लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन : दिल्ली एम्स में लीं अंतिम सांस, पीएम मोदी और सीएम योगी ने जताया शोक

Google Image | लोक गायिका शारदा सिन्हा 



Delhi News : प्रसिद्ध लोक गायिका पद्मभूषण से सम्मानित सिन्हा 72 वर्षीय शारदा सिन्हा का निधन दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ। वे पिछले कुछ दिनों से गंभीर स्थिति में आईसीयू में भर्ती थीं और सोमवार शाम को वेंटिलेटर पर थीं। उनके बेटे अंशुमन सिन्हा ने सोशल मीडिया पर इस दुखद समाचार की जानकारी दी। शारदा सिन्हा का इलाज 22 अक्टूबर से एम्स में चल रहा था। उनका स्वास्थ्य स्थिर नहीं था और मंगलवार को उनका निधन हो गया। 4 अक्टूबर को उनका अंतिम छठ गीत यूट्यूब पर जारी किया गया था। शारदा सिन्हा की आवाज़ भारतीय लोक संगीत में अमिट छाप छोड़ गई है। शारदा सिन्हा बिहार की कोकिला' नाम से भी मशहूर थी। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शारदा सिन्हा के निधन पर शोक जताते हुए एक्स पर लिखा कि सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनके गाए मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत पिछले कई दशकों से बेहद लोकप्रिय रहे हैं। आस्था के महापर्व छठ से जुड़े उनके सुमधुर गीतों की गूंज भी सदैव बनी रहेगी। उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!

सीएम योगी आदित्यनाथ ने संगीत जगत की अपूरणीय क्षति बताया
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकगायिका, पद्म भूषण शारदा सिन्हा के निधन पर शोक व्यक्त किया। सीएम योगी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट 'एक्स'पर पोस्ट कर उनके निधन को संगीत जगत की अपूरणीय क्षति बताया।  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लिखा कि प्रख्यात लोक गायिका, पद्म भूषण डॉ. शारदा सिन्हा जी का निधन अत्यंत दुःखद व संपूर्ण संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि! मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि उन्होंने अपने उत्कृष्ट पारंपरिक गायन के माध्यम से मैथिली, भोजपुरी सहित अनेक लोक भाषाओं और लोक संस्कृति की सेवा की तथा राष्ट्रीय पटल पर उन्हें सम्मान दिलाया। सीएम योगी ने लिखा-प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्री चरणों में स्थान तथा उनके शोकाकुल परिजनों एवं प्रशंसकों को यह अथाह दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें। ॐ शांति!

बेटे अंशुमान सिन्हा ने सोशल मीडिया पर दी जानकारी
शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी देते हुए बताया कि आप सब की प्रार्थना और प्यार हमेशा मां के साथ रहेंगे। मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया है। मां अब शारीरिक रूप में हम सब के बीच नहीं रहीं। बता दें कि करीब डेढ़ महीने पहले ही 22 सितंबर को शारदा सिन्हा के पति बृजकिशोर सिन्हा का निधन ब्रेन हेमरेज के कारण हो गया था। बताया जा रहा है कि अपने पति के निधन के बाद से ही शारदा सिन्हा सदमे में थीं।

प्रधानमंत्री ने फोन करके जाना था सेहत का हाल
शारदा सिन्हा की हालत की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके बेटे से फोन पर बात की थी और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और चिराग पासवान भी एम्स जाकर उनकी स्थिति के बारे में परिवार से मिले थे। 

पिछले 11 दिनों से  एम्स में भर्ती हुई थीं शारदा सिन्हा
शारदा सिन्हा को 26 अक्टूबर से एम्स में भर्ती कराया गया था, जब उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई थी। उनका ऑक्सीजन स्तर गिरने के बाद 4 नवंबर को ICU में शिफ्ट किया गया। पिछले 11 दिनों से वे इलाज के लिए अस्पताल में थीं और स्वास्थ्य में गिरावट होने पर उन्हें मेडिकल ऑन्कोलॉजी वार्ड में भर्ती किया गया था। खाने-पीने में कठिनाई के चलते उन्हें काफी समय से इलाज की आवश्यकता थी। साथ ही सोमवार को उनके बेटे अंशुमान ने लोगों से यूट्यूब पर लाइव आकर मां की हालत के बारे में बताते हुए दुआ करने की अपील की थी। उन्होंने कहा कि उनकी मां एक बड़ी लड़ाई लड़ रही हैं और सभी से उनके लिए प्रार्थना करने का अनुरोध किया। सूत्रों के मुताबिक शारदा सिन्हा 2018 से मल्टिपल मायलोमा से जूझ रही थीं। यह एक तरह का ब्लड कैंसर है। इसमें बोन मैरो में प्लाज्मा सेल अनियंत्रित तरीक़े से बढ़ने लगते हैं। इससे हड्डियों में ट्यूमर्स बनने लगते हैं।

दुखवा मिटाईं छठी मइया...
छठ पूजा से पहले ही शारदा सिन्हा का नया गाना 'दुखवा मिटाईं छठी मइया...' भी रिलीज हुआ था, जो उनके फैंस के बीच काफी लोकप्रिय हो रहा था। 22 सितंबर को शारदा सिन्हा के पति ब्रजकिशोर सिन्हा का भी ब्रेन हेम्ब्रेज से निधन हो गया था, जिससे वे बेहद दुखी थीं। छठ के गीतों के लिए लोकप्रिय शारदा सिन्हा को उनके संगीत योगदान के लिए 2018 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी सादगी भरी आवाज और भक्ति से भरे गीतों ने उन्हें 'बिहार कोकिला' के रूप में प्रतिष्ठित किया था।

कौन थीं शारदा सिन्हा
शारदा सिन्हा का जन्म साल 1953 में बिहार के सुपौल के हुलास गांव में हुआ था। उनके पिता बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे और उन्होंने उनमें गायकी के गुण देखने के बाद उसे सींचने का फैसला किया था। पिता सुखदेव ठाकुर ने 55 साल पहले दूरदर्शिता दिखाते हुए उन्हें नृत्य और संगीत की शिक्षा दिलवानी शुरू कर दी थी और घर पर ही एक शिक्षक आकर शारदा सिन्हा को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने लगे थे। शारदा सिन्हा ने सुगम संगीत की हर विधा में गायन किया। इसमें गीत, भजन, गज़ल, सब शामिल थे लेकिन उन्हें लोक संगीत गाना काफी चुनौतीपूर्ण लगा और धीरे-धीरे वो इसमें विभिन्न प्रयोग करने लगीं। शादी के बाद इनके ससुराल में इनके गायन को लेकर विरोध के स्वर भी उठे लेकिन शुरू में पति का साथ फिर बाद में सास की मदद से शारदा सिन्हा ने ठेठ गंवई शैली के गीतों को गाया। शारदा सिन्हा के बाद भी कई लोकगायिकाएं आईं, लेकिन किसी को वो पहचान नहीं मिल सकी जो शारदा सिन्हा को मिली। इसकी एक वजह इनकी ख़ास तरह की आवाज़ है, जिसमें इतने सालों के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया था।

1970 में की थी गायकी करियर की शुरुआत
प्रसिद्ध लोकगायिका शारदा सिन्हा की गायकी करियर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी। सिन्हा ने भोजपुरी, मैथिली और हिंदी में कई लोकगीत गाए हैं। उनकी गायकी में बिहार से पलायन और महिलाओं के संघर्ष को काफी जगह मिली है। फिल्म 'हम आपके हैं कौन' में बाबुल गाने को शारदा सिन्हा ने ही गाया था। यह गाना आज भी बेटियों की शादी के बाद विदाई के दौरान नियम की तरह बजाया जाता है। 

छठी क्लास में संगीत सीखना शुरू कर दिया था
शारदा सिन्हा के गाए गीत कई मौक़ों पर अनुष्ठानों में नियम की तरह शामिल होते हैं। वो चाहे जन्म का उत्सव हो या मृत्यु का शोक, चाहे त्योहार हो या मौसम का करवट लेना। हालांकि शारदा सिन्हा के परिवार में गायकी की कोई पृष्ठभूमि नहीं थी, लेकिन उनके पिता ने भांप लिया था कि उनकी बेटी के भीतर संगीत की ज़मीन बहुत उर्वर है। शारदा सिन्हा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मेरे पिता हम भाई-बहनों को पूरी छूट देते थे कि जो पसंद है, वही काम करो. मेरे पिता शिक्षा विभाग में थे। उनका तबादला होता रहता था, लेकिन गर्मी की छुट्टियां हम गांव में ही गुजारते थे। गांव में गुजारे दिन मेरी सबसे जिंदा यादों में से एक हैं। हालांकि वो बचपन के दिन थे। गांव में ही मैंने लोकगीत सुने थे और वहीं से मेरी दिलचस्पी पैदा हुई। बताया था कि मैं छठी क्लास में थी तभी पंडित रघु झा से संगीत सीखना शुरू कर दिया था। रघु झा 'पंच-गछिया' घराना के जाने-माने संगीतकार थे। शुरुआत में इन्होंने मुझे सरगम-पलटा और भजन गाना सिखाया था। ऐसे में मैं तकनीकी प्रशिक्षण को लेकर बोर नहीं हुई। मेरे दूसरे गुरु रामचंद्र झा थे और वो भी 'पंच-गछिया' घराने से ही थे।

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