ना खाता ना बही, जो मोहिंदर ने किया वह सही, बिल्डरों के लिए प्राधिकरण बोर्ड बनाया पंगु

नोएडा में डकैती : ना खाता ना बही, जो मोहिंदर ने किया वह सही, बिल्डरों के लिए प्राधिकरण बोर्ड बनाया पंगु

ना खाता ना बही, जो मोहिंदर ने किया वह सही, बिल्डरों के लिए प्राधिकरण बोर्ड बनाया पंगु

Tricity Today | मोहिंदर

Noida News : नोएडा अथॉरिटी में बतौर मुख्य कार्यपालक अधिकारी रहते मोहिंदर सिंह की अगुवाई में भ्रष्टाचार को संस्थागत रूप दिया गया। इसके लिए प्राधिकरण में तय व्यवस्थाओं, नीतियों और नियमों को  खत्म दिया गया या इस तरह तोड़-मरोड़ दिया गया कि मनपसंद बिल्डरों को भरपूर फायदा पहुंचाया जा सके। प्राधिकरण का सबसे शक्तिशाली निकाय बोर्ड पूरी तरह कठपुतली बनकर रह गया था। बोर्ड में मनमर्जी के सदस्य नियुक्त किए जाते थे। प्रदेश के किसी भी हिस्से में तैनात किसी भी विभाग के छोटे अफसरों को सदस्य नियुक्त किया जाता था, ताकि मोहिंदर सिंह आसानी से मनमानी कर सकें। ट्राईसिटी टुडे डॉट कॉम की इन्वेस्टिगेशन में ऐसे ही चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।

स्कीम लाने से पहले बोर्ड की मंजूरी नहीं
नोएडा प्राधिकरण कोई भी ग्रुप हाउसिंग योजनाएं लाने से पहले विवरणिका (स्कीम ब्रोशर) तैयार करता है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ बिडिंग करने के लिए तकनीकी और वित्तीय पात्रता के मानदंड निर्धारित किए जाते हैं। भूमि आवंटन, भुगतान और परियोजना कार्यान्वयन के लिए सभी नियम और शर्तें निर्धारित की जाती हैं। सीएजी ने जब जांच की तो पता लगा कि ग्रुप हाउसिंग स्कीम्स के ब्रोशर मनमाने ढंग तैयार किए गए। योजना शुरू करने से पहले बोर्ड से नियमों और शर्तों को मंजूरी नहीं दिलाई गई। नोएडा का बोर्ड इसका सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है। महत्वपूर्ण मामलों को विचार और अनुमोदन के लिए बोर्ड के समक्ष रखा जाना चाहिए।

अथॉरिटी और फ्लैट खरीदार बर्बाद हुए
उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम-1976 की धारा 6(2)(एफ) में प्रावधान है कि औद्योगिक, वाणिज्यिक या आवासीय उद्देश्यों के लिए भूमि के भूखंडों का आवंटन और हस्तांतरण, चाहे बिक्री या पट्टे के माध्यम से की जाए, यह सबसे महत्व का काम है। आवंटन के लिए योजना विवरणिका एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो परियोजना की बोली, आवंटन और पट्टा निष्पादन की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। ब्रोशर में नोएडा अथॉरिटी आवंटन के नियम और शर्तें बताई जाती हैं। आवंटी बिल्डरों से अपेक्षा की जाती है कि वे ब्रोशर के नियमों व शर्तों के अनुसार बोली लगाएंगे। इसलिए, इस दस्तावेज को प्रस्ताव आमंत्रण के बराबर माना जा सकता है, जो भविष्य में परियोजना को पूरा करने के लिए आवंटी बिल्डर और नोएडा के बीच समझौते का आधार बनता है। इसके अलावा ब्रोशर के नियम व शर्तें बिल्डर और घर खरीदारों के बीच होने वाले समझौते (बिल्डर-बायर एग्रीमेंट) का आधार भी बनती हैं। लिहाजा, योजना को लॉन्च करने से पहले ब्रोशर को बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए था। आवंटन के नियमों व शर्तों में किए गए बदलाव को बोर्ड से अनुमोदित करवाया जाना चाहिए था। ऐसा नहीं किया गया और मनमाने नियम बनाए गए।

ना खाता ना बही, जो मोहिंदर ने किया वह सही
प्राधिकरण के अभिलेखों की जांच से पता चला कि सभी योजनाओं के ब्रोशर मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ने अनुमोदित किए थे, लेकिन 2005-06 से 2017-18 की अवधि के दौरान 28 योजनाओं में से केवल पांच में योजना की घोषणा से पहले ग्रुप हाउसिंग विंग ने बोर्ड की मंजूरी ली थी। इस अवधि के दैरान 82 प्रतिशत योजनाएं लॉन्च से पहले अनुमोदन के लिए बोर्ड को प्रस्तुत नहीं की गईं। पांच ब्रोशर जहां बोर्ड की कार्योत्तर स्वीकृति प्राप्त की गई थी, उसमें भी देरी की गई। योजना लॉन्च करने की तारीख से दो दिन पहले थी। 10 योजनाओं में तो ब्रोशर कार्योत्तर स्वीकृति के लिए भी बोर्ड को प्रस्तुत नहीं किया गया था। यह तथ्य कि 82 प्रतिशत योजनाओं को लॉन्च करने से पहले बोर्ड से अनुमोदित नहीं करवाया गया था, इससे पता चलता है कि योजना शुरू करने से पहले आवंटन की शर्तों में बदलाव से बोर्ड को अवगत नहीं कराया गया था।

एस्क्रो एकाउंट और बैंक गारंटी जैसे बड़े नियम हटाए
सीईओ की मंजूरी से एस्क्रो खाता खोलने और एक किस्त के बराबर बैंक गारंटी के प्रावधान जैसे खंडों को हटा दिया गया था। इतने संवेदनशील निर्णय पर बोर्ड से मंजूरी नहीं ली गई। बोर्ड ने स्कीम ब्रोशर में शामिल आवंटन के नियमों और शर्तों को तय करने के संबंध में शक्तियों का प्रयोग नहीं किया। सीएजी ने पाया कि योजना के नियम और शर्तें निर्धारित करना और उसके अनुसार आवंटन करना नोएडा बोर्ड द्वारा किए जाने वाले कार्यों का सबसे आवश्यक पहलू है। लेकिन इतने बड़े फैसले भी बोर्ड को दरकिनार करके लेना सीईओ की मनमानी थी। यह बोर्ड की विफलता थी।

सीएजी ने कहा- बड़े पैमाने पर गड़बड़ी कीं
सीएजी ने इन घोर अनियमितताओं पर प्राधिकरण से जवाब मांगा। नोएडा अथॉरिटी ने कहा कि यूपीआईएडी अधिनियम-1976 के तहत नोएडा को जमीन बेचने, पट्टे पर देने और स्थानांतरित करने का अधिकार दिया है। फरवरी 1996 में आयोजित 85वीं बोर्ड बैठक में यह निर्धारित किया गया था कि समय-समय पर नोएडा बोर्ड इन कार्यों के लिए सीईओ को अधिकृत कर सकता है। इस प्रकार, योजनाओं को लॉन्च करने से पहले बोर्ड की मंजूरी लेना आवश्यक नहीं था। बोर्ड ने सीईओ को नोएडा में भूमि अधिग्रहण और संपत्तियों के आवंटन के लिए अधिकृत किया है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि योजनाओं के नियमों और शर्तों में परिवर्तन किया गया, जो नोएडा के हित के खिलाफ थे। पिछली अच्छी प्रथाओं खत्म किया गया। बोर्ड की मंजूरी के बिना एस्क्रो खाते खोलने के नियम को हटाना और बैंक गारंटी के क्लॉज को हटाना बेहद गंभीर है।

नोएडा प्राधिकरण के सीईओ का बयान
इस मुद्दे के जवाब में नोएडा अथॉरिटी ने आगे कहा कि सीईओ उन मामलों को मंजूरी या कार्योत्तर मंजूरी के लिए बोर्ड को भेजता है, जिसमें योजना या नीतिगत मामले की शर्तों और नियमों में बदलाव शामिल होता है। इसलिए, यह स्पष्ट है कि सभी नियम और शर्तें में बदलाव बोर्ड द्वारा अनुमोदित किए जाने चाहिए थे। इन नियमों को बदलने के लिए बोर्ड की पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई थी।

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