BREAKING: नोएडा के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह गाजियाबाद जेल से रिहा, सीबीआई को तगड़ा झटका लगा

नोएडा | 4 साल पहले | Anika Gupta

Google Image | इंजीनियर यादव सिंह



इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर नोएडा के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह को जमानत दे दी गई है। शुक्रवार की देर शाम उन्हें गाजियाबाद जिला न्यायालय से रिहा कर दिया गया है। यादव सिंह गाजियाबाद जेल से नोएडा में अपने घर पहुंच गए हैं। यादव सिंह को सीबीआई की गलती के कारण यह जमानत मिली है। मामले में हाईकोर्ट ने सीबीआई को कड़ी फटकार भी लगाई है। इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने गाजियाबाद में सीबीआई की विशेष अदालत के आदेश को भी त्रुटि पूर्ण करार दिया है।

नोएडा ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। जिस पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल सुनवाई करने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट को दिया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरएफ नरीमन की खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि यादव सिंह की जमानत याचिका पर फैसला आज ही सुनाया जाए। यादव सिंह पर अपनी आय के ज्ञात स्रोत से ज्यादा संपत्ति जमा करने का आरोप है। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत में मुकदमा चल रहा है।

 सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है। सीबीआई ने इसी साल फरवरी 2020 में यादव सिंह को गिरफ्तार किया था। हालांकि, एक मुख्य मामले में करीब 3 साल तक जेल में रहने के बाद यादव सिंह को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी। जेल से रिहा होने के कुछ दिन बाद ही सीबीआई ने यादव सिंह को एक अन्य मामले में गिरफ्तार करके दोबारा जेल भेज दिया था। अब दूसरे मामले में यादव सिंह ने जमानत याचिका दायर की है। जिसमें यादव सिंह ने आधार बनाया है कि निश्चित 60 दिन की अवधि में सीबीआई ने उनके खिलाफ आरोप पत्र गाजियाबाद की विशेष अदालत में दाखिल नहीं किया है।

दूसरी ओर सीबीआई का आरोप है कि यादव सिंह ने 2004 से 2015 के दौरान अवैध तरीके से धन इकट्ठा किया है। यादव सिंह ने इस दौरान गौतम बुध नगर के तीनों विकास प्राधिकरण में बतौर चीफ इंजीनियर रहते हुए अवैध तरीके से धन एकत्र किया है। भ्रष्टाचार के माध्यम से यादव सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग किया है। यादव सिंह के खिलाफ पहली बार 2015 में जांच शुरू हुई थी। यह जांच तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने शुरू करवाई थी। हालांकि, बाद में यह मामला गौतम बुध नगर पुलिस से हटाकर उत्तर प्रदेश सीबीसीआईडी को दे दिया गया था। कुछ दिन सीबीसीआईडी ने जांच की और बाद में इस मामले को क्लोज कर दिया गया था।

वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनाई। योगी आदित्यनाथ सरकार ने गौतम बुध नगर जिला अदालत में अर्जी देकर इस मुकदमे को दोबारा खुलवाया। अंततः केंद्रीय एजेंसियों सीबीआई और ईडी ने इस मामले को अपने हाथों में ले लिया। यादव सिंह को गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया। यादव सिंह के खिलाफ वर्ष 2017 में दो चार्जशीट अदालत में दाखिल की गई थीं।

सीबीआई के आरोप-पत्र में कहा गया है कि यादव सिंह ने अप्रैल 2004 से 4 अगस्त 2015 के बीच आय से अधिक 23.15 करोड़ रुपये जमा किए है। जो उनकी आय के स्रोत से लगभग 512.6 प्रतिशत अधिक हैं। सीबीआई के पूर्व चीफ इंजीनियर यादव सिंह पर कुल 954 करोड़ की धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। यह धोखाधड़ी नोएडा विकास प्राधिकरण में बतौर चीफ इंजीनियर रहते हुए एक अंडर ग्राउंड बिजली केबलिंग का टेंडर छोड़ने में की गई है। जांच में बात सामने आई है कि बिजली का केबल टेंडर होने से पहले ही सड़क के नीचे दबा दिया गया था। टेंडर बाद में किया गया और भुगतान भी बाद में किया गया था।

आपको बता दें कि अक्टूबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने यादव सिंह को आय से अधिक संपत्ति के एक मामले में जमानत दे दी थी, लेकिन कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि यदि यादव सिंह सबूत के साथ छेड़छाड़ करने या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश करेंगे तो सीबीआई जमानत रद्द करने के लिए आवेदन कर सकती है। फरवरी में यादव सिंह गाजियाबाद में अदालत गए था। अदालत से बाहर आते ही उन्हें सीबीआई ने दोबारा गिरफ्तार कर लिया है।

सुप्रीम कोर्ट से आदेश मिलने के तुरंत बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने नोएडा प्राधिकरण के पूर्व मुख्य अभियंता यादव सिंह की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका बुधवार को मंजूर कर ली। सीबीआई अदालत की तय शर्तों को पूरा करने पर यादव सिंह की रिहाई का आदेश दिया। यादव सिंह की याचिका मंजूर करते हुए अदालत ने सीबीआई को कड़ी फटकार लगाई कहा, "सीबीआई की यह दलील है कि लॉकडाउन के दौरान अदालतें बंद रही थीं, लेकिन इस दौरान ऐसा तो नहीं है कि कोई अपराध नहीं हुआ और ना ही कोई गिरफ्तारी हुई है। इसलिए सीबीआई की यह दलील उचित नहीं है। "

अदालत ने गाजियाबाद की विशेष सीबीआई अदालत की तय शर्तों को पूरा करने पर याचिकाकर्ता को तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए शुक्रवार को सीबीआई की विशेष अदालत ने यादव सिंह को जमानत दे दी। देर शाम उन्हें गाजियाबाद जिला कारागार से रिहा कर दिया गया है। यादव सिंह नोएडा में अपने घर पहुंच गए हैं।

आपको बता दें कि बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। देर रात अदालत ने अपना निर्णय सार्वजनिक कर दिया। न्यायमूर्ति प्रितिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की पीठ ने कहा, "विशेष अदालत ने अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत याचिकाकर्ता की अर्जी खारिज करने में त्रुटि की है। इसलिए उसका आदेश दरकिनार किया जाता है और याचिकाकर्ता की हिरासत को अवैध ठहराया जाता है।" तथ्यों के मुताबिक, "याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी और भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988 की धारा 13(2) आरडब्लू 13(1) (बी) एवं 13 (1) (डी) के तहत आरोपी है। उसे 10 फरवरी, 2020 को सीबीआई ने हिरासत में लिया था। रिमांड के लिए 11 फरवरी को सीबीआई की विशेष अदालत में पेश किया गया था। सीबीआई अदालत ने उसे रिमांड पर सीबीआई की हिरासत में भेज दिया। सीबीआई की ओर से 60 दिनों की निर्धारित अवधि में आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है।"

याचिकाकर्ता ने 12 अप्रैल, 2020 को ईमेल के जरिए गाजियाबाद के जिला जज के समक्ष जमानत के लिए अर्जी दाखिल की। जिसे जिला जज ने 16 अप्रैल को सीबीआई की विशेष अदालत के पास भेज दिया। सीबीआई की विशेष अदालत ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी कि लॉकडाउन की वजह से 60 दिन की सीमा नहीं गिनी जाएगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई की इस दलील को खारिज कर दिया है। साथ ही सीबीआई की इस दलील के आधार पर विशेष अदालत की ओर से जमानत अर्जी खारिज करने के आदेश को भी रद्द कर दिया है। इसे सीबीआई के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

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