त्वरित टिप्पणी : योगी सरकार की नई औद्योगिक नीति 'सामूहिक प्रयास और सामूहिक विकास' का आधार बनेगी

Tricity Today | त्वरित टिप्पणी



पहले उत्तर प्रदेश और फिर उत्तराखंड को औद्योगिक रफ्तार देने के लिए अगर किसी मुख्यमंत्री का नाम आम आदमी के जेहन में आता है तो वह दिवंगत नारायण दत्त तिवारी हैं। नारायण दत्त तिवारी ने अपने छोटे-छोटे और असंतुलित कार्यकालों के दौरान नोएडा जैसे शानदार औद्योगिक शहर की नींव रखी। गाजियाबाद को औद्योगिक रफ्तार दी। गिरते कानपुर को संभाला था। लखनऊ, भदोही, बनारस और यूपी के कई दूसरे जिलों में औद्योगिक इकाइयां खड़ी की थीं। सही कहें तो उन्हीं नीतियों और फैसलों की बदौलत राज्य में औद्योगिक सेक्टर के पिछले करीब 4 दशक ज्यों-त्यों कट गए। पर, चुनैतियां बढ़ती गईं। उत्तर प्रदेश बीमारू बन गया। पिछले साढ़े पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश एक बार फिर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में अपने पांवों पर खड़ा हुआ है। अब गुरुवार को अगले 5 वर्षों के लिए योगी आदित्यनाथ ने राज्य की औद्योगिक विकास नीति में बड़े बदलाव किए हैं। यह बदलाव नि:संदेह उत्तर प्रदेश को बदल देंगे। हम कह सकते हैं, अब यूपी फर्राटा भरेगा।

‘उत्तर प्रदेश औद्योगिक निवेश एवं रोजगार प्रोत्साहन नीति-2022’ एक निवेशोन्मुख और समेकित निति है। यह उत्तर प्रदेश को आगामी 5 वर्षाें में एक रणनीतिक ढांचा दे सकती है। जिसके तहत निजी और सार्वजनिक निवेश से जुड़े निर्णय विश्वास के साथ लिए जा सकते हैं। यह नीति औद्योगिक उपयोग के लिए गैर-कृषि, बंजर और अनुपयोगी भूमि की पूलिंग को प्रोत्साहित करके 'लैण्ड बैंक' सृजित करेगी। अभी तक हरी-भरी और कृषि भूमि को उद्योगों में बदला जाता रहा है। जिसकी वजह से टिकाऊ विकास, खेतीबाड़ी और पर्यावरण के पैरोकार आलोचनाएं करते रहे हैं। यह नई नीति राज्य में एक्सप्रेस-वेज और फ्रेट कॉरिडोर्स के किनारे लैण्ड बैंक व इण्टीग्रेटेड मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर जैसे नवाचार को विकसित करेगी। आपको बता दूं कि उत्तर प्रदेश में 13 एक्सप्रेसवे हैं। इनमें सात निर्माणाधीन हैं। नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे, यमुना एक्सप्रेसवे और आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे योगी सरकार आने से पहले से चल रहे हैं। इनकी लम्बाई 492 किलोमीटर है। पिछले साढ़े पांच वर्षों में योगी आदित्यनाथ सरकार ने बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे और पूर्वांचल एक्सप्रेसवे पूरे किए हैं। इन तीनों एक्सप्रेसवे की लम्बाई 706 किलोमीटर है। इस तरह उत्तर प्रदेश में फिलहाल 1,225 किलोमीटर लम्बे एक्सप्रेसवे हैं।

अब 594 किलोमीटर लम्बे गंगा एक्सप्रेसवे, 91 किलोमीटर लम्बे गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे, 63 किलोमीटर लम्बे लखनऊ-कानपुर एक्सप्रेसवे, 380 किलोमीटर लम्बे गाजियाबाद-कानपुर एक्सप्रेसवे, 210 किलोमीटर लम्बे दिल्ली-सहारनपुर-देहरादून एक्सप्रेसवे और 117 किलोमीटर लम्बे गाजीपुर-बलिया-मांझीघाट एक्सप्रेसवे बन रहे हैं। करीब 1,455 किलोमीटर लम्बे यह सारे महामार्ग अगले तीन वर्षों में पूरे हो जाएंगे। इस तरह ठीक तीन साल बाद उत्तर प्रदेश में 2,710 किलोमीटर लम्बे एक्सप्रेसवे होंगे। इन्हें बनाने में करीब एक लाख करोड़ रुपये खर्च हो जाएंगे। अब अगर ईस्टर्न और वेस्टर्न रेलवे डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर्स की बात करें तो इनका करीब 1,100 किलोमीटर हिस्सा उत्तर प्रदेश से गुजरेगा। इन्हें बनाने पर भी लाखों करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। इस पूंजी को वापस हासिल करना और गुणात्मक वृद्धि करके कारोबार, उद्योग व रोजगार में तब्दील करना सरकार की इस नई नीति से साफ जाहिर हो रहा है। यह सारे एक्सप्रेसवे शहरों के बीच केवल फास्ट कनेक्टिविटी देने का जरिया नहीं हैं। नई नीति में इनके किनारे 'अटल इण्डस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर मिशन' के तहत औद्योगिक पार्क बनाने का विजन है। यह बहुत अच्छा प्रयास है। साथ ही प्राइवेट सेक्टर को औद्योगिक पार्काें की स्थापना के लिए प्रोत्साहन किया है। इन विकासकर्ताओं को भूमि क्रय करने पर लगने वाले स्टाम्प शुल्क में शत-प्रतिशत छूट सरकार देगी।

अब तक उद्योगों को भूमि आवंटन सबसे बड़ी समस्या रही है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में तो भूखंड आवंटन भ्रष्टाचार का जरिया बन गया था। पिछली सरकारों के कार्यकाल में ऑटो रिक्शा वाला बता देता था कि किस श्रेणी की जमीन पर कितना पैसा अंडर टेबल जाएगा। वह यह भी कह देता था कि उसका एक रिश्तेदार जमीन दिलवा सकता है। इस स्थिति पर इस सरकार ने सफलतापूर्वक काबू पाया है। अब नई प्रस्तावित नीति में फास्ट ट्रैक भूमि आवंटन की व्यवस्था की गई है। फास्ट ट्रैक भूमि आवंटन कितना लाभकारी है, इसका एक उदाहरण समझिए। ग्रेटर नोएडा में हीरानंदानी समूह ने इसी सप्ताह उत्तर प्रदेश के पहले डाटा सेंटर की शुरुआत योगी आदित्यनाथ से करवाई है। यह समूह इस प्रोजेक्ट के लिए केवल 600 करोड़ रुपये लेकर उत्तर प्रदेश में आया था। आवेदन के बाद महज एक सप्ताह में भूमि आवंटन ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण ने कर दिया। एक महीने में निर्माण शुरू और एक साल में पूरा हो गया। 'फास्ट ट्रैक मॉड' का फायदा यह हुआ कि अब हीरानंदानी समूह पूरे उत्तर प्रदेश में 39,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगा। जिससे यूपी देश में सबसे बड़ा डाटा हब बन जाएगा। समूह के प्रवर्तक राज्य के औद्योगिक माहौल से गदगद हैं।

उत्तर प्रदेश के उद्योगों को अराजकता ने तबाह किया। उस कोढ़ में बिजली की किल्लत खाज बनी रही। प्रस्तावित नीति में उद्योगों को निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए एक विस्तृत कार्ययोजना पेश की गई है। साथ ही जलापूर्ति, जल निकासी और लॉजिस्टिक्स के विस्तृत उपाय हैं। वित्तीय संसाधनों की सुलभता के लिए अवस्थापना विकास कोष बनेगा। सरकार स्टॉक एक्सचेंजों के माध्यम से इक्विटी पूंजी जुटाने में मदद देगी। इस पॉलिसी में आयात प्रतिस्थापन, निर्यात प्रोत्साहन, अनुसंधान व विकास, नवाचार और बौद्धिक सम्पदा अधिकार को प्रोत्साहन, गुणवत्ता और डिजाइन को प्रोत्साहन, एमएसएमई, ओडीओपी और अन्य स्थानीय उद्योगों की सहायता को समाहित किया है। मुख्यमंत्री और राज्य के तमाम लोग कहते हैं कि अगर उत्तर प्रदेश को एक देश माना जाए तो जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया में इसका पांचवां स्थान होगा। जाहिर सी बात है, इतना बड़ा राज्य अस्थिर अर्थव्यवस्था के साथ आगे नहीं बढ़ सकता है। हम अगर करीब 25 करोड़ जनसंख्या का सदोपयोग नहीं कर सकते तो यह पूरे देश के लिए अभिशाप बन सकती है। यह इंडस्ट्रियल पॉलिसी आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश का विजन पेश करती है। इस लक्ष्य को हासिल करने का रास्ता दिखाती है।

भारी भरकम जनसंख्या के लिए रोजगार के अवसरों में उत्तरोत्तर वृद्धि जरूरी है। नई नीति रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए बड़ी इंडस्ट्री को विशेष प्रोत्साहन तो देती है, साथ ही उच्च रोजगार सृजन क्षमता वाले क्षेत्रों जैसे हथकरघा एवं वस्त्रोद्योग, एमएसएमई व स्टार्टअप्स पर केंद्रित है। राज्य का नीतिगत ढांचा, स्वरोजगार और ओडीओपी जैसे प्रमुख कार्यक्रमों के माध्यम से स्थानीय हस्तशिल्पियों के लिए रोजगार सृजन होगा। यह नीति प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार देने में सहायक हो सकती है। इस सबके लिए समांतर रूप से ‘ब्रॉण्ड उत्तर प्रदेश’ को विकसित करना होगा। यह इमेज हासिल करने के लिए निवेश को प्रोत्साहन और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकृषित करना जरूरी है। उत्तर प्रदेश की छवि को 'सबसे पसंदीदा निवेश गंतव्य' बनाने की व्यापक रणनीति इस पॉलिसी में नजर आती है। यूपी की सरकारें खराब कानून व्यवस्था के कारण चुनाव हारती रही हैं। यह पहली सरकार है, जो अच्छी कानून व्यवस्था के बूते चुनाव जीतकर दोबारा आई है। कारोबारियों और उद्यमियों का भरोसा योगी आदित्यनाथ हासिल कर चुके हैं। यह लचीली और संतुलित पॉलिसी निवेश प्रोत्साहन के लिए विस्तृत कार्ययोजना की परिकल्पना पेश करती है। इससे ना केवल उद्योगों को लाभ मिलेगा बल्कि राज्य के नागरिकों की समाजिक और आर्थिक स्थिति मजबूत करने में मदद मिलेगी।

उत्तर प्रदेश बहुत बड़ा है। राज्य में और राज्य के बाहर लम्बे अरसे से रोजगार की तलाश युवाओं के पलायन की वजह रही है। यह नीति पूरे राज्य में उद्योगों को बढ़ावा देगी। इस सरकारी नीति में उद्योगों से अछूते बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल को फोकस में रखा गया है। मसलन, बुंदेलखंड में 20 एकड़ या उससे अधिक क्षेत्रफल, मध्यांचल और पश्चिमांचल में 30 एकड़ अथवा उससे अधिक क्षेत्रफल के निजी औद्योगिक पार्क बनाने वालों को सरकार प्रोत्साहित करेगी। प्रदेश के बाकी किसी भी हिस्से में 100 एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में विकसित निजी औद्योगिक पार्काें को प्रोत्साहित किया जाएगा। नई उद्योग नीति में भौगोलिक आधार पर वित्तीय प्रोत्साहन, उपादान और स्टाम्प शुल्क जैसी छूट की व्यवस्था समग्रता लाने के लिए हैं। अगर कम्पनी राज्य के बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल में इकाई स्थापित करती है तो जमीन खरीद पर लगने वाला स्टांप शुल्क नहीं लिया जाएगा। मतलब, 100 प्रतिशत छूट दी जाएगी। पूरे मध्यांचल में यह छूट 75 प्रतिशत दी जाएगी। पश्चिमांचल में यह रियायत दो हिस्सों में बांट दी गई है। वेस्ट यूपी के गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद जनपदों को छोड़कर बाकी क्षेत्र में 75 प्रतिशत छूट स्टांप ड्यूटी में सरकार देगी। अगर उद्योग गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद जनपदों में लगाया जाएगा तो भूमि खरीद पर केवल 50 प्रतिशत स्टाम्प शुल्क में छूट दी जाएगी।

उद्योगों का बेहतर वर्गीकरण किया गया है। निवेश प्रतिबद्धता आधारित परियोजनाएं 4 श्रेणियों में सरकार चिन्हित करेगी। प्रत्येक परियोजना की पात्रता आवश्यक न्यूनतम पूंजी निवेश होगा। रियायतें इसी आधार पर मिलेंगी। मसलन, राज्य में 50 करोड़ रुपये से अधिक और 200 करोड़ रुपये से कम पूंजी निवेश वाले उद्योग को वृहद श्रेणी में रखा गया है। इसी तरह 200 करोड़ रुपये से अधिक लेकिन 500 करोड़ रुपये से कम पूंजी निवेश वाली औद्योगिक इकाइयां मेगा श्रेणी में रहेंगी। पॉलिसी में है कि 500 करोड़ रुपये से अधिक किन्तु 3,000 करोड़ रुपये से कम पूंजी निवेश को सुपर मेगा श्रेणी में माना जाएगा। 3,000 करोड़ रुपये से अधिक पूंजी निवेश को अल्ट्रा मेगा श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है। कुल मिलाकर यह नीति बताती है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ केवल सरकार चलाने के लिए नहीं उत्तर प्रदेश को अपने पांवों पर खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। निःसंदेह यह पॉलिसी अगले साल फरवरी में होने वाली 'ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट' के लिए 10 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव ला सकती है। उत्तर प्रदेश को 'वन ट्रिलियन इकोनॉमी' बनाने में मददगार होगी। 'ब्रांड उत्तर प्रदेश' को दशकों से ऐसी ही सोच की दरकार थी। सबसे बड़ी बात योगी आदित्यनाथ 'सामूहिक प्रयास और सामूहिक विकास' पर जोर दे रहे हैं।

अन्य खबरें