Tricity Today | दर्द देकर दवा देने का दावा कर रहे हैं अखिलेश यादव
Greater Noida : ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के बाहर किसानों का धरना 58 दिनों से चल रहा है। ग्रेटर नोएडा के किसान राज्य सरकार से खफा हैं और अपने हक मांग रहे हैं। खास बात यह है कि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी किसानों की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने का दावा कर रही है। अखिलेश यादव के आदेश पर सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने 14 नेताओं का बड़ा प्रतिनिधिमंडल किसानों से मुलाकात करने भेजा। सपा नेताओं ने किसानों के आंसू पोंछे। आश्वासन दिया। किसानों के संघर्ष में साथी बने, लेकिन इस आंदोलन की असली वजह अखिलेश यादव सरकार के फैसले हैं। ट्राईसिटी टुडे ने किसानों की मांगों और उससे जुड़े सरकारी फैसलों का विश्लेषण किया है। यह हम आपके सामने सिलसिलेवार पेश कर रहे हैं।
किसानों की मांग क्या हैं
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के बाहर डेरा डालकर बैठे किसानों की मांग क्या हैं? किसान भूमि अधिग्रहण की एवज में 10% आबादी प्लॉट मांग रहे हैं। किसानों से हुए समझौते और हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक 64.7% अतिरिक्त मुआवजा मांग रहे हैं। आगामी भूमि अधिग्रहण के लिए नए कानून के मुताबिक सर्किल रेट का 4 गुना मुआवजा मांग रहे हैं। नए कानून के अनुसार विकसित 20% प्लॉट और रोजगार की मांग है। किसानों को 17% प्लॉट का कोटा बहाल करने की मांग कर रहे हैं।
अखिलेश यादव सरकार के फैसले
1.10% आबादी प्लॉट : ग्रेटर नोएडा वेस्ट के किसानों और प्राधिकरण के विवाद का निपटारा बहुजन समाज पार्टी की मायावती सरकार के कार्यकाल में किया गया। यह समझौता इलाहाबाद हाईकोर्ट से 19 अक्टूबर 2011 को आए फैसले के जरिए लागू हुआ। जिसमें किसानों को भूमि अधिग्रहण के लिए 10% आवासीय भूखंड देने का नियम बनाया गया। अगले साल 2012 में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार आई। अथॉरिटी ने केवल उन किसानों को 10% प्रतिशत भूखंड देने की बात कही जो हाईकोर्ट गए थे। लिहाजा, यह नया विवाद पैदा हो गया। मामला फिर कोर्ट पहुंचा। अंततः सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को जायज तो ठहराया, लेकिन यह नहीं बताया कि लाभ सभी किसानों को या कोर्ट जाने वालों दें। इसके बाद ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण ने 20 अप्रैल 2016 को एक पत्र तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार को लिखा था। जिसमें प्राधिकरण की 104वीं बोर्ड बैठक का हवाला दिया गया। प्राधिकरण ने शासन से पूछा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट नहीं जाने वाले किसानों को 10% और अधिकतम 2,500 वर्ग मीटर की सीमा तक विकसित आवासीय भूखंडों का आवंटन किया जाए? 21 सितंबर 2016 को औद्योगिक विकास अनुभाग-3 के सचिव अनिल कुमार की ओर से एक पत्र ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को भेजा गया। जिसमें लिखा है, "मुझे यह कहने का निदेश हुआ है कि संदर्भित पत्र द्वारा उपलब्ध कराया गया प्रस्ताव सम्यक विचारोपरान्त स्वीकार करने योग्य नहीं पाया गया है।" मतलब साफ है कि तब सरकार ने प्राधिकरण को कोर्ट नहीं जाने वाले किसानों को प्लॉट देने से इनकार किया था।
2. 64.7% अतिरिक्त मुआवजा : किसानों से हुए समझौते और हाईकोर्ट के आदेश पर 10% आवासीय भूखंड की तरह 64.7% अतिरिक्त मुआवजा देने का फैसला बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने लिया था। अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में 10% भूखंड देने के लिए 20 अप्रैल 2016 को जो पत्र ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण ने भेजा था, उसी में 64.7% अतिरिक्त मुआवजा सभी किसानों को देने की मंजूरी मांगी गई थी। आबादी भूखंड की ही तरह अतिरिक्त मुआवजा देने से भी अखिलेश यादव सरकार ने इनकार कर दिया था।
3. सर्किल रेट का 4 गुना मुआवजा : केंद्र सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण कानून वर्ष 2013 में लागू कर दिया था। खास बात यह है कि मायावती शासनकाल के दौरान वर्ष 2011 में हुए भट्टा-पारसौल कांड के बाद यह कानून अस्तित्व में आया था। मतलब, गौतमबुद्ध नगर में विवादित भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया के चलते केंद्र सरकार को नया कानून बनाना पड़ा था। नए कानून में व्यवस्था दी गई है कि ग्रामीण इलाकों में किसानों को सर्किल रेट से 4 गुना मुआवजा दिया जाएगा। प्राधिकरण के तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी दीपक अग्रवाल ने राज्य सरकार को पत्र लिखा था। जिसमें कहा गया कि प्राधिकरण विकास योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण नहीं कर पा रहा है। नया भूमि अधिग्रहण कानून बेहद जटिल है। इस पर सरकार की ओर से 23 फरवरी 2016 को एक शासनादेश जारी किया गया। जिसमें प्राधिकरण को जिम्मेदारी सौंपी गई कि किसानों से आपसी सहमति के आधार पर जमीन खरीद करने के लिए प्रक्रिया का निर्धारण किया जाए और पॉलिसी बनाई जाए।
4. 17% प्लॉट का कोटा : अब प्राधिकरण 2016 में बोर्ड से अप्रूव्ड पॉलिसी के हिसाब से किसानों को लाभ दिया जा रहा है। वर्ष 2014 में प्राधिकरण बोर्ड ने तय किया था कि आपसी सहमति के आधार पर जमीन देने वाले किसानों को 2,500 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से प्रतिकर और छह फीसदी आबादी भूखंड दिया जाएगा। यदि कोई छह फीसदी भूखंड नहीं लेना चाहता है तो उसे 3,500 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से मुआवजा दिया जाएगा। इसके बाद 23 फरवरी 2016 को जारी शासनादेश के क्रम में प्राधिकरण की 104वीं बोर्ड बैठक (09-03-2016) में निर्णय लिया गया कि किसानों से सीधे क्रय की गई जमीन के एवज में 3,500 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से ही मुआवजा दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त कोई अन्य लाभ नहीं देय होगा। 2014 से पूर्व जिन किसानों की जमीन अधिग्रहित या सहमति से क्रय की गई है, उन सभी किसानों को नियमानुसार मुआवजा और आबादी भूखंद अब भी देय है। वर्तमान समय में सिर्फ सहमति के आधार पर ही किसानों से जमीन खरीदी जा रही है। मतलब, यह अधिकार भी अखिलेश यादव सरकार के वक्त खत्म किया गया था।
क्या बोल रहे हैं नेता
कुल मिलाकर साफ है कि जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो किसानों के हकों को खत्म करने के लिए फैसले लागू किए गए। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाते हुए समाजवादी पार्टी विरोध जता रही है। इस पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजकुमार भाटी कहते हैं, "यह सरकार में बैठे अफसरों की साजिश है। अगर आप देखेंगे तो यह फैसले वर्ष 2016 के आखिरी महीनों में लिए गए हैं। उस वक्त समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई थी। जिसका फायदा अधिकारियों ने मनमानी करने और षड्यंत्र रचने के लिए उठाया। ऐसा कैसे हो सकता है कि जब चुनाव में जाना हो और उससे पहले किसान विरोधी फैसले लिए जाएं?" राजकुमार भाटी आगे कहते हैं, "मैं अपनी बात पर कायम हूं। अगर उस वक्त कोई गलत पत्र जारी हुआ था तो पिछले 6 वर्षों से उसे भारतीय जनता पार्टी ने सुधारा क्यों नहीं है? जिस तरह औद्योगिक विकास विभाग के एक सचिव की चिट्ठी ने सारे किसानों का हक छीन लिया, अब उसी तरह का पत्र भारतीय जनता पार्टी की सरकार को जारी करके किसान हितों को बहाल कर देना चाहिए।"
भारतीय जनता पार्टी के क्षेत्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिसोदिया ग्रेटर नोएडा के रहने वाले हैं। जब उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो वह गौतमबुद्ध नगर भाजपा के जिला अध्यक्ष थे। वह कहते हैं, "सपा और बसपा की सरकारों ने किसान हितों में कोई काम नहीं किया। आप अगर सपा और बसपा सरकार के फैसलों की टाइमलाइन देखेंगे तो मायावती ने अपनी सरकार के आखिरी दिनों में फैसले लिए थे। उनकी सरकार चली गयी और किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पाया। उन्होंने 5 साल तक किसानों को खूब लूटा था। भट्टा-पारसौल और घोड़ी बछेड़ा जैसे बड़े कांड उस सरकार के कार्यकाल के दौरान हुए थे। फिर वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार आई। गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरणों में भ्रष्टाचार बुरी तरह हावी रहा। अखिलेश यादव सरकार ने तो दो कदम आगे बढ़कर किसानों को मिले हक छीन लिए। मैं गौतमबुद्ध नगर के किसानों को भरोसा दिलाना चाहता हूं कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार उनके हितों में फैसले ले रही है। किसान हितों का हनन नहीं होने दिया जाएगा। किसानों की समस्याओं का जल्दी समाधान होगा।"
क्या बोल रहे हैं किसान
प्राधिकरण से मुआवजा बढ़वाने और आवासीय भूखंड हासिल करने की लड़ाई में लंबे अरसे से सक्रिय पतवाड़ी गांव के पूर्व प्रधान टीकम सिंह कहते हैं, "यह हम लोगों का दुर्भाग्य है। जब उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार थी तो किसानों का शोषण हो रहा था। तब समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के नेता हमारी लड़ाई लड़ने का दावा करते थे। इसके बाद समाजवादी पार्टी की सरकार आई। किसानों के हितों में कोई काम नहीं किया। तब भाजपा और बसपा वाले हमें सांत्वना दे रहे थे। सरकार का विरोध कर रहे थे। अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार 6 वर्षों से चल रही है। अब सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी के नेता किसानों के पास आकर भाजपा का विरोध कर रहे हैं। कुल मिलाकर यह सत्ता और विपक्ष की राजनीति है। सत्ता में पहुंचने वाली विपक्षी पार्टी पुरानी सरकार जैसा व्यवहार करने लगती है और सत्ता से बाहर आने वाली पार्टी के नेता विपक्ष पर सत्ता में जाने की वजह से हमला बोलने लगते हैं। हमारे लिए कोई नहीं लड़ रहा है। यह सारे लोग केवल सत्ता के लिए लड़ रहे हैं।"