Noida Twin Towers Demolition : नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर पर सुप्रीम कोर्ट का हथोड़ा कल दोपहर 2:30 बजे चल जाएगा, लेकिन इस कंपनी के अवैध कारनामों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। इस कम्पनी को चलाने वाले आरके अरोड़ा के हाथ कितने लंबे हैं, अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारों में उसने जो चाहा वह करके दिखाया। अब योगी आदित्यनाथ की सरकारों में भी उसका बाल बांका नहीं हो पाया है। आखिर सवाल यह उठता है कि सुपरटेक बिल्डर को बचा कौन रहा है? पीड़ितों और बिल्डर के खिलाफ आवाज उठाने वालों का कहना है कि यह एक्शन तो सुप्रीम कोर्ट की वजह से हो रहा है।
ट्विन टावर मामले में अब तक एक्शन क्यों नहीं
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर जैसे कई और अवैध निर्माण इस कंपनी की परियोजनाओं में खड़े हुए हैं। उनके खिलाफ केवल जांच चल रही हैं। जिस पर प्राधिकरण और सरकार के बीच बस फाइलें इधर से उधर दौड़ती हैं। कार्यवाही के नाम पर सब कुछ सिफर है। अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से आदेश आने के बावजूद सुपरटेक ट्विन टावर जैसी अवैध इमारत खड़ी करने वाले बिल्डर पर अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है। दूसरी ओर इन योजनाओं में घर खरीदने वाली पब्लिक दर-दर की ठोकरें खा रही है।
ग्रेटर नोएडा में जार सोसायटी का मामला एक दशक से लंबित
नोएडा में ट्विन टावर की तरह सुपरटेक बिल्डर ने ग्रेटर नोएडा की जार हाउसिंग सोसाइटी में बिना मंजूरी मिले बड़ी संख्या में अवैध घर बना कर खड़े किए हैं। इस मामले के खिलाफ प्रोफेसर एके सिंह ने आवाज उठाई थी। बिल्डर ने उनका आवंटन रद्द कर दिया। आज तक उन्हें ना तो घर दिया और ना पैसा लौटाया है। एके सिंह कहते हैं, "इस हाउसिंग सोसायटी में सुपरटेक बिल्डर को केवल 844 घर बनाने की इजाजत मिली थी। इतने ही घरों के नक्शे ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में पास किए थे। बिल्डर ने अपनी मनमर्जी से 1,904 घर बना कर खड़े कर दिए। मतलब, 1,060 घर अतिरिक्त बनाए। मैंने इसकी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में शिकायत की। प्राधिकरण ने जांच की और अतिरिक्त घरों को तोड़ने का आदेश पारित कर दिया। प्राधिकरण के उस आदेश के खिलाफ आरके अरोड़ा ने औद्योगिक विकास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव के यहां अपील की। उस वक्त के प्रमुख सचिव ने नियमों को दरकिनार करते हुए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का आदेश रद्द कर दिया था।"
प्रमुख सचिव ने अवैध निर्माण को जायज बताया
एके सिंह कहते हैं, "प्रमुख सचिव ने सुपरटेक बिल्डर के अवैध घरों को नियमित बताते हुए अतिरिक्त एफएआर देने का आदेश नोएडा अथॉरिटी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को भेज दिया।" आरके सिंह आगे कहते हैं, "मैंने प्रमुख सचिव के आदेश को साल 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की ओर दोबारा प्रमुख सचिव को रिवीजन करने का आदेश दिया। अभी यह रिवीजन ऑर्डर शासन में लंबित पड़ा हुआ है। मैं प्राधिकरण और शासन स्तर पर हो रही हीला-हवाली के खिलाफ 2019 में हाईकोर्ट गया हूं। हाईकोर्ट में याचिका लंबित चल रही है।" आरके सिंह आगे कहते हैं, "सुपरटेक लिमिटेड के चेयरमैन आरके अरोड़ा ने किसी कानून का पालन नहीं किया है। उन्होंने मनमर्जी की है। अपने हिसाब से अथॉरिटी और औद्योगिक विकास विभाग के नियमों को बदलवाया है। नोएडा का ट्विन टावर और ग्रेटर नोएडा की जार हाउसिंग सोसायटी तो सामने आने वाले मामले हैं। अगर सुपरटेक कंपनी के सारे प्रोजेक्ट की जांच करवाई जाए तो ऐसे ही तमाम कारनामे सामने आएंगे। इस कंपनी ने ना नियमों का पालन किया और ना गुणवत्तापूर्ण निर्माण किया है। सभी योजनाओं में नियमों और निर्माण की जांच की जानी चाहिए।"
यमुना प्राधिकरण में दाखिल किया था फर्जी शासनादेश, सीईओ को हटवाया
गौतमबुद्ध नगर में लम्बे अरसे से काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार आदेश भाटी बताते हैं, "सुपरटेक कंपनी की ताकत का एहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में भी इस कंपनी के हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में मनमानी व धांधली की गई हैं। जब यह बात खुलकर सामने आई तो तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने जांच का आदेश दे दिया। दरअसल, कंपनी ने निर्धारित एफएआर से ज्यादा उपयोग करते हुए अवैध निर्माण किया है। इसे जायज ठहराने के लिए कंपनी की ओर से एक फर्जी शासनादेश यमुना अथॉरिटी में दाखिल किया गया। तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने इस शासनादेश की जांच करवाई। जिसमें शासन ने बताया कि ऐसा कोई शासनादेश सुपरटेक के हक में जारी नहीं किया गया।" आदेश भाटी ने आगे बताया कि सीईओ ने फर्जी शासनादेश को गंभीरता से लिया और सुपरटेक कम्पनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी। इस एफआईआर पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। पूरे मामले को रफा-दफा कर दिया गया है। इतना ही नहीं एफआईआर दर्ज होते ही सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा के दबाव में तत्कालीन सीईओ का तबादला यमुना प्राधिकरण से कर दिया गया था।"
कुल मिलाकर साफ है कि भले ही उत्तर प्रदेश में सरकारें बदलती रहीं लेकिन सुपरटेक के आरके अरोड़ा के रसूख में कोई कमी नहीं आई। ट्विन टावर मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक्शन हो रहा है। अफसर अब भी चुप्पी साधकर बैठे हैं। अवैध निर्माण करके सैकड़ों घर खरीदारों से धोखाधड़ी और जालसाजी करने वाले आरके अरोड़ा के खिलाफ अभी जांच चल रही है। अभी उस तक आंच नहीं पहुंच पाई है। आम आदमी का सवाल यही है, आखिर कब आरके अरोड़ा को उसके किए की सजा मिलेगी?