कारगिल दिवस पर नोएडा के कैप्टन विजयंत थापर की अमर गाथा: गाजियाबाद और बुलंदशहर के जवानों ने सिखाया दुश्मनों को सबक, पढ़िए आखिरी खत में क्या लिखा

नोएडा | 3 महीना पहले | Jyoti Karki

Tricity Today | Captain Vijayant Thapar



Noida News : कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के अवसर पर, हम उन वीर सपूतों को याद करते हैं जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इन वीरों में नोएडा के कैप्टन विजयंत थापर (Captain Vijayant Thapar) और गाजियाबाद के लांस नायक ओमप्रकाश सिंह भी शामिल हैं, जिनकी वीरता की कहानियां आज भी हमें प्रेरित करती हैं।

विजयंत थापर का परिजनों को आखिरी पत्र 
कैप्टन विजयंत थापर, महज 22 वर्ष की आयु में, दुश्मन की गोलियों के बीच तिरंगा फहराते हुए शहीद हो गए। उनके पिता, सेवानिवृत्त कर्नल वी.एन. थापर, हर साल कारगिल की वीर भूमि पर जाकर अपने बेटे और अन्य शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। वे कहते हैं, "इस पवित्र मिट्टी को छूते ही मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है।" विजयंत की वीरता का एक अद्भुत प्रमाण उनका वह पत्र है, जो उन्होंने अपने बैचमेट को दिया था। उस पत्र में उन्होंने लिखा था, "जब तक यह पत्र आपको मिलेगा, मैं आसमान से अप्सराओं के साथ आपको देख रहा होऊंगा। मुझे कोई दुख नहीं है, अगले जन्म में अगर मैं फिर इंसान बनता हूं तो दोबारा सेना में भर्ती होकर देश के लिए लड़ूंगा।" यह पत्र आज भी उनके माता-पिता के पास सुरक्षित है।

गाजियाबाद के शहीद ओमप्रकाश सिंह 
गाजियाबाद के लोनी के शहीद लांस नायक ओमप्रकाश सिंह ने भी अपनी वीरता से इतिहास रचा। उन्होंने द्रास सेक्टर की दुर्गम पहाड़ी पर दो बार दुश्मनों को खदेड़कर तिरंगा फहराया। एक हमले में उन्होंने कई दुश्मनों को मार गिराया और  स्वयं भी शहीद हो गए।

आजादी और सुरक्षा की कीमत
ओमप्रकाश बचपन से ही देश सेवा का सपना देखते थे। 1986 में उनका चयन राजपूताना राइफल्स में हुआ। 1990 में उनका विवाह हुआ और 1999 में उनके बेटे का जन्म हुआ, उसी वर्ष वे कारगिल युद्ध में शहीद हो गए। इन वीर सपूतों की कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि हमारी आजादी और सुरक्षा की कीमत क्या है। कारगिल विजय दिवस पर हम इन शहीदों और उनके परिवारों को नमन करते हैं, जिन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी वीरता और देशभक्ति हमेशा हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगी।

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