कामयाबीः ग्रेटर नोएडा से दो साल पहले अगवा बच्चा बदायूं से बरामद, आरोपियों ने रची थी गहरी साजिश, पढ़ें रिपोर्ट

नोएडा | 3 साल पहले |

Google Image | ग्रेटर नोएडा से दो साल पहले अगवा बच्चा बदायूं से बरामद



कोरोना के काल चक्र में उलझी ग्रेटर नोएडा पुलिस ने करीब दो साल पुराने एक अपहरण कांड का खुलासा किया है। ग्रेटर नोएडा की थाना ईकोटेक-3 क्षेत्र से वर्ष 2019 में अगवा हुए एक बच्चे को पुलिस ने गुरुवार को बरामद किया। ग्रेटर नोएडा पुलिस पिछले दो साल से मामले में लगातार कड़ियां जोड़ रही थी। इसमें आज सफलता मिली है। पुलिस ने इस मामले से जुड़े दो आरोपियों को भी गिरफ्तार किया है। उनसे पूछताछ की जा रही है। अगवा शादाब को पिता शाहिद अली अपने साथ ग्रेटर नोएडा ले गए हैं।

90 हजार में बेचा था
थाना ईकोटेक-3 के प्रभारी निरीक्षक भुवनेश कुमार ने बताया कि जनपद के जलपुरा गांव में रहने वाले बच्चे शादाब अली का जुलाई, 2019 में अपहरण हो गया था। उसके परिजनों ने अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। कुमार ने बताया कि मामले की जांच कर रही थाना पुलिस ने एक सूचना के आधार पर गुरुवार को यूपी के बदायूं जिले से बच्चे को बरामद किया है। बच्चे को राजाराम तथा उसकी मां ने ग्रेटर नोएडा से अगवा करके बदायूं में रहने वाले अपने रिश्तेदार राजेंद्र शाक्य को 90 हजार रुपए में बेच दिया था।

दो गिरफ्तार हुए
उन्होंने बताया कि राजेंद्र शाक्य का कोई बेटा नहीं था। उसकी तीन बेटियां हैं। इसलिए उसने शादाब को खरीद लिया था। उसके रिश्ते का साढू राजाराम अखटामई का रहने वाला है। वह ग्रेटर नोएडा में काम करता था। करीब दो साल पहले राजाराम ही शादाब को अगवा करके लाया था। गांव में यह बात फैला दी थी कि उसने बच्चे को गोद लिया है। उन्होंने बताया कि आरोपियों ने शादाब का नाम बदलकर अंश शाक्य रख दिया था। थाना प्रभारी ने बताया कि इस मामले में पुलिस ने राजाराम तथा राजेंद्र को गिरफ्तार कर लिया है। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा रही है।

शादाब से अंश हुआ बालक
ग्रेटर नोएडा का शादाब करीब दो साल तक बदायूं के गंगी नगला गांव में रहा। इस दौरान वह अपना अतीत भूल गया था। उसे पता नहीं था कि वह कौन है और कहां से लाया गया है। शुरुआत में उसे परेशानी हुई थी, लेकिन बच्चों में रहकर वह सब कुछ भूल गया। अपने मां-बार को विस्मृत कर दिया।इससे राजेंद्र ने भी उसका नाम अंश शाक्य रख लिया। उसे धर्म से हिंदू बना दिया। बाल कटवाने के दौरान उसकी चोटी बनवाई गई। राजेंद्र के परिवार वाले उसे अंश कहकर बुलाते थे। वह इसी नाम से खुद को पहचानता भी था। 

फोटो दिखाने पर भी नहीं याद कर सका
जब शादाब को कादरचौक थाने लाया गया था, उस समय उसके पिता ने उसके बचपन के फोटो दिखाए। मां-बाप और बहनों के भी फोटो दिखाए। लेकिन वह किसी को पहचान नहीं सका। वह सब कुछ भूल चुका था। मासूम के स्मृति पटल से सारी यादें मिट चुकी थीं। बच्चे को पुरानी बातें भूलने के लिए दो साल बहुत ज्यादा थे। इससे वह राजेंद्र को ही पिता मानने लगा था।
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