बड़ी खबर: रियल एस्टेट के हालात लम्बे वक्त तक सुधरने की उम्मीद नहीं, जेएलएल के सर्वे में झलकी निराशा

देश | 4 साल पहले | Anika Gupta

Google Image | प्रतीकात्मक फोटो



पिछले करीब 5 वर्षों की आर्थिक मंदी और अब विश्वव्यापी महामारी का सबसे ज्यादा बुरा आर्थिक असर रियल एस्टेट पर पड़ा है। हालात का जायजा लेने के लिए प्रॉपर्टी मामलों की विशेषज्ञ कंपनी जेएलएल ने हाल ही में एक सर्वे किया है। बुधवार को कंपनी की ओर से सर्वे रिपोर्ट जारी की गई है। इस सर्वे से निकले निष्कर्षों को देखकर साफ जाहिर होता है कि आने वाला लंबा वक्त रियल एस्टेट सेक्टर के माकूल नहीं है। सर्वे में मायूसी साफ नजर आ रही है।

इससे भी बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि जेएलएल की ओर से करीब ढाई हजार लोगों से जो सवालात किए गए हैं, वह बेहद सामान्य दर्जे के हैं। मतलब पूर्व-अनुमानित उत्तरों वाले सवाल उपभोक्ताओं से किए गए हैं। मसलन, 25 से 30 साल की उम्र के युवा अभी 6 महीने तक घर नहीं खरीदना चाहते हैं। यह सामान्य दिनों की सामान्य सी बात है। विशेषज्ञ कहते हैं कि जब 25 से 30 साल की उम्र के युवा शादी तक नहीं कर पाते हैं तो उन्हें घर खरीदने की जरूरत क्या होगी?

जेएलएल का कहना है कि आर्थिक अनिश्चितता और शेयर बाजार में अस्थिरता ने रियल एस्टेट सेक्टर को एकबार फिर निवेश के लिए पसंदीदा क्षेत्र बना दिया है। जेएलएल के इस निष्कर्ष पर फ्लैट खरीदारों की संस्था नेफोवा के अध्यक्ष अभिषेक कुमार का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में 10 वर्षों पहले रियल एस्टेट में निवेश करके बैठे लोगों को अब तक उनके घर नहीं मिले हैं। यह बात पूरे देश में किसे मालूम नहीं है। आम्रपाली और जेपी जैसी कम्पनी डूब गई हैं। सुपरटेक और तमाम छोटे-बिल्डर घर दे नहीं पा रहे हैं। ऐसे में कौन अपनी जमा पूंजी रेल स्टेट में लगाकर बर्बाद करना चाहेगा।

प्रॉपर्टी मामलों की विशेषज्ञ फर्म जेएलएल की तजा रिसर्च के मुताबिक 50% से अधिक उपभोक्ता अगले छह महीनों में नया घर खरीदने पर विचार कर रहे हैं। जेएलएल के होम बायर वरीयता सर्वेक्षण के अनुसार लोगों से पूछा गया कि वह घर खरीदना चाहेंगे या किराए पर लेना चाहेंगे तो इस सवाल के जवाब में 91% उत्तरदाताओं ने घर खरीदना चाहा है। इस आंकड़े पर समाजशास्त्री और दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर सीके शर्मा का कहना है, "यह भारतीय नजरिया है। भारत में अगर आप किसी भी व्यक्ति से यह सवाल करेंगे तो वह सीधा सा जवाब देगा कि किराए के मकान में रहना पसंद नहीं करता है। इस सवाल का मौजूदा अर्थव्यवस्था और आने वाले दिनों में क्या हालात रहेंगे, इससे कोई सरोकार नहीं है। यह पूरी तरह पूर्व अनुमानित उत्तर वाला प्रश्न है। इसका जवाब स्वाभाविक रूप से यही आना था।" 

जेएलएल के सर्वे के मुताबिक 67% लोगों ने कहा कि घर खरीदना एक आवश्यकता है, न कि विलासिता है। उत्तरदाताओं का कहना है कि COVID-19 महामारी नौकरी की सुरक्षा के साथ अल्पकालिक निर्णय को भी प्रभावित करेगी। यह सबसे बड़ी चिंता है। विशेषज्ञ इस सवाल को भी जेनेरिक मानते हैं। प्रोफेसर शर्मा का कहना है कि घर आवश्यकता ही होती है। घर का विलासिता से कोई सरोकार नहीं होता है। जेएलएल ने जिस श्रेणी के घरों और उपभोक्ताओं को लेकर यह सर्वे किया है, उनका घर के संदर्भ में विलासिता से कोई लेना-देना ही नहीं है। जो लोग महज 2 बैडरूम का घर खरीदना चाहते हैं, जाहिर सी बात है यह उनकी आवश्यकता को ही पूरी करने वाला है। इस महामारी के दौर में तो लोगों का सोचने का नजरिया बदल चुका है। सामान्य दिनों में भी मध्यमवर्ग घर खरीद कर अपनी आवश्यकताओं को ही पूरी करता है।

सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि 20-35 वर्ष आयु वर्ग के लोग घर खरीद की योजना छह महीने से अधिक समय तक स्थगित करना चाहते हैं। 35 वर्ष से अधिक उम्र के उपभोक्ताओं ने संकेत दिया है कि वे अगले छह महीनों में एक संपत्ति खरीदने के लिए इच्छुक हैं। प्रॉपर्टी मामलों के विशेषज्ञ एडवोकेट मुकेश शर्मा कहते हैं 25 से 30 वर्ष की आयु के युवा घरों के सबसे कम खरीददार हैं। अगर पिछले 5 या 10 वर्षों के दौरान भी प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों का विश्लेषण करेंगे तो 35 से 45 वर्ष और 45 से 60 वर्ष आयु वर्ग के लोग घरों के सबसे बड़े खरीददार मिलेंगे। 

वह आगे कहते हैं कि अभी प्रॉपर्टी बाजार को लेकर बहुत ज्यादा निराशा है। अभी यही नहीं कहा जा सकता कि कोविड-19 महामारी का दौर कब खत्म होगा। ऐसे में यह अनुमान लगा लेना कि 6 महीने बाद 25-30 साल के युवक घर खरीदने बाजार में आ जाएंगे, यह समझ से परे है।

जेल के सर्वे में आगे कहा गया है कि संभावित होमबॉयर्स में से 50% से अधिक ने 800 से 1,000 वर्ग फुट आकार के 2 बीएचके अपार्टमेंट खरीदने को प्राथमिकता दी है। जेएलएल के सीईओ रमेश नायर ने कहा, “इस वैश्विक महामारी के दौर में एकबार फिर रियल एस्टेट सबसे अधिक लचीले संपत्ति वर्ग के रूप में उभरा है। बहुत सारे उपभोक्ता आने वाले दिनों में घर खरीदने के लिए बाजार में आएंगे। लिहाजा, हम डेवलपर्स को और अधिक लचीला बनने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।”

महामारी ने डेवलपर्स और बिचौलियों के बीच डिजिटल परिवर्तन की गति को भी तेज कर दिया है। अतीत में हमने देखा है कि परियोजना की खोज ऑनलाइन होती है। अब यह वर्चुअल टूर और इंटरैक्शन में चली गई है। इस सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं में से हरेक पांचवें ने कहा कि वह अपने लेन-देन ऑनलाइन करने के लिए तैयार हैं।

जेएलएल के मुख्य अर्थशास्त्री और हेड रिसर्च सामंतक दास ने कहा, “यह उत्साहजनक है कि सर्वेक्षण में शामिल 50% से अधिक होमबॉयर्स ने अगले छह महीनों के भीतर घर खरीदने के लिए अपनी तत्परता व्यक्त की है। उसी समय डेवलपर्स को इस नाजुक कारोबारी माहौल में कुछ विशेष योजनाओं और सुविधाओं के साथ आना होगा।"

अगर देश के अलग-अलग हिस्सों की बात करें तो हैदराबाद, पुणे और चेन्नई के बाजार औसत निर्माण अवधि और बेचने के समय के हिसाब से स्वस्थ इन्वेंट्री प्रबंधन के संकेत दे रहे हैं। दीर्घकालीन लचीलापन बेंगलुरु और चेन्नई के दक्षिणी बाजारों में पहले दिखाई दे सकता है। दिल्ली-एनसीआर और मुंबई के बड़े बाजारों में निर्माण के विभिन्न चरणों में अनसोल्ड इन्वेंट्री बहुत ज्यादा है। बिक्री में लंबे समय और मंदी के कारण हालत सुधरने में सबसे ज्यादा समय लगेगा।

किफायती और मिड सेगमेंट बाजार को आगे बढ़ते रहेंगे। सर्वे में शामिल अधिकांश उत्तरदाताओं ने 50 लाख रुपये और 50-75 लाख रुपये श्रेणी की संपत्तियों के लिए वरीयता दी है। पिछले वर्षों में नए लॉन्च के 60% घर इसी कीमत के हैं। सर्वेक्षण इस साल जून-जुलाई में किया गया है। इसमें मुंबई, दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु, पुणे, चेन्नई और हैदराबाद के 2,500 उत्तरदाताओं ने भाग लिया था।

कुल मिलाकर सर्वे से ही यह बात साफ हो जाती है कि जेएलएल के पास उपभोक्ताओं से पूछने के लिए ठोस सवाल ही उपलब्ध नहीं थे। खुद रियल एस्टेट कारोबार से ताल्लुक रखने वाले और ग्रेटर नोएडा वेस्ट में करीब 6 साल पहले घर खरीदने वाले विवेक रमण तिवारी का कहना है, "जब मैंने घर खरीदा था तो मेरी उम्र 36 साल थी। वह वक्त बिल्कुल अलग था। माहौल बहुत अच्छा था। रियल एस्टेट सेक्टर में बूम था। अब मेरा भाई 36 साल का है। उसकी शादी भी हो चुकी है, लेकिन वह अगले तीन-चार साल घर खरीदने के लिए तैयार नहीं है। इस वक्त असमंजस और अस्थिरता का दौर है। जिनके पास पैसा है, वह किसी भी सूरत में खर्च करने के लिए तैयार नहीं हैं।

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