Google Image | सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को फैसला सुनाया है कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण बिल्डरों से भूमि आवंटन के बकाया पर केवल 8.50 फ़ीसदी ब्याज लेंगे। यह दर भी एक जनवरी 2010 से लागू की जाएगी। कोर्ट के इस फैसले से दोनों विकास प्राधिकरण को करीब 12,000 करोड रुपए की चपत लगी है। दूसरी ओर बिल्डरों की पौबारह है हो गई है, लेकिन इतना बड़ा लाभ हासिल करने के बावजूद बिल्डर खरीददारों को इसका फायदा नहीं दे पाएंगे। बिल्डरों का तर्क है कि कंस्ट्रक्शन कॉस्ट और घरों की दूसरी लागत इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है कि प्राधिकरण से मिलने वाले इस फायदे को खरीदारों तक बढ़ाना मुश्किल है।
सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण की ब्याज दरों में कटौती का फायदा बिल्डरों को भी देने का आदेश दिया है। दोनों विकास प्राधिकरण बिल्डरों से अब केवल 8.5 फीसदी ब्याज दर ही लेंगे। अब तक 14 से 14 फीसदी ब्याज दर की वसूली कर रहे थे। कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ इस दर को 1 जनवरी 2010 से लागू करने का आदेश दिया है। हालांकि, विकास प्राधिकरण शासन के आदेश पर बीते 1 जुलाई से बिल्डरों को छोड़कर बाकी आवंटियों के लिए यही ब्याज दर लागू कर चुके हैं। दरअसल, आम्रपाली मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीती 10 जुलाई को आदेश दिया है कि प्राधिकरणों अन्य आवंटियों से जितना ब्याज ले रहा है, उतना ही बिल्डरों से भी लिया जाए।
विकास प्राधिकरण एक जुलाई से अन्य आवंटियों से प्राधिकरण 8.5 फीसदी ब्याज दर ले रहे हैं। वहीं, बिल्डरों से अब भी 12 से 15 फीसदी तक ब्याज लिया जा रहा है। मामला कोर्ट में होने के कारण नोएडा और ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने बिल्डरों को ब्याज दर में छूट नहीं दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने अन्य आवंटियों की तरह ही बिल्डरों को भी छूट देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने 1 जनवरी 2010 से लागू करने को कहा है। अधिक ब्याज दर से ली गई रकम बिल्डर की भावी किस्तों में समायोजित करने का आदेश दिया है। हालांकि, कोर्ट की तरफ से बिल्डरों पर शर्त लगाई गई है कि दोनों प्राधिकरण बकाया रकम के लिए एक माह में डिमांड नोटिस जारी करेंगे। उसके तीन माह के भीतर बिल्डरों को कुल बकाया रकम का 25 फीसदी एकमुश्त जमा करना होगा। शेष 75 फीसदी रकम एक साल के भीतर जमा करनी होगी। अगर बिल्डर ऐसा नहीं कर पाते तो उन्हें इस छूट का लाभ नहीं मिलेगा।
बता दें कि उत्तर प्रदेश शासन ने भी नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण को ब्याज दरों में कटौती करने को कहा था। इसके बाद तीनों प्राधिकरणों ने एसबीआई के एमसीएलआर (मर्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट) के आधार पर 8.5 फीसदी ब्याज दर तय कर दिया है। इसे एक जुलाई से लागू भी कर दिया है। यमुना प्राधिकरण ने इसका फायदा सभी तरह के आवंटियों को दिया। उनमें बिल्डर भी शामिल थे, लेकिन नोएडा और ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण इस पर निर्णय नहीं ले सके।
क्रेडाई पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सचिव सुबोध गोयल का दावा है कि कोर्ट के इस फैसले से आम्रपाली और जेपी बिल्डर के अटके प्रोजेक्ट भी पूरे हो सकेंगे। साथ ही ग्रेटर नोएडा वेस्ट के करीब 30 और प्रोजेक्ट पूरे हो जाएंगे जिनमें 70 हजार फ्लैट हैं। उनका कहना है कि बिल्डर भारी-भरकम ब्याज दर की वजह से किस्त जमा नहीं कर पा रहे थे। वह डिफॉल्टर होते चले गए। प्रोजेक्ट पूरा करने के बजाय किस्त भरने की कोशिश करते रहे। अधिक ब्याज की रकम किस्त या लीज रेंट में समायोजित हो जाएगी। जिससे किस्तों का बोझ कम होगा।
लेकिन खरीददारों को नहीं मिलेगा फायदा, प्राधिकरण को होगा नुकसान
सुबोध गोयल ने ब्याज कम होने का फायदा खरीदारों को न मिल पाने की बात कही। उनका कहना है कि जमीन विवाद का मामला कोर्ट में होने के कारण दो साल तक काम रुका रहा। इसकी वजह से लागत बढ़ गई है। एनजीटी के आदेश से भी काफी समय तक काम रुका रहा। कई और अड़चनें भी आईं हैं। ब्याज कम होने से सिर्फ इतना फायदा होगा कि अधूरे प्रोजेक्ट पूरे हो सकेंगे और खरीदारों को पजेशन मिल सकेगा। ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के मुताबिक प्राधिकरण का बिल्डरों पर करीब 6500 करोड़ रुपये बकाया हैं। प्राधिकरण का अनुमान है कि 2010 से नई ब्याज दर लागू करने पर करीब 4000 करोड़़ रुपये का नुकसान होगा। ये रकम समायोजित हो जाएगी। भविष्य की मिलने वाली किस्तें खत्म हो जाएंगी। इसका असर शहर में विकास कार्यों पर पड़ सकता है।