दूसरा नवरात्र : माता ब्रह्मचारिणी हैं अनुशासन और दया की देवी, संपूर्ण जानकारी पंडित पुरूषोतम सती द्वारा

धर्म कर्म | 4 साल पहले | Testing

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ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। मां के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं। ये देवी कभी भी क्रोध नहीं करती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी की कथा पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से जाना गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। 

तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। 

देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की. यह आप से ही संभव थी. आपकी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही आपके पिता आपको लेने आ रहे हैं। मां की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।

माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह के पश्चात कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने तारकासुर का बध किया। माता ब्रह्मचारिणी का प्रसिद्ध मंदिर काशी के सप्तसागर में है। शक्तिपीठों की उत्पत्ति की कथा भगवान् शंकरके प्रति द्वेष बुद्धि रखनेवाले दक्षप्रजापतिके यज्ञ में भगवती सतीने आत्मदाह कर दिया था।

उस समय भगवान् शंकरकी कोपाग्निसे प्रलयकी-सी स्थिति उत्पन्न हो गयी। परंतु देवताओं की प्रार्थना पर वे शान्तचित्त हुए। इसके अनन्तर भगवान् शिवने यज्ञ स्थल पर जाकर भगवती सतीके शरीरको अपने कन्धेपर रख लिया और उन्मत्त होकर भ्रमण करने लगे। तब भगवान विष्णु ने बाणों से सतीके विभिन्न अंगों को काटकर गिरा दिया। एक सौ आठकी संख्यामें कटे वे अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ उत्पन हो गए।

पंडित पुरूषोतम सती ( Astro Badri)
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