30 साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा, पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने जिम्मेदार अफसरों को घेरा

ग्रेटर नोएडा का मुद्दा : 30 साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा, पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने जिम्मेदार अफसरों को घेरा

30 साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा, पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने जिम्मेदार अफसरों को घेरा

Tricity Today | 30 साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा

Greater Noida News : जहां एक तरफ सरकार पर्यावरण को बढ़ावा देती है। वहीं, दूसरी तरफ कुछ लोग पर्यावरण के दुश्मन बने हुए हैं। ग्रेटर नोएडा में करीब 30 साल पुराने पेड़ों को काटा जा रहा है। इसका मुद्दा पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने उठाया है। इसके अलावा ग्रेटर नोएडा के सिगमा वन में स्थित A-83 प्लॉट के बाहर सरकारी संपत्ति में लगे पेड़ों को गलत तरीके से काट दिया गया। उन्होंने इस मामले की शिकायत ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को दी है। जिसके बाद प्राधिकरण ने शिकायत पर कार्यवाही करना शुरू कर दिया है। यह एक जिले का बड़ा मुद्दा है। 

"इसके जिम्मेदार हम खुद होंगे"
पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड़ ने ट्राईसिटी टुडे से बात करते हुए कहा, "ठेकेदार बिना किसी अनुमति और एनओसी के पेड़ को काट देते हैं। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण और वन विभाग को इस मामले में कोई जानकारी नहीं होती। ग्रेटर नोएडा को "हरित ग्रेटर नोएडा" के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन अगर ऐसा ही चला रहा तो बहुत तेजी के साथ ग्रेटर नोएडा शहर में पेड़ों की संख्या खत्म हो जाएगी और हाल बाकी शहरों की तरह हो जाएगा। जहां पर केवल बड़ी-बड़ी बिल्डिंग और गाड़ियां ही दिखाई देती हैं। इससे प्रदूषण को बढ़ावा मिलेगा। हालात और भी ज्यादा खराब हो जाएगी। इसके जिम्मेदार हम खुद होंगे।"

मथुरा में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई
मथुरा में हाल ही में एक और गंभीर घटना सामने आई। जहां एक बिल्डर ने सैकड़ों पेड़ों को अवैध रूप से काट दिया। रिपोर्ट के अनुसार बिल्डर ने एनओसी प्राप्त करने की प्रक्रिया को लंबा मानते हुए अवैध कटाई का सहारा लिया। यह घटना दर्शाती है कि मौजूदा कानून न केवल कमजोर हैं। बल्कि उनका सख्ती से पालन भी नहीं किया जा रहा है।  

विक्रांत तोंगड की मांग
विक्रांत तोंगड़ ने मांग की है कि जहां पेड़ों की कटाई की गई है, वहां नए पौधे लगाए जाएं और इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कानून लागू किए जाएं। उन्होंने कहा, "हरियाली के संरक्षण के बिना शहरी क्षेत्रों में पर्यावरणीय स्थिरता संभव नहीं है। यह आवश्यक है कि हम अपनी प्राकृतिक धरोहर की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाएं।"

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