Google Image | Covid-19 infection & air pollution could be dangerous
Pollution in Delhi NCR : देश की राजधानी दिल्ली और आपसपास एनसीआर (Delhi NCR) के शहरों में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए कोरोना संक्रमण (COVID-19) और प्रदूषण का कॉकटेल जानलेवा हो सकता है। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में ऐसा दावा किया है कि दुनियाभर में अब तक कोविड-19 से हुई मौतों में 15 प्रतिशत का सीधा ताल्लुक लंबे समय तक वायु प्रदूषण से है। मतलब लम्बे समय से प्रदूषित हवा में रह रहे लोगों के लिए कोरोना का संक्रमण कहीं ज्यादा खतरनाक है।
पिछले तीन सप्ताह से दिल्ली-एनसीआर के लोग भीषण प्रदूषण से जूझ रहे हैं। यहां के तमाम शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बेहद खतरनाक स्तर पर चल रहा है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गौतमबुद्ध नगर जिले में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 351, फरीदाबाद में 318, गाजियाबाद में 330 और दिल्ली में 332 दर्ज किया गया। बल्लभगढ़ में एक्यूआई 342, बागपत में 304, बहादुरगढ़ में 332 और गुरूग्राम में 327 दर्ज किया गया। बुलंदशहर में एक्यूआई 351 दर्ज किया गया।
यहां उल्लेखनीय है कि शून्य और 50 के बीच एक्यूआई को 'अच्छा', 51 और 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 और 200 के बीच 'मध्यम', 201 और 300 के बीच 'खराब', 301 और 400 के बीच 'बेहद खराब' और 401 से 500 के बीच 'गंभीर' माना जाता है।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि यूरोप में कोविड-19 से हुई मौतों में करीब 19 प्रतिशत, उत्तरी अमेरिका में हुई मौतों में से 17 प्रतिशत और पूर्वी एशिया में हुई मौतों के करीब 27 प्रतिशत का संबंध वायु प्रदूषण से है। जर्मनी के मैक्स प्लांक रसायन विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता भी इस अध्ययन में शामिल थे। जर्नल 'कार्डियोवस्कुलर में प्रकाशित अध्ययन में कोरोना वायरस से हुई मौतों के संबंध में विश्लेषण किया गया और दुनिया के विभिन्न देशों में वायु प्रदूषण से संबंध का पता लगाया गया ।
अध्ययन करने वाली टीम ने कहा कि कोविड-19 से जितनी मौत हुई और इसमें वायु प्रदूषण की वजह से आबादी पर बढ़े खतरों का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने कहा कि निकाला गया अनुपात वायु प्रदूषण और कोविड-19 मृत्यु दर के बीच सीधे जुड़ाव को नहीं दिखाता है। हालांकि, वायु प्रदूषण के कारण बीमारी की गंभीरता बढ़ने और स्वास्थ्य संबंधी अन्य जोखिमों के बीच प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संबंधों को देखा गया। शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण और कोविड-19 के संबंध में अमेरिका और चीन के पूर्व के अध्ययनों का इस्तेमाल किया । वर्ष 2003 में सार्स बीमारी से जुड़े आंकड़ों का भी इसमें इस्तेमाल किया गया।
अध्ययन करने वाली टीम ने हवा में पीएम 2.5 जैसे अति सूक्ष्म कणों की मौजूदगी वाले माहौल में ज्यादा समय तक रहने के संबंध में एक मॉडल का विश्लेषण किया। महामारी के बारे में जून 2020 के तीसरे सप्ताह तक के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया और शोधकर्ताओं ने कहा कि महामारी खत्म होने के बाद इस बारे में व्यापक विश्लेषण करने की जरूरत होगी।
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