सियासत की दिलचस्प कहानी : ये शकुनी और कंस नहीं, कलियुग के मामा हैं 'शिव' राज

देश | 12 महीना पहले | Deepak Sharma

Google Photo | Shivraj Singh Chauhan



Noida News : भारत के पौराणिक इतिहास पर नजर डालें दो मामा ऐसे रहे हैं, जिन्हें कलियुग में भी भुलाया नहीं गया है। पहले मामा कंस और दूसरे शकुनी थे। किन्तु, अब कलियुग में भी एक मामा का अवतार हुआ है। जब भी कलियुग का इतिहास लिखा जाएगा, इस युग के तीसरे मामा के रूप में मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान का नाम लिया जाएगा। जिन्होंने मध्य प्रदेश की जनता के दिल में अपने आप को मामा के रूप में स्थापित किया है।

मामा की हुई जय जयकार
पांच राज्यों में विधानसभा के लिए हुए चुनाव के परिणाम आ चुके हैं। इन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में से तीन भारतीय जनता पार्टी के खाते में गए हैं। एक राज्य तेलंगाना में कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़कर कामयाबी हासिल की है, जबकि मिजोरम में नवोदित पार्टी ZPM को बहुमत मिलता दिख रहा है। इन विस चुनाव को लोकसभा 2024 का सेमीफाइनल भी कहा जा रहा था। जिसे भाजपा ने 3-1 से जीत लिया है। किन्तु, मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य था, जिसको लेकर तमाम राजनैतिक पंडित, विश्लेषक और खुद भाजपा के नेता भी अपनी हार मानकर चल रहे थे। लेकिन, जो परिणाम आए वह सच में चौंकाने वाले थे। इस जीत में यह बात निकलकर आई कि मामा शिवराज ने अंतिम समय तक लड़कर इस जीत को अपने पाले में कर लिया।

चौथी लिस्ट में मिला टिकट
मध्य प्रदेश चुनाव से करीब तीन महीने पहले अगस्त में भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी। इस सूची में मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं था। इसके बाद पार्टी ने एक के बाद एक दो और सूचियां जारी कीं। उसमें भी शिवराज का नाम नहीं था। पार्टी की ओर से जारी चौथी लिस्ट में शिवराज को बुधनी से टिकट दिया गया।

शिवराज से बनाई दूरी
पार्टी के शीर्ष नेतृत्व मोदी-शाह ने शिवराज के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर मानते हुए शुरू में चुनाव से दूर रखा। क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को लेकर बहुत सारे दावे किए जा रहे थे। इस बात को लेकर भी चर्चा थी कि राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार को पिछली बार उखाड़ फेंका गया था, उससे भी शिवराज के खिलाफ ज़मीन पर काफी गुस्सा है। जब अमित शाह यहां आए तो उन्होंने भी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बताया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि जीत के बाद जो पार्टी नेतृत्व फैसला करेगा, वही सीएम होगा। इसी को भांपते हुए पार्टी ने पूरा कैंपेन 'एमपी के मन में मोदी और मोदी के मन में एमपी' पर लेकर खड़ा कर दिया। यहां तक कि पीएम मोदी ने कहीं भी पार्टी रेलियों में शिवराज का नाम लिए बगैर कैंपेन किए।

हारे मोदी, जीते शिवराज
जैसे-जैसे चुनाव की गहमा-गहमी बढ़ती गई, भाजपा और मोदी-शाह को भी एहसास होने लगा कि शिवराज सिंह के बगैर चुनावी वैतरणी पार नहीं कि जा सकती। चौहान की 'लाडली बहना' और 'लाडली लक्ष्मी' जैसी योजनाओं को प्रदेश की महिलाओं से अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। इसी वजह से चुनाव से करीब एक महीना पहले भाजपा को समझ आ गया कि ये योजनाएं खेल को बदल सकती हैं। दूसरा, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इस बात का पक्के तौर पर यकीन हो गया कि अगर मध्य प्रदेश में कोई मास लीडर है तो वो शिवराज सिंह चौहान ही हैं। अब तक मोदी को भी स्पष्ट हो गया कि मामा के बिना मध्य प्रदेश में चुनाव हार जाएंगे, तो मोदी ने मामा के चेहरे को आगे किया। इसके पीछे का मकसद था कि जीते तो मोदी, हारे तो मामा। लेकिन, आख़िरकार सेहरा शिवराज सिंह चौहान के सिर पर ही बंधा। उन्होंने कमान संभाली और उसका नतीजा सबके सामने है।

मोदी तीन बार, शिवराज पांचवीं बार बनेंगे सीएम

पीएम मोदी प्रधानमंत्री चुने जाने से पहले तीन बार गुजरात के सीएम रह चुके हैं। वे 7 अक्तूबर 2001 से 22 मई 2014 तक गुजरात राज्य के मुख्यमन्त्री रहे। जबकि मामा शिवराज सिंह मध्‍यप्रदेश में सबसे लम्‍बे समय तक मुख्‍यमंत्री के रूप मे कार्यभार संभालने वाले पहले मुख्‍यमंत्री हैं। शिवराज सिंह ने 13 वर्ष 17 दिन का मुख्‍यमंत्री का कार्यभारत सम्‍भाला है। पहली बार चौहान को 21 नवम्बर 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। 24 मार्च 2020 शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार सीएम के रूप में शपथ ली। अब अगर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व चाहेगा तो शिवराज पांचवीं बार सीएम के रूप में शपथ लेंगे।

अटल के बयान से शुरू हुई राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के एक बयान ने मोदी को शिवराज का सियासी दुश्मन बना दिया। दोनों के बीच राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता अब भी जारी है। ग्वालियर में आयोजित एक सभा में प्रधानमंत्री रहते हुए अटल बिहारी बाजपेयी ने शिवराज को लेकर कहा था कि शिवराज अच्छा काम कर रहे हैं। जो उन्होंने एक बीमारू राज्य को विकसित राज्य के डगर पर लाने का काम किया है। अटल जी ने गुजरात के सीएम के रहे नरेंद्र मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाया था। बस यही वो लम्हा था, जहां से पीएम मोदी सीएम शिवराज से राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता रखने लगे थे। साल, 2014 के बाद जैसे ही पीएम मोदी को मौका मिला, उन्होंने सबसे पहले उन्हें ही साइड लाइन करने का काम किया। 

2018 की सबसे बड़ी पार्टी थी कांग्रेस

साल, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मध्य प्रदेश में कुल 230 सीटों में से 114 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और उसकी सरकार बनी थी। बीजेपी को उस साल 109 सीटें मिली थीं। कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सिर्फ़ 20 महीने ही चल पाई थी। उसके बाद एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बन गई।

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