नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है

गौतमबुद्ध नगर भाजपा : नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है

नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है

Google Image | महेश शर्मा और सतवीर गुर्जर |

Noida : अज़ीम शायर राहत इंदौरी ने सियासत पर एक शेर लिखा, "नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है।" यह गौतमबुद्ध नगर में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति या यूं कहिए यहां के सांसद डॉ.महेश शर्मा पर फिट बैठता है। दरअसल, इस जिले में भाजपा की राजनीति का मतलब केवल डॉक्टर साहब की मंशाओं को पूरा करना भर है। लेकिन सियासत पर दूसरा मतला मुनव्वर राणा साहब ने खूब कहा है, "बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है।" रविवार को भाजपा में जिन नेताओं का इस्तक़बाल हुआ, वह सबकुछ इन्हीं दो शेरों के इर्द-गिर्द की कहानी है। जरा समझिएगा!

याराना तो पुराना है
गौतमबुद्ध नगर के गुर्जर समाज में अच्छा-खासा कद रखने वाले सतवीर गुर्जर यकायक बसपा सुप्रीमो मायावती का दुलार भूल बैठे और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए हैं। सतवीर गुर्जर का बसपा शासन में डंका बजता था। अंदाजा इस बार से लगा सकते हैं कि तत्कालीन गौतमबुद्ध नगर के सांसद सुरेंद्र सिंह नागर के लिए बसपा में परेशनियां खड़ी करने वालों में सतवीर गुर्जर भी थे। आपको याद होगा कि 2009 के लोकसभा चुनाव में सुरेंद्र सिंह नागर ने डॉ.महेश शर्मा को चुनाव हराया था। अब सुरेंद्र सिंह नागर भाजपा में हैं। राजयसभा सांसद हैं, राज्यसभा के उपसभापति और उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष हैं। दूसरी ओर बसपा में गुटबाजी के कारण सतवीर गुर्जर परेशान थे। तेजी से हुए शहरीकरण ने गौतमबुद्ध नगर में बसपा की उम्मीदें या कहें कि सतवीर गुर्जर की बसपा में रहते उमीदें धूमिल कर दी हैं। यही वजह रही कि सतवीर गुर्जर दादरी सीट से चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए तो किसान नेता मनवीर भाटी को 'बली का बकरा' बनवा दिया। सतवीर गुर्जर को भारतीय जनता पार्टी में शामिल करवाने में अहम योगदान गौतमबुद्ध नगर के सांसद डॉ.महेश शर्मा का है। पिछले दिनों सांसद खुद चलकर सतवीर गुर्जर के घर पहुंचे थे। तभी तय हो गया था कि सतवीर भाजपा जाने वाले हैं। कुल मिलाकर साफ है कि महेश शर्मा और सतवीर गुर्जर की जुगलबंदी पुरानी है। बसपा शासनकाल में डॉ.महेश शर्मा पर बड़ा संकट आया था, तब सतवीर गुर्जर ही तारणहार बने थे। 

सिंहों की जुगलबंदी से सिरदर्द
एक कहावत सुनी होगी, "बाते हाथी पाइए, बाते हाथी पांव।" सांसद डॉ.महेश शर्मा की बोलने में बराबरी कोई नहीं कर सकता है। उनकी बातों ने सुरेंद्र सिंह नागर और जेवर के विधायक धीरेन्द्र सिंह को खुद-ब-खुद साथ आने के लिए मजबूर कर दिया। सुरेंद्र नागर भाजपा में हैवीवेट हो गए तो महेश शर्मा शर्मा असहज महसूस करने लगे। फिर यूपी विधानसभा चुनाव से पहले डंके की चोट पर धीरेन्द्र सिंह का टिकट कटवाने का ऐलान किया। टिकट नहीं कट पाया। इसके बाद धीरेन्द्र सिंह को चुनाव हरवाने के लिए खुलेआम मुखालफत की गई। महेश शर्मा सीएम और डिप्टी सीएम के कार्यक्रमों में प्रोटोकॉल निभाने नहीं पहुंचे। परिणाम भाजपा के पक्ष में आया लेकिन डॉ.महेश शर्मा के लिए आशातीत नहीं रहा। लिहाजा, जिले से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक यह पूरा खेल खुलकर सामने आ गया। हालांकि, वह अब त्रिपुरा, हिमाचल और गुजरात चुनाव छोड़कर सीएम की अगुवानी का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रहे हैं। सीएम के साथ कार में बैठकर अभिभूत हैं।

त्रिपुरा, श्रीकांत और नरेंद्र भाटी
जिले में सबसे ज्यादा गुर्जर नेता अब बीजेपी में हैं। अब सतवीर की बीजेपी में एंट्री का क्या फायदा होगा? यह तो भविष्य बताएगा लेकिन इस एंट्री के तीन बड़े फैक्टर हैं। जेवर सीट के विधानसभा चुनाव से सांसद की छवि पर बड़ा डेंट लगा। इस बात को वह भी जानते हैं। समाजवादी पार्टी से एमएलसी नरेंद्र भाटी को लेकर आए थे। वह भाजपा में भी एमएलसी समायोजित हो गए। बात फैलाई गई कि अब उनके पास सुरेंद्र सिंह नागर और ठाकुर धीरेन्द्र सिंह की जुगलबंदी का जवाब है। नरेंद्र सिंह भाटी के भाई कैलाश भाटी की भूमिका तुस्याना भूमि घोटाले में सामने आई और उन्हें जेल जाना पड़ा। लिहाजा, इस क्रेकडाउन ने सांसद शिविर को और बट्टा लगाया है। सुरेंद्र नागर भाजपा में उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद पर हैं। डॉ.शर्मा दूसरी मोदी सरकार में मंत्री नहीं बन पाए। संदेश दिया गया कि पिछली बार की तरह कैबिनेट एक्सपेंशन में जगह जरूर मिल जाएगी। यह भी निरहा शिगूफा रह गया। नोएडा में श्रीकांत त्यागी प्रकरण ने रही-सही कसर पूरी  कर दी। यह पूरी कहानी सबको याद है। तंबू में हो चुके इन सारे छेदों पर पैबंद लगाने के लिए किसी तरह संगठन में जुगाड़ बैठकर गौतमबुद्ध नगर लोकसभा क्षेत्र की ही बराबर जनसंख्या वाले त्रिपुरा के प्रभारी बनने में कामयाब हो गए। इस नियुक्ति पर बधाइयां मिलने की बजाय हल्ला मच गया, "डॉक्टर साहब का जिले से पत्ता साफ हो गया है, इस बार लोकसभा का टिकट तो मिलने से रहा। अब तो राज्यसभा ही मिल जाए तो बड़ी बात है।"

नए किरदार आते जा रहे हैं...
अब फिर धुल-गुबार उड़ाया गया है। कहा जा रहा है कि यह सब आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महेश शर्मा ने मास्टर स्ट्रोक चला है। लेकिन हकीकत राहत इंदौरी के शेर, "नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है" वाली ही है। इससे पहले महेश शर्मा पूर्व मंत्री नरेंद्र भाटी को साइकिल से उतारकर ला चुके हैं। हाथी से उतारकर पूर्व मंत्री वेदराम भाटी बैंच पर बैठकर वेट कर रहे हैं। अब वहीं से सतवीर गुर्जर आकर बैठ गए हैं। और भी तमाम लोग हैं। इन सबकी पुरानी पार्टियां सत्ता से बाहर हैं और अभी रास्ता कठिन है। लिहाजा किसी को राजनीतिक जमीन बचाने, किसी को कारोबार बचाने और किसी को घोटालों की जांच से बचने के लिए सत्ता शिविर से नजदीकी बनाना जरूरत है। दूसरी और मुनव्वर राणा का शेर "बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है, बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है, महेश शर्मा के हालात बयां कर रहा है।

एक एंट्री तो दूसरा एक्जिट पॉइंट पर
भारतीय जनता पार्टी में इन जॉइनिंग का मकसद बस एक ही है। सांसद डॉ.महेश शर्मा पार्टी के बड़े नेताओं को दिखाना चाहते हैं कि जिले में तमाम पार्टियों के तमाम नेताओं बुलाकर वह भाजपा में खड़ा कर सकते हैं। उनकी जिले ताकत बरकरार है। दूसरी ओर जिले में अपने विरोधियों को अपनी ताकत का एहसास करवाना चाहते हैं। संदेश देना है कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी में कमजोर समझने की हिमाकत ना करें, ऊपर तक पहुंच है। लेकिन इस सबके बीच वह एक कहावत भूल रहे हैं, "ज्यादा जोगी मठ उजाड़।" ये जो लोग आ रहे हैं, उनकी इच्छाएं और महत्वकांक्षाएं कैसे पूरी होंगी? आज से ही जिले में चर्चाएं चल पड़ी हैं, सतवीर गुर्जर तो दादरी से अगला विधानसभा चुनाव लड़ने आए हैं।

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