेंट लॉ इन्फोर्समेंट- भारत सरकार) अवनीन्द्र कुमार सिंह ने बताया कि 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में आतंकवादी हमला करने वाले आत्मघाती हमलावरों और उनके आकाओं ने संपर्क में रहने के लिए कथित तौर पर वर्चुअल सिम का इस्तेमाल किया था। इस तंत्र के साथ, कॉल करने वाला व्यक्ति ऐप के अंदर से ही इंटरनेट पर कॉल कर सकता है। ऐसे फोन से की गई वॉयस-ओवर-इंटरनेट-प्रोटोकॉल (VoIP) कॉल सीधे रिसीवर के हैंडसेट से कनेक्ट हो जाती है, उस छोर पर किसी ऐप की आवश्यकता नहीं होती है।

ट्रैक करने का एकमात्र तरीका IPDR डिटेल्स
IPDR, इंटरनेट प्रोटोकॉल डिटेल रिकॉर्ड का संक्षिप्त रूप है, यह एक सॉफ्टवेयर-आधारित तकनीक है। IPDR डेटा में स्रोत और गंतव्य IP पते, पोर्ट, प्रोटोकॉल और नेटवर्क पैकेट के टाइमस्टैम्प के बारे में जानकारी होती है। यह डेटा नेटवर्क ट्रैफिक पैटर्न का विश्लेषण करने, रुझानों की पहचान करने और यह समझने के लिए महत्वपूर्ण है कि डेटा नेटवर्क के माध्यम से कैसे प्रवाहित होता है। यह नेटवर्क ईवेंट में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। सीधे शब्दों में कहें तो IPDR आपके मोबाइल से जुड़ी हुई wifi या अन्य इस्तेमाल की जाने वाली डेटा के स्रोत की निगरानी कर उसके वास्तविक स्रोत तक ले जाने में सक्षम है।

वर्चुअल नंबर ट्रेस करने में दिक्कत क्यों आती है
साइबर एक्सपर्ट बताते हैं कि आजकल अधिकतर साइबर क्राइम वर्चुअल नंबरों से ही होते हैं। वर्चुअल नंबर देखने में इंडियन नंबर ही होते हैं। इस प्रकार के नंबर किसी सिम से कनेक्ट नहीं होते,और वो वर्चुअल नंबर ट्रेस भी नहीं किए जा सकते। ट्रेस करने के लिए केवल IPDR निकालकर ही Proceed कर सकते हैं। इन नंबरों को एक सर्वर द्वारा उत्पन्न किया जाता है। यह अस्थाई इस्तेमाल के लिए होते हैं और इनका गलत इस्तेमाल करके एक सीमित समय के बाद बंद कर दिया जाता है। पुलिस या लॉ इन्फोर्समेंट इसको ट्रेस न कर पाने की सबसे बड़ी वजह है कि हमारे देश के सर्विस प्रोवाइडर्स से इन नंबरों को कोई ताल्लुक ही नहीं होता है। इसलिए वे इनकी डिटेल्स शेयर नहीं कर पाते हैं। 

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