Tricity Today | ट्रांसजेंडर महिला उरूज़ हुसैन ने नोएडा में शुरू किया कैफे
एक ट्रांसजेंडर महिला उरूज़ हुसैन ने नोएडा के सेक्टर-119 में एक कैफे शुरू किया है। उन्हें उम्मीद है कि वह उनके "समुदाय" में दूसरों को प्रेरित करेंगी। हुसैन ने बताया, "मुझे अपने कार्यस्थलों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इसलिए मैंने अपना कैफे शुरू करने का फैसला किया है। जो सभी के साथ समान व्यवहार करता है। मुझे उम्मीद है कि यह मेरे समुदाय से दूसरों को प्रेरित करेगा।"
उरूज़ हुसैन ने कहा, "लोगों ने मुझे यहां स्वीकार किया है, उन्होंने मुझ पर प्यार बरसाया है।" हुसैन ने आतिथ्य के क्षेत्र में औद्योगिक प्रशिक्षण लिया है। वह इससे पहले कई नौकरियां कर चुकी हैं। अब वह अंततः अपने कारोबार की मालिक बन गई हैं। हुसैन ने कहा, "मेरा कैफे सभी लिंगों के लिए उत्पीड़न-मुक्त है। मेरे साथ जो हुआ है, उसका सामना किसी अन्य को करने की ज़रूरत नहीं है। मेरे माता-पिता नहीं हैं, लेकिन मेरे होने पर उन्हें गर्व होगा।"
उरूज़ हुसैन ने आगे कहा, "हालांकि, कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। हमें परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जब हम कैफे के लिए लोगों को नियुक्त करते हैं। मुझे पता था कि अगर मैंने हिम्मत खो दी तो मैं टूट जाउंगी। मैं टूटना नहीं चाहती हूं।" हुसैन ने यौनकर्मियों, उनके बच्चों को भी COVID-19 लॉकडाउन में मदद की। इसी समय सेक्टर-119 में उरूज़ हुसैन का कैफे "स्ट्रीट टेम्पटेशन" शुरू हुआ है। यह कैफे भारतीय-चीनी भोजन परोसता है।
बदलाव समाज आगे बढ़ाता है। आज हम आपको एक ऐसे बदलाव की कहानी बताने जा रहे हैं, जो हिम्मत और हौसले को बयां करती है। समाज के वंचित हिस्से ट्रांसजेंडर के एक सदस्य ने मिसाल पेश की। है। करीब 22 साल तक लड़का रहने के बाद वह महिला बन गई हैं। इस दौरान तमाम बुरे अनुभव झेले हैं। अब उरूज़ हुसैन ने नोएडा के सेक्टर-119 में एक कैफे शुरू किया है। उन्हें उम्मीद है कि वह उनके "समुदाय" में दूसरों को प्रेरित करेंगी।
उरूज़ हुसैन ने बताया, "मुझे अपने कार्यस्थलों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। इसलिए मैंने अपना कैफे शुरू करने का फैसला किया है। जो सभी के साथ समान व्यवहार करता है। मुझे उम्मीद है कि यह मेरे समुदाय से दूसरों को प्रेरित करेगा।" वह अब नोएडा में स्ट्रीट टेम्पटेशन नाम का एक रेस्त्रां चलाती हैं। वह कहती हैं, "मैं एक एंटरप्रन्योर और सोशल वर्कर हूं, लेकिन जब लोग मुझे देखते हैं तो मेरी पहली पहचान ट्रांसवुमन के तौर पर ही करते हैं। लोगों की नजर में हमारी तस्वीर कुछ इस तरह की बन गई है कि उन्हें हम सिर्फ एक किन्नर ही नजर आते हैं।"
उरूज़ हुसैन ने कहा, "लोगों ने मुझे यहां स्वीकार किया है, उन्होंने मुझ पर प्यार बरसाया है।" हुसैन ने आतिथ्य के क्षेत्र में औद्योगिक प्रशिक्षण लिया है। वह इससे पहले कई नौकरियां कर चुकी हैं। अब वह अंततः अपने कारोबार की मालिक बन गई हैं। हुसैन ने कहा, "मेरा कैफे सभी लिंगों के लिए उत्पीड़न-मुक्त है। मेरे साथ जो हुआ है, उसका सामना किसी अन्य को करने की ज़रूरत नहीं है। मेरे माता-पिता नहीं हैं, लेकिन मेरे होने पर उन्हें गर्व होगा।"
अब तो लोग साथ खड़े होकर सेल्फी लेते हैं : उरूज आगे कहती हैं, "सामान्य तौर पर लोगों को लगता है कि हम ताली बजाकर भीख मांगेंगे या सेक्स वर्कर्स हैं। असलियत इससे काफी अलग है। सारे ट्रांसजेंडर एक जैसे नहीं हैं। मुझे खुद पर गर्व होता है कि मैं समाज के बनाए स्टीरियोटाइप तोड़ रही हूं। खुद के दम पर अपना रेस्त्रां चला रहीं हूं। यहां आने वाले बहुत सारे लोग मेरे साथ खड़े होकर सेल्फी लेते हैं। कुछ लोग अपने बच्चों को मेरे बारे में बताकर प्ररेणा लेने को कहते हैं। तब मुझे अहसास होता है कि सोसायटी में अच्छे लोगों की भी कोई कमी नहीं है।"
जैसे जैसे बड़ी हुईं सब साथ छोड़ने लगे : उरूज का बचपन भी कम कठिनाइयों से भरा नहीं था। वह पुराणी बातें याद करके बताती हैं, ‘मैंने एक सामान्य बच्चे की तरह जन्म लिया था। धीरे-धीरे मुझे एहसास होने लगा कि मेरा शरीर ही सिर्फ लड़कों जैसा है, लेकिन मेरी फीलिंग्स एक औरत जैसी हैं। इसी वजह से मुझे परिवार और समाज में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। परशानियों की शुरुआत परिवार से हुई। मेरे दोस्त और परिजन चाहते थे कि मैं लड़के की तरह बर्ताव करूं। मैंने कोशिश भी की लेकिन मुझसे नहीं हो पाया। जिसकी वजह से दोस्तों और परिवार से दूरी बनती चली गई।"
अपना काम शुरू हुआ लेकिन चुनौतियां बरकरार : उरूज़ हुसैन ने आगे कहा, "हालांकि, कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। हमें परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जब हम कैफे के लिए लोगों को नियुक्त करते हैं। मुझे पता था कि अगर मैंने हिम्मत खो दी तो मैं टूट जाउंगी। मैं टूटना नहीं चाहती हूं।" हुसैन ने यौनकर्मियों, उनके बच्चों को भी COVID-19 लॉकडाउन में मदद की। इसी समय सेक्टर-119 में उरूज़ हुसैन का कैफे "स्ट्रीट टेम्पटेशन" शुरू हुआ है। यह कैफे भारतीय-चीनी भोजन परोसता है।
स्कूल से वर्कप्लेस तक अच्छा बर्ताव नहीं किया गया : उरूज कहती हैं, "आज मुझे खुद पर गर्व होता है। मैं समाज के बनाए स्टीरियोटाइप तोड़ रही हूं। खुद के दम पर अपना रेस्त्रां चला रहीं हूं। इंटर्नशिप के दौरान लोग बुरा बर्ताव करते थे। बचपन में क्लास में भी लड़के मेरा मजाक बनाते थे। मुझे बहुत परेशान किया जाता था। मैंने हार नहीं मानी। स्कूल के बाद मैंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और 2013 मे मैं दिल्ली आ गई। यहां एक इंटर्नशिप के दाैरान वर्कप्लेस पर मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव होता था। लोग मुझे गलत तरीके से छूने की कोशिश करते थे, मुझे परेशान करते थे। उन्हें लगता था कि ट्रांसजेंडर तो मौज मस्ती का सामान हैं। मजाक और चुहलबाजी करने के लिए होते हैं। मुझसे अजीब सवाल करते थे।"
मजबूर होकर सोसायटी से दूसरी बना ली : उरूज ने कहा, "इस तरह के खराब व्यवहार से परेशान होकर मैंने खुद को लोगों से दूर कर लिया। एक समय तो ऐसा आया कि मैंने खुद को घर में बंद कर दिया। तब मुझे लगने लगा था कि मैं हार चुकी हूं। लेकिन, तभी मैंने तय किया कि अगर मैं हिम्मत हार जाऊंगी तो टूट जाऊंगी और मैं टूटना नहीं चाहती थी। वह कहती हैं, ‘मैं 22 साल तक दुनिया की नजर में एक लड़का थी। मैं वर्कप्लेस पर एक पुरुष की तरह ही काम करती थी। सहकर्मी मुझे हमेशा चिढ़ाते थे। मैं हमेशा कंफ्यूज रहती थी कि मैं क्या चाहती हूं। इससे पहले मुझे ट्रांजिशन के प्रोसेस के बारे में पता भी नहीं था, क्योंकि मैं बिहार के छोटे से शहर की रहने वाली हूं।"
छह साल पहले खुद को बदलने का आइडिया आया : उरूज ने कहा, "कश्मकश के बाद करीब छह साल पहले 2014 में मैंने सोचा कि मुझे अब खुद को बदलना चाहिए। इसके लिए साइकोमैट्रिक टेस्ट करवाया। मैंने लेजर थेरेपी ट्रीटमेंट शुरू किया। इस दौरान सालभर का वक्त ऐसा भी आया, जब मुझे घर पर ही रहना होता था। इस दौरान काफी मूड स्विंग्स और अकेलापन महसूस होता है। कई बार सुसाइडल थॉट्स भी आते थे। आज मैं अपनी बॉडी से खुश हूं। इससे पहले लगता था कि मैं किसी जेल में थी।" उरूज बताती हैं कि अभी रोजाना 4 से 5 हजार रुपए के ऑनलाइन ऑर्डर आते हैं। मैं इस रेस्त्रां को बढ़ाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हूं।" वह आगे कहती हैं, "वर्ष 2014 से 2015 के बीच मेरा हार्मोन ट्रांसफॉर्मेशनल पीरियड था। इसके बाद 2015 से 2017 तक मैंने दिल्ली में ही ललित होटल में काम किया। वहां मैंने एक फीमेल के तौर पर ही काम किया। चूंकि ललित ग्रुप एलजीबीटी कम्युनिटी को सपोर्ट करता है, इसलिए मुझे वहां किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। किसी तरह का हैरेसमेंट फील नहीं हुआ।"
दोस्त ने बिजनेस पार्टनर बनकर बड़ी मदद की : उरूज कहती हैं, "मैंने अपना रेस्त्रां खोलने की योजना तो बना ली लेकिन एक ट्रांसवुमन को कोई अपनी प्रॉपर्टी देने के लिए तैयार नहीं था। मुझे रेस्त्रां शुरू करने में काफी परेशान होना पड़ा। मुझे मेरे जेंडर की वजह से कोई शॉप देने को तैयार नहीं था। तब मेरे एक दोस्त अजय वर्मा ने मेरी मदद की, आज वो मेरे बिजनेस पार्टनर भी हैं।" हालांकि, उनकी परेशानियां यहीं खत्म नहीं हुईं। रेस्त्रां शुरू होने के 4 महीने बाद ही लॉकडाउन लग गया। कई महीनों की बंदी के बाद जुलाई में दोबारा से रेस्त्रां खोला।
हर शहर में रेस्त्रां खोलने की हसरत, बॉलीवुड से शिकायत : उरूज आज अपने काम से काफी खुश हैं। वह कहती हैं, "मेरे रेस्त्रां पर जो कस्टमर आते हैं, उनका व्यवहार काफी अच्छा हाेता है। अभी हमारी सात लोगों की टीम काम है। इनमें 2 शेफ हैं। मेरी ख्वाहिश है कि हर शहर में मेरे रेस्त्रां हों और उसे ट्रांसजेंडर्स ही चलाएं। मैं बस यही चाहती हूं कि ट्रांसजेंडर्स भी समाज की मुख्य धारा में आएं। वे अपना बिजनेस करें और खुद को स्टेबिलिश करें। उन्हें समानता का हक़ मिले। उन्हें कोई कौतुहल से नहीं देखे। उनसे कोई डरे नहीं और बस अपने जैसे समझे। हमें किसी से कुछ ज्यादा नहीं चाहिए। बस बराबरी का दर्जा चाहिए।"
आम इंसान जैसे सारे भाव ट्रांसजेंडर में भी हैं : उरुज को बॉलीवुड से एक बड़ी शिकायत है। वे कहती हैं कि बॉलीवुड मूवीज में ट्रांसजेंडर्स को या तो मजाक के तौर पर दिखाया जाता है या सेक्स सिंबल के रूप में दिखाया जा रहा है। यह सही नहीं है। इसलिए समाज में ट्रांसजेंडर्स को मजाक या सेक्स के नजरिए से ही देखा जाता है। फ़िल्में समाज में परशेप्शन क्रिएट करती हैं। उरूज चाहती हैं कि बॉलीवुड में ट्रांसजेंडर्स को मीनिंगफुल किरदारों में दिखाना चाहिए। जिससे हमारे समाज को ट्रांसजेंडर्स के बारे में असलियत का पता चले। ट्रांसजेंडर भी आम इंसान हैं। भावना, संवेदना, प्रेम, क्रोध, सम्मान, अपमान, ग्लानि, गर्व, महत्वकांक्षा और इच्छा के भाव इनमें भी हैं।