ज्योतिष : कुंडली में रहकर 42 साल तक परेशान करने वाले इस योग के बारे में आइए जानते हैं आज, इस तरह से हो सकता है बचाव

न्यूज़ | 3 साल पहले | Testing

Tricity Today | प्रतीकात्मक फोटो



कुंडली में कई ऐसे ग्रह हैं जो यदि कुंडली में आते हैं तो आजीवन जीवन संघर्ष और अनावश्यक परेशानियां देते हैं। ज्योतिषाचार्य का मानना है कि ऐसे ग्रहों को समय-समय पर पूजन और उपाय करते हुए यदि शांत रखा जाता है तो ग्रहों का प्रकोप काफी हद तक परेशानी से बचा सकता है। योग के शांत रहने से जीवन में आने वाली बड़ी परेशानियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

आचार्य सुशील कृष्ण द्विवेदी ने जानकारी दी कि राहु और केतु को ज्योतिष शास्त्र में पाप ग्रह माना गया है।  राहु-केतु के कारण जन्म कुंडली में कालसर्प योग और पितृदोष जैसे खतरनाक योगों का निर्माण होता है। कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को हर क्षेत्र में  संघर्ष अधिक करना पड़ता है। राहु-केतु एक ही राक्षस के दो भाग हैं। यानि सिर को राहु और धड़ को केतु माना गया है। यानि राहु के पास धड़ नहीं है और केतु के पास अपना मस्तिष्क नहीं है। इनकी आकृति सर्प की तरह बताई गई है। जिस प्रकार से सर्प व्यक्ति को जकड़ लेता है और उससे छुटकारा पाना कभी कभी मुश्किल हो जाता है उसी प्रकार से जब इन दोनों ग्रहों की स्थिति जन्म कुंडली में अशुभ होती है या फिर इनसे कालसर्प और पितृदोष का निर्माण होता है तो व्यक्ति को कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।

12 तरह के होते हैं योग : जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य जब सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का बनता है। ज्योतिष शास्त्र में 12 प्रकार के कालसर्प योग बताए गए हैं। जिन्हें अनंत काल सर्प योग, कुलिक काल सर्प योग, वासुकी कालसर्प योग, शंखपाल कालसर्प योग, पदम् कालसर्प योग, महापद्म कालसर्प योग, तक्षक काल सर्पयोग, कर्कोटक कालसर्प योग, शंख्चूर्ण कालसर्प योग, पातक काल सर्पयोग, विषाक्त काल सर्पयोग और शेषनाग कालसर्प योग कहा जाता है। 

42 वर्ष तक कराता हैं संघर्ष : ऐसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग होता है उसे जीवन के 42 वर्षों तक संघर्ष करता है। राहु-केतु का यदि समय समय पर उपाय नहीं किया जाए तो व्यक्ति 42 वर्षों तक जीवन में सफल होने के लिए संघर्ष करता है।

जन्म कुंडली का नवां घर पिता का घर माना गया है। इसे भाग्य भाव भी कहते हैं। कुंडली के इस घर को शुभ माना गया है। इस भाव को धर्म का भाव भी कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब नवम भाव में सूर्य, राहु या केतु विराजमान हो जाएं तो, पितृ दोष नाम का अशुभ योग बनता है। वहीं सूर्य और राहू जिस भी भाव में बैठते हैं तो इससे उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं और एक प्रकार से पितृ दोष की स्थिति बनती है। पितृ दोष के कारण कभी कभी व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट भी उठाने पड़ते इसलिए यदि आपकी भी कुंडली मे बन रहा है ये दोष तो इसकी शांति कराना परम आवश्यक है।

यह हैं उपाय : 
  1. - किसी योग्य आचार्य के द्वारा राहु केतु नाग गायत्री के मंत्रों का जप कराये 
  2. - नौ नाग मनसा देवी की विधवत पूजा करे   
  3. - भगवान शिव और गणेश जी की पूजा करने से राहु और केतु शांत होते हैं

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