यूपी की पूर्व सीएम मायावती के गांव का हाल : हेलीपैड और सब्जी मंडी पर हो गया कब्जा, अब डॉक्टर तो दूर सफाई कर्मचारी नहीं फटकते

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Greater Noida : एक जमाना था जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती बनीं तो ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी और जिला प्रशासन समेत सभी विभागों के आला अधिकारी घुटनों के बल बादलपुर की ओर दौड़ लगाते थे। ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने अरबों रुपये खर्च करके विकास कार्य बादलपुर में कराए। लेकिन अब उन विकास कार्याें की कोई सुध तक लेने वाला नहीं है। विकास के लिए बादलपुर, सादोपुर और अच्छेजा गांवों अधिग्रहीत की गई सैकड़ों बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया गया है। करोड़ों रुपये खर्च करके बादलपुर में बनाए गए पार्क बदहाल पड़े हैं। स्ट्रीट लाइट बंद पड़ी हैं। अथॉरिटी ने सफाई बंद कर दी है।

हेलीपैड और सब्जी मंडी तक पर कर लिया गया है कब्जा
बादलपुर गांव के ग्रामीण कहते हैं, "जब बहनजी मुख्यमंत्री थीं तो यूपी रोडवेज की बसें रुक कर जाती थीं। अब लंबी दूरी की बसों की बात तो छोड़ दीजिए बुलंदशहर और गाजियाबाद के बीच चलने वाली बसें भी हमारे गांव में नहीं ठहरती हैं। फल-सब्जी और अनाज मंडी में रौनक रहती थी। उस पर भी कब्जा हो गया है। हेलीपेड पर भी कब्जा हो गया है।" बादलपुर के रहने वाले राजेंद्र नागर का कहना है कि बहन मायावती जब यूपी की सीएम बनी थीं तो ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी, जिला प्रशासन और जीडीए तक के अधिकारी घुटनों के बल दौड़े चले आते थे। अधिकारी रात-दिन बादलपुर में ही डेरा डाल कर विकास कार्य कराते थे। अब हॉस्पिटल और पशु हॉस्पिटल का बुरा हाल है। दवा नहीं हैं। डाक्टर आते नहीं हैं।

ग्रामीणों का आरोप- शिकायत पर सुनवाई नहीं करता प्राधिकरण
ग्रामीण कहते हैं, "पानी की टंकी बंद पडी हुई है। कभी बादलपुर गांव रात के वक्त दूधिया रोशनी से जगमगाता रहता था, लेकिन अब पोल पर बल्ब तक नहीं हैं। इतनी बुरी हालत तो पड़ोस के दूसरे गांवों की भी नहीं है, जितनी बुरी हालत इन दिनों बादलपुर की हो गई है।" गांव के लोगों ने आगे कहा, "हमने ना जाने कितनी बार ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण को इन समस्याओं के बारे में लिखकर भेजा है। गांव के कुछ लोग दो-तीन बार प्राधिकरण जाकर मुख्य कार्यपालक अधिकारी से मुलाकात भी कर चुके हैं। इसके बावजूद प्राधिकरण अफसर सुनवाई नहीं करते हैं। शायद उन्हें लगता है कि बादलपुर तो पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का गांव है। वह फिलहाल सत्ता में नहीं हैं। विपक्ष में भी उनकी कमजोर स्थिति है। लिहाजा, बादलपुर गांव से राजनीतिक दुर्भावना प्राधिकरण अफसरों के काम में झलक रही है।"

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