Noida Desk : 2014 में केंद्र की सत्ता से जाने के बाद कांग्रेस जहां राज्यों से भी एक-एक कर बाहर होने लगी। चुनाव के मोर्चे पर बात करें तो उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, बंगाल जैसे बड़े राज्यों में तो कांग्रेस पार्टी को सत्ता में लौटे कई दशक हो चुके हैं। आखिर इतने समृद्ध इतिहास वाली कांग्रेस का ऐसा हाल कैसे हो गया। आइए आज की इस कड़ी में हम पार्टी के इस सफर पर डालते हैं एक नजर...
इससे टूटकर बने कई बड़े नेता
देश में अब तक हुए 17 आम चुनाव में से कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत, 4 में गठबंधन का नेतृत्व और 7 प्रधानमंत्री दिए है। 137 साल पुरानी पार्टी का वर्चस्व आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक था। इतनी ही नहीं अलग-अलग राज्यों में क्षत्रप बने कई बड़े नेता और पार्टियां इसी कांग्रेस से टूटकर बनी हैं। इस वक्त कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। हालात ये हैं कि कांग्रेस फिलहाल सिर्फ तीन राज्यों हिमाचल प्रदेश, कर्नाटका और तेलंगाना में ही पूर्ण बहुमत के साथ काबिज है। हाल फिलहाल में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने भी पार्टी का साथ छोड़ा है।
उत्तर प्रदेश को दिया पहला सीएम
80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश को लेकर एक कहावत आम है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता यहीं से हो कर गुजरता है। यही वजह कि गुजरात के सीएम रहते नरेंद्र मोदी ने भी 2014 का चुनाव जीतने के बाद गुजरात की सीट छोड़कर उत्तर प्रदेश के वाराणसी की लोकसभा सीट को अपनाया और देश के प्रधानमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाला। उत्तर प्रदेश में चुनाव कोई भी हो उठा-पटक और सरगर्मी चरम पर होती है। यहां के पहले मुख्यमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ कांग्रेस पार्टी के थे। यानी पिछले 34 साल से उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष करने वाली कांग्रेस पार्टी ने ही इस राज्य को पहली मुख्यमंत्री दिया था। उत्तर प्रदेश में 1950 से लेकर 1967 तक लगातार कांग्रेस का राज रहा है। 1967 में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस 425 सीटों में से 199 सीट ही जीत सकी। इसके अलावा भी पार्टी ने साल 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। तब 425 विधानसभा की सीटों में से कांग्रेस ने 309 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाबी हासिल की थी। बता दें कि 1988 में आखिरी बार कांग्रेस की सरकार नारायण तिवारी के नेतृत्व में बनी थी।
इन राज्यों में नहीं लौट सकी कांग्रेस
तमिलनाडु : 1967
बंगाल : 1977
उत्तर प्रदेश : 1989
गुजरात : 1990
बिहार : 1990
त्रिपुरा : 1993
ओडिशा : 2000
नागालैंड : 2003
गोवा : 2012
दिल्ली : 2013
महाराष्ट्रा : 2014
गुटबाजी के कारण हुई ये दशा
वयोवृद्ध पार्टी नेता कुंवर नूर मोहम्मद और पूर्व कांग्रेसी कृपाराम शर्मा ने एक स्वर में पार्टी के अंदर गुटबाजी को खुले तौर पर स्वीकार किया। दोनों नेताओं का कहना था कि पार्टी के अंदर की गुटबाजी आज दीमक का रूप ले चुकी है। जो कांग्रेस को अंदर से इतना खोखला कर चुकी है कि इसको दुरुस्त करने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा भी कोई कदम आज तक नहीं उठाया गया। ऊपर से लेकर नीचे तक आज गुटबाजी पूरी पार्टी पर हावी हो चुकी है। फिर चाहे शहर-जिला अध्यक्ष का चुनाव हो या फिर पार्टी के प्रत्याशी का।