ऐतिहासिक मौका गंवाया, दो दिन में ही रद्द होने के कगार पर न्यूजीलैंड-अफगानिस्तान टेस्ट, जिम्मेदार कौन?

ग्रेटर नोएडा की दुनिया में बदनामी : ऐतिहासिक मौका गंवाया, दो दिन में ही रद्द होने के कगार पर न्यूजीलैंड-अफगानिस्तान टेस्ट, जिम्मेदार कौन?

ऐतिहासिक मौका गंवाया, दो दिन में ही रद्द होने के कगार पर न्यूजीलैंड-अफगानिस्तान टेस्ट, जिम्मेदार कौन?

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संजीव कुमार सिंह
Greater Noida News :
ग्रेटर नोएडा के शहीद पथिक स्पोर्ट्स कांम्पलेक्स में न्यूजीलैंड और बांग्लादेश के बीच क्रिकेट इतिहास का अनूठा मुकाबला हुआ, जहां दो दिन से मैच के समय के दौरान एक बूंद भी बारिश नहीं हुई लेकिन दोनों दिन का खेल पूरी तरह धुल गया और एक भी गेंद फेंके बिना मुकाबला रद्द घोषित होने की ओर है। अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (ACB) ने बुझे मन से इसकी घोषणा की कि दूसरे  दिन का खेल भी रद्द। इससे सिर्फ देश में ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत और ग्रेटर नोएडा की किरकिरी हो रही है। दोनों देश का मीडिया और सोशल मीडिया व्यवस्थाओं के बारे में कुछ भी अच्छा नहीं लिखेगा। देश के तमाम बड़े अखबारों और चैनल के संवाददाता पहले ही पोल-पट्टी खोलने में लगे हुए हैं। मंगलवार को भारी बारिश के बाद तीसरे दिन के खेल की भी कोई संभावना नजर नहीं आ रही। 

इतने बड़े सितारे शायद ही फिर आएं
शहर के खेल इतिहास का यह सबसे बड़ा मुकाबला था, जिसमें न्यूजीलैंड और अफगानिस्तान जैसी दिग्गज टीमें और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के स्टार आए हुए थे। इनमें केन विलियमसन, टिम साउदी, मिचेल सैंटनर, हशमतुल्ला शाहिदी और रहमत शाह जैसे सुपरस्टार शामिल हैं, जिन्हें खेलते देखना किसी भी खेलप्रेमी का सपना होता है। 
लेकिन, 48 घंटे बीतने के बावजूद ये सितारे मैदान पर अपने देशों की स्पोर्ट्स किट में उतर तक नहीं सके। शायद ही इतने बड़े स्टार एकसाथ फिर शहर में आएं। हैरानी की बात है कि मैच में अब तक टॉस तक नहीं हो सका। अंपायर बार-बार मैदान का निरीक्षण करने आते रहे और लौटते रहे। फर्क बस इतना रहता कि कभी खिलाड़ी उनके साथ मुआयना करते कभी ग्राउंड स्टाफ। 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही मिल सकती थी  
अफगानिस्तान की टीम ने इस मैदान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी है। उन्होंने यहां रहकर खुद को निखारा। अफगान टीम चार साल बाद यहां वापस लौटी। पर अब उनका रुतबा बहुत बड़ा हो चुका है। वे हर दिग्गज टीम को हरा चुके हैं और हाल में टी-20 विश्व कप के सेमीफाइनल तक भी पहुंचे। दुनियाभर के क्रिकेटप्रेमी जुझारू क्रिकेट के लिए अफगान लड़ाकों को खेलते  देखना पसंद  करते हैं। न्यूजीलैंड टीम के कद से तो सभी वाकिफ हैं। 

चार साल में कुछ नहीं बदला
कप्तान शाहिदी ने कहा कि इन चार साल में यहां  कुछ भी नहीं बदला। हम यहां पहले ही नहीं आना चाहते थे। हमारी पहली पसंद लखनऊ और देहरादून के मैदान थे, लेकिन बीसीसीआई ने मंजूरी नहीं दी, क्योंकि दोनों जगहों पर स्थानीय टी-20 लीग खेली जानी थी। क्रिकेट में भारत हमारा घर है पर हम बेहतर मैदान और सुविधाएं चाहते हैं। अफगान बोर्ड के एक अधिकारी ने तो यहां तक कहा था कि वे यहां कभी नहीं आएंगे। कोई भी व्यवस्था से खुश नहीं है। 

सुनहरा मौका गंवाया, ऊपर से फजीहत
प्रशासकों और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के लिए इस मैच का सफल आयोजन बीसीसीआई के सामने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि बेहतर करने का सुनहरा मौका था। यदि मैदान और सुविधाएं बेहतर रहती तो अफगान टीम खुद यहां रुकने और ज्यादा मैच खेलने की पैरवी बीसीसीआई से करती पर अब आलम ये है कि वे मौका मिलने ही यहां से दूसरे शहर का रुख करने को आतुर हैं। अधिकारियों का बदलना और खेलों में रुचि का अभाव भी फजीहत की बड़ी वजह है। मेला कराने और खेल आयोजन कराने में बहुत फर्क है। यह सभी को समझना होगा। 

आगाह करने के बाद भी सबक नहीं सीखे गए
ट्राईसिटी टुडे ने अपनी एक्सक्लूसिव रिपोर्ट्स में बार-बार आगाह किया था कि किन वजहों से बड़ी दिक्कतें हो सकती हैं। पहले ही अंदेशा जता दिया गया था कि खराब और गीले आउटफील्ड के कारण मैच का आयोजन मुश्किल होगा और पूरा मैच की खराब व्यवस्थाओं की भेंट चढ़ सकता है। फिर भी समय होने के बावजूद इनके आधे-अधूरे उपाय ही किए गए। 

ये बड़ी समस्याएं
1. सबसे बड़ी समस्या पानी निकासी को लेकर थी। इसे समय-समय पर परखा जाता है और ठीक किया जाता है। टीमों के आने की घोषणा पहले ही हो चुकी थी और बरसात भी बार-बार हुई। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था मैदान पर पानी कहां रुक रहा है।

2. आउटफील्ड पर बरसात से पहले ही कई जगह पानी रुक रहा था। समय रहते इसे काटकर पोर्टेबल घास बिछाई जा सकती थी। यह काम आनन-फानन में अनगढ़ तरीके से मंगलवार को जाकर किया गया। यह महीना या हफ्ताभर पहले भी किया जा सकता था। पर्याप्त समय था कि ये टुकड़े मैदान से एकाकार हो जाते। सुखाने के केमिकल भी कई जगह इस्तेमाल होते हैं। 

3. मैदान को पूरा ढकने के लिए पर्याप्त कवर ही नहीं हैं। रिपोर्ट छपने के बाद कुछ और कवर मंगाए गए लेकिन ये भी पूरे मैदान को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है। जबकि अब पिच को कवर करने के लिए पहियों पर चलने वाली आधुनिक मशीनें आ चुकी हैं। यहां तो पिच पर दरी बिछाकर और उस पर मोटी पॉलिथीन डालकर ही  काम चलाया जा रहा है। आउटफील्ड को भी पूरी तरह ढकने की व्यवस्था दो दिन की फजीहत के बाद भी नहीं है।
  
4. मैदान को सुखाने के इंतजाम तो जगहंसाई करा रहे हैं। कभी पंखों तो कभी बाल्टी और मग से पानी निकासी की जा रही थी। ग्राउंड स्टाफ की भी मजबूरी है कि उन्हें सीमित संसाधनों में काम करना पड़ता है। सुपर सोपर मैदान से नमी सोखने में सबसे कारगर है। पर यहां पिछले हफ्ते एक ही सोपर था। मैच शुरू होने से ठीक पहले एक और सुपर सोपर मंगाया गया लेकिन इनक क्षमता भी कम है। सोमवार को तो एक बजे तक सुपर सोपर चलाया ही नहीं गया था। अफगानिस्तान के कोच जोनाथन ट्रॉट इससे बेहद हैरान दिखे थे। 

5. समय रहते कुशल स्टाफ की नियुक्ति नहीं की गई। ग्राउंड स्टाफ में पर्याप्त और तकनीकी जानकार मौजूद नहीं हैं। साथ ही इतने बड़े आयोजन की व्यवस्था संभालने के लिए अस्थायी एक्पसर्ट को भी नहीं लिया गया।

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