Tricity Today | दिल्ली के चारों ओर 8 रैपिड रेल दौड़ेंगी
New Delhi : अगले कुछ ही दिनों में देश की पहली हाई स्पीड रैपिड रेल दौड़ना शुरू कर देगी। इसके साथ लोग रैपिड रेल में सफर का आनंद लेने लगेंगे। लेकिन यह तो बस शुरुआत है। दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल के बाद एनसीआर में कई और शहरों तक रैपिड रेल ले जाने की सरकार तैयारी कर रही है। बहुत जल्दी इन दूसरे प्रोजेक्ट पर भी काम शुरू हो जाएगा। वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली से 100 किलोमीटर के दायरे में चारों ओर रैपिड रेल का जाल फैल जाएगा।
सबसे पहले दिल्ली से दुहाई चलेगी रैपिड रेल
पहला रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) दिल्ली से मेरठ तक विकसित किया जा रहा है। इसके पहले हिस्से दिल्ली सीमा से लेकर गाजियाबाद में दुहाई तक परिचालन शुरू होगा। यह 17 किलोमीटर का खंड है। जिस पर बहुत जल्दी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रैपिड रेल को हरी झंडी दिखाएंगे। मिली जानकारी के मुताबिक आरआरटीएस कॉरपोरेशन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर वक्त मांग लिया है।
मेरठ में रहकर दिल्ली और नोएडा में काम करेंगे लोग
यह दिल्ली-मेरठ कॉरिडोर का 20% हिस्सा होगा। साल 2025 तक यह प्रोजेक्ट पूरी तरह ऑपरेशनल हो जाएगा। तब रैपिड रेल दिल्ली से मेरठ के पल्लवपुरम तक दौड़ने लगेगी। इसके बाद राजधान दिल्ली और पश्चिमी यूपी के सबसे महत्वपूर्ण शहर मेरठ के बीच 82 किलोमीटर की यात्रा महज एक घंटे में पूरी होगी। इसके बाद दिल्ली या नोएडा में काम करने वाले लोगों का मेरठ में रहना संभव हो जाएगा। इसके बाद कुछ और शहरों में रैपिड रेल चलाने का रास्ता साफ हो जाएगा। हालांकि, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार आरआरटीएस नेटवर्क को कितनी तेजी से आगे बढ़ाती है।
भविष्य में इन शहरों को जोड़ेगी आरआरटीएस
भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय से जुड़े एक शीर्ष अधिकारी ने बताया, "रैपिड रेल का मकसद आने वाले दशकों में मोबिलिटी को तेज करना है। दरअसल, दिल्ली-एनसीआर बेहद तेजी से फैल रहे हैं। दिल्ली से 100 किलोमीटर के दायरे में चारों ओर एक मुकम्मल महानगर शक्ल ले रहा है। यह महानगर ना केवल भारत बल्कि एशिया और दुनिया का सबसे बड़ा महानगर बन सकता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं मानकर चल रही हैं कि वर्ष 2050 तक दिल्ली-एनसीआर के रूप में मेट्रोपोलिस बनने वाले इस शहर की आबादी 25 करोड़ तक हो सकती है। ऐसे में हर किसी का दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुड़गांव, फरीदाबाद और सोनीपत में आकर बसना संभव नहीं होगा। ऐसे में रैपिड रेल काम आएगी और यह 100 किलोमीटर के दायरे को समेट देगी। तब मेरठ, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, मथुरा, आगरा, अलवर, पानीपत, कुरुक्षेत्र, रोहतक, हिसार और झुंझुनू जैसे शहरों के लोग दिल्ली-एनसीआर में सुबह शाम आवागमन करेंगे। मतलब लोग अपने घरों से दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और गुड़गांव नौकरी करने एक घण्टे में आ-जा सकेंगे। अभी यह सफर करने में 3-4 घंटे लगते हैं। इसमें आरआरटीएस जैसी फास्ट मोबिलिटी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
वर्ष 1998 में महसूस हुई आरआरटीएस की जरूरत
अर्बन प्लानर और आर्किटेक्ट राज गर्ग कहते हैं, "रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम कोई नई सोच नहीं है। इसकी जरूरत वर्षों पहले महसूस कर ली गई थी। बीजिंग, टोक्यो, मॉस्को, न्यूयॉर्क और वाशिंगटन जैसे अंतरराष्ट्रीय महानगरों में दशकों से रैपिड रेल का उपयोग किया जा रहा है। ये शहर उन महानगरों के केंद्र में हैं। चारों ओर 100-200 किलोमीटर के दायरे में रैपिड रेल लोगों को सुबह-शाम कामकाजी स्थलों तक लाती और ले जाती हैं।" राज गर्ग ने आगे कहा, "आरआरटीएस की आवश्यकता 1998 में उस वक्त महसूस की गई जब भारतीय रेलवे ने इसे दिल्ली-एनसीआर में भविष्य में यातायात के लिए एक विकल्प के रूप में पेश किया था। दरअसल, दिल्ली, गुरुगुग्राम, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और एनसीआर के अन्य जिले एक-दूसरे के बेहद नजदीक है। इन सारे शहरों की आबादी सघन है। ये शहर पहले से ही भारत के सबसे बड़े शहरी समूह हैं। अगर सब कुछ सही रहा तो अगले 10 वर्षों में भारतीय रैपिड रेल दुनिया का सबसे बड़ा नेटवर्क बन सकता है।"
रेलवे बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन ने खींचा था खाका
प्रारंभिक योजना मौजूदा रेलवे कॉरिडोर के साथ आरआरटीएस बनाने की थी। उस समय रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने सर्वे के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक सैलून कोच में यात्रा की थी। इसके बाद बाकायदा एक प्रोजेक्ट तैयार किया गया। वह प्रोजेक्ट रिपोर्ट रेलवे मिनिस्ट्री ने शहरी विकास मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय और दूसरे जिम्मेदार मंत्रालयों के पास भेजी थी। राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं के चलते तब आरआरटीएस की योजना परवान नहीं चढ़ सकी। यह प्रोजेक्ट करीब 10 साल बाद 2009 में पुनर्जीवित हुआ। तब एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने एनसीआर महायोजना-2032 पेश की। जिसमें परिवहन पर कार्यात्मक योजना शामिल की गई। जिसमें दिल्ली से मेरठ, रेवाड़ी, पानीपत, पलवल, रोहतक और बड़ौत को तेजी फास्ट कनेक्टिविटी देने के लिए 520 किलोमीटर की लंबाई वाले आठ आरआरटीएस कॉरिडोर विकसित करने का प्रस्ताव दिया गया। दो अन्य कॉरिडोर गाजियाबाद से खुर्जा और हापुड़ तक प्रस्तावित किए गए थे।
सबसे पहले इन 3 रूटों पर रैपिड रेल चलाने का प्रस्ताव
एनसीआर मोबिलिटी प्लान में प्रस्ताव रखा गया कि पहले चरण में तीन प्राथमिकता वाले कॉरिडोर विकसित किए जाएं। जिनमें दिल्ली-मेरठ (82 किमी) दिल्ली-गुड़गुगांव-अलवर (198 किमी) और दिल्ली-सोनीपत-पानीपत (103 किमी) शामिल थे। साल 2011 में यूपीए सरकार ने परियोजनाओं को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी। साल 2013 में एनसीआर ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (एनसीआरटीसी) को आरआरटीएस बनाने के लिए एक कंपनी के रूप में स्थापित किया गया। इतना ही नहीं भविष्य में दिल्ली-मेरठ कॉरिडोर दिल्ली-अलवर कॉरिडोर से जुड़ा होगा। जिससे गुड़गांव और आईजीआई हवाईअड्डा आरआरटीएस नेटवर्क में शामिल हो जाएगा। लिहाजा, रैपिड रेल कामकाजी आबादी के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक केंद्रों को छूएगी। इससे रैपिड रेल को राइडरशिप मिलेगी।
सड़कों से कारों की संख्या घटाएगा रैपिड रेल सिस्टम
उत्तर रेलवे में कार्यरत रहे अधिकारी एके शर्मा ने कहा, "अब जमाना बदल गया है। पुरानी भारी-भरकम डीजल रेल खत्म हो गई हैं। बिजली से चलने वाली सुपरफास्ट ट्रेन आ गई हैं, जो महानगरों की मोबिलिटी बढ़ाती हैं। एक बार एनसीआर में रैपिड रेल का नेटवर्क बिछ गया तो अगले 100 सालों की समस्या खत्म कर देगी। सड़कों से कारों की मात्रा कम होने की संभावना बढ़ जाएगी। वाहनों से फैल रहा प्रदूषण घटाने में यह मदद करेगी।"
खत्म होगी दिल्ली-नोएडा में बसने की मजबूरी
एके शर्मा आगे कहते हैं, "हर कोई दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम में क्यों बसना चाहता है? जब लोग यहां नौकरी करते हैं तो 100 किलोमीटर दूर अपने पैतृक गांव से फिलहाल आवागमन नहीं कर पाते हैं। इसलिए महंगे और संसाधन विहीन होने के बावजूद इन शहरों में बसना मजबूरी है। रैपिड रेल इस समस्या का समाधान करेगी। इसके बाद कोई इन महंगे शहरों में रहना क्यों पसंद करेगा? मेरठ, बागपत, अलवर, कुरुक्षेत्र और इसी तरह के बाकी अन्य शहरों में लोग खुली और ताजी हवा में रहना आज भी ज्यादा पसंद करते हैं। रैपिड रेल लोगों की समस्या का निराकरण कर देगी।"