जिंदा को पूछते नहीं, लेकिन पूर्वजों को खुश करने में लगीं संतानें, देखिए ग्रेटर नोएडा के इन बुजुर्गों का दर्द

सिर्फ श्राद्ध के दौरान ही श्रद्धा : जिंदा को पूछते नहीं, लेकिन पूर्वजों को खुश करने में लगीं संतानें, देखिए ग्रेटर नोएडा के इन बुजुर्गों का दर्द

जिंदा को पूछते नहीं, लेकिन पूर्वजों को खुश करने में लगीं संतानें, देखिए ग्रेटर नोएडा के इन बुजुर्गों का दर्द

Tricity Today | ग्रेटर नोएडा के इन बुजुर्गों का दर्द

Greater Noida News : 'मेरी आंखों का तारा ही मुझे अब आंख दिखाता है, जिसे हर खुशी दी, वही अब हर गम से मिलाता है।' कवि दिनेश रघुवंशी की कविता ग्रेटर नोएडा स्थित रामलाल वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्गों पर सटीक बैठती है। यहां रह रहे बुजुर्गों की संतानों को अपने जिंदा माता-पिता का ख्याल है और ना ही परवाह। लेकिन, श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों को खुश करने में वे कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। इसलिए श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही कोई अपनी मां, तो कोई पिता को अपने साथ घर ले गया। वृद्धाश्रम के अध्यक्ष शिव प्रसाद शर्मा ने बताया कि जो बुजुर्ग श्राद्ध पक्ष में घर जाते हैं, वे श्राद्ध खत्म होते ही वापस आश्रम में आ जाते हैं। कई लोग तो यह कहकर ही अपने माता-पिता को ले गए हैं कि वो श्राद्ध पक्ष के बाद उन्हें यहीं छोड़ जाएंगे।  पिता के श्राद्ध पर मां को ले गया बेटा
दिल्ली निवासी 65 वर्षीय मीना शर्मा का बेटा उनको श्राद्ध पक्ष में घर ले गया। वह एक साल से वृद्धाश्रम में रह रहीं हैं। मीना ने बताया कि पति का निधन हो चुका है। बेटा अपने पिता के श्राद्ध पर मुझे लेने के लिए आया है। 

मां के लिए आई पिता की याद
जेवर के रहने वाले केशव अग्रवाल दो साल से ग्रेटर नोएडा के वृद्धाश्रम में रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि बेटा दो साल से उन्हें सिर्फ अपनी मां के श्राद्ध पर याद करता है। वह श्राद्ध पक्ष पर मुझे ले जाता है, लेकिन उसके बाद फिर से घर में हालात ऐसे हो जाते हैं कि न चाहते हुए भी आश्रम वापस लौटना पड़ता है।

बुजुर्ग जोह रहे अपनों की बाट 
वृद्धाश्रम में रहने वाले कुछ बुजुर्ग अपनों की बाट जोह रहे हैं। आश्रम के गेट पर उनकी निगाहें आज भी अपनों की राह देख रहीं हैं। श्राद्ध पक्ष में कई बुजुर्गों के घर जाने से अन्य लोगों को भी अपनों की याद सता रही है। वो भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उनके बच्चों को भी शायद उनकी याद आएगी।

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