शतरंज ओलंपियाड स्वर्ण विजेता वंतिका के लिए मां अपना करियर छोड़कर बनी मेंटोर और मैनेजर 

नोएडा की शान : शतरंज ओलंपियाड स्वर्ण विजेता वंतिका के लिए मां अपना करियर छोड़कर बनी मेंटोर और मैनेजर 

शतरंज ओलंपियाड स्वर्ण विजेता वंतिका के लिए मां अपना करियर छोड़कर बनी मेंटोर और मैनेजर 

Tricity Today | वंतिका और मां संगीता अग्रवाल

Noida News : नोएडा की बेटी वंतिका अग्रवाल ने शतरंज ओलंपियाड में शानदार प्रदर्शन कर देश और शहर का नाम रोशन कर दिया। रविवार को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में वंतिका ने न सिर्फ अपने बोर्ड पर कमाल का प्रदर्शन करते हुए व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता बल्कि महिला टीम को भी शतरंज ओलंपियाड में खिताब जितवाया। वह 2020 में भी शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रही थीं। 49वें शतरंज ओलंपियाड में वंतिका ने बोर्ड-4 पर खेलते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। भारत की महिला और पुरुष टीमों ने पहली बार दोनों वर्गों के खिताब जीतकर इतिहास रचा। उनके अलावा बोर्ड-1 पर डी गुकेश तीसरे बोर्ड पर ई. अरुण और  महिलाओं के बोर्ड-3 पर दिव्या देशमुख ने स्वर्ण जीता।

संगीता साए की तरह रहती हैं बेटी के साथ  
नोएडा के सेक्टर-27 में रहने वाली वंतिका मां की बेहद लाडली हैं। उनकी सफलता में मां संगीता अग्रवाल की सबसे बड़ी भूमिका रही है। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) संगीता शुरू से ही उनके खेल प्रबंधक की भूमिका में रही। बेटी के लिए उन्होंने खुद के करियर की परवाह नहीं की। वह हर टूर पर साए की तरह बेटी के साथ रहती हैं और मां और मैनेजर की भूमिका निभाती हैं। यह भी इत्तेफाक की बात है कि उन्हें पहला ग्रैंड मास्टर नॉर्म अपनी मां के जन्मदिन पर मिला था और दूसरा अपने पिता के बर्थडे पर। हर बड़े मैच से पहले मां उनका हौसला बढ़ाती हैं लेकिन हार पर कभी गुस्सा नहीं करती बल्कि गले लगाकर दिलासा देती हैं। वंतिका बताती हैं, शुरू में मुझे हारने पर बहुत गुस्सा आता था। यहां तक की नींद में भी बड़बड़ाती थी। पर मेरी मां मुझे संभाल लेती थी। वक्त के साथ मैं मैच्योर हो गई हूं।

बचपन में पिता ने दिलाया चेस बोर्ड
टूर्नामेंट के लिए मां के साथ हंगरी रवाना होने से पहले वंतिका ने अपनी हर सफलता का श्रेय परिवार को ही दिया था। पिता आशीष अग्रवाल ने जब स्कूल के दिनों में उन्हें चेस बोर्ड लाकर दिया था, तब उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनकी बेटी इस खेल में परिवार का सिर गर्व से ऊंचा कराएगी और भारत के लिए इतिहास रच देंगी। 

तेज बुखार के बावजूद चैंपियन बनीं
वंतिका ने साढ़े सात साल की उम्र में पहली बार चेस बोर्ड को छुआ, तब से यह उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया। शुरू के दो साल वह अपने भाई विशेष के साथ खेलती थी। दोनों स्कूल में चेस सीखते थे। खेल के लिए वंतिका के जुनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह 2011 में उन्होंने अंडर-9 एशियन गर्ल्स टूर्नामेंट के सात राउंड 102 डिग्री बुखार के बावजूद खेले और खिताब जीता। 

आठ घंटे रोजाना प्रैक्टिस, बैडमिंटन, योग भी
वंतिका की सफलता सिर्फ इत्तेफाक नहीं बल्कि प्रतिभा के साथ कड़ी मेहनत का फल है। उन्होंने बताया था कि वह आठ घंटे शतरंज की प्रैक्टिक करती हैं। उन्हें बैडमिंटन खेलना भी बेहद पसंद है। वह सुबह एक घंटा योग करती हैं। जब वह स्कूल जाती थी जब भी चार घंटे प्रैक्टिस के लिए निकालती थी। 

आमिर खान की दंगल पसंदीदा मूवी
पहले वंतिका दर्वोत्स्की की किताब से शतरंज की तैयारी करती थी। इसके बाद उन्होंने रूसी दिग्गज अनातोली कार्पोव का स्टाइल अपनाया। अब वह शतरंज के रॉकस्टार मैगनस कार्लसन को फॉलो करती हैं। खाली समय में भी वंतिका को शतरंज से जुड़ी खबरें और मैच देखने का ही शौक है। उन्हें फिल्में देखना भी पसंद है और आमिर खान की दंगल उनकी पसंदीदा मूवी है।

राष्ट्रपति, पीएम और सीएम से मिल चुका सम्मान
वंतिका पिछले साल ही 11वीं अंतरराष्ट्रीय महिला मास्टर का बनी थीं। उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में भी शानदार प्रदर्शन कर जीत हासिल की थी। इस साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वंतिका को सम्मानित भी किया था। वंतिका ने 2021 में महिला ग्रैंड मास्टर का खिताब हासिल किया। खेल में लगातार अच्छे प्रदर्शन के लिए वंतिका को प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं। एशियन गेम्स में रजत पदक हासिल करने के बाद वंतिका को योगी आदित्यनाथ ने बुलावा भेजा था। उन्हें डेढ़ करोड़ रुपये का चेक देने के साथ सरकारी नौकरी भी दी गई थी।

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