सबसे बड़ा सवाल : ट्विन टावर तो गिर गए लेकिन इन पर कब गिरेगी गाज

नोएडा | 2 साल पहले | Pankaj Parashar

Tricity Today | RK Arora and Mohinder Singh



Supertech Twin Towers Demolition : आखिरकार 9 साल लंबी कानूनी लड़ाई और 6 महीने से चल रही तैयारी परिणाम लेकर आई। अब से थोड़ी देर पहले नोएडा में भ्रष्टाचार का प्रतीक बना सुपरटेक ट्विन टावर जमींदोज हो गया है। अब हर किसी के जेहन में एक सवाल चल रहा है। ट्विन टावर तो गिर गए, इन्हें खड़ा करने वालों पर गाज कब गिरेगी? अगर सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर और कानूनी कार्यवाही का अध्ययन करें तो ट्विन टावर बनाने के लिए दो लोग जिम्मेदार हैं। अब से पहले गाज गिर जानी चाहिए थी। ये दोनों सुपरटेक लिमिटेड के चेयरमैन आरके अरोड़ा और नोएडा अथॉरिटी के चेयरमैन-सीईओ रहे सरदार मोहिंदर सिंह हैं। बड़ी बात यह है कि अभी इन दोनों तक अभी कार्रवाई तो दूर जांच भी नहीं पहुंची है।

मोहिंदर सिंह के कार्यकाल में हुआ खेल
सुपरटेक बिल्डर ने ट्विन टावर्स के निर्माण की प्रक्रिया 2006 में शुरू की थी। पहली बार इसके नक्शे पास करवाए गए थे। तब नोएडा अथॉरिटी के चेयरमैन मोहिंदर सिंह थे। उसके बाद साल 2009 में निर्माण बढ़ाकर नए नक्शे पास किए गए। उस वक्त मोहिंदर सिंह प्राधिकरण के सीईओ और चेयरमैन थे। कुल मिलाकर मोहिंदर सिंह के कार्यकाल में ट्विन टावर को जरूरी मंजूरी दी गई थीं। इतना ही नहीं नोएडा और ग्रेटर नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर जैसे कई और अवैध निर्माण इस कंपनी की परियोजनाओं में खड़े हुए हैं। उनके खिलाफ केवल जांच चल रही हैं। जिस पर प्राधिकरण और सरकार के बीच बस फाइलें इधर से उधर दौड़ती हैं। कार्यवाही के नाम पर सब कुछ सिफर है। अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से आदेश आने के बावजूद सुपरटेक ट्विन टावर जैसी अवैध इमारत खड़ी करने वाले बिल्डर पर अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया है। दूसरी ओर इन योजनाओं में घर खरीदने वाली पब्लिक दर-दर की ठोकरें खा रही है। यह सारी मंजूरियां मोहिंदर सिंह के कार्यकाल में मिली हैं।

कौन हैं मोहिंदर सिंह
मोहिंदर सिंह उत्तर प्रदेश कैडर में 1978 बैच के आईएएस अफसर थे। वह साल बसपा सरकार के दौरान गौतमबुद्ध नगर में पोस्ट किए गए थे। एक वक्त ऐसा था जब वह नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के सीईओ थे और यमुना अथॉरिटी के चेयरमैन थे। उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास आयुक्त, श्रमायुक्त और यूपी के स्थानिक आयुक्त के अतिरिक्त प्रभार थे। तत्कालीन सीएम के ऑफिस में उनकी सीधी पहुंच थी। मोहिंदर सिंह ने प्राधिकरणों में भूमि आवंटन नीति बदली थी। आवंटन के सापेक्ष बिल्डरों को भुगतान करने के लिए बेहद लचीली पॉलिसी मोहिंदर सिंह ने लागू की। डिफॉलटर आवंटयों को राहत देने के नियम बनाए। मामूली और अनुभवहीन कंपनियों को कंसोर्टियम बनाकर लाखों वर्गमीटर जमीन दीं। जिससे तीनों अथॉरिटी को भारी नुकसान हुआ है। यह सवाल सुप्रीम कोर्ट और भारत के महालेखा परीक्षक ने पूछे हैं। मोहिंदर सिंह रिटायर हो चुके हैं। बताया जाता है कि वह आजकल ऑस्ट्रेलिया में हैं।

अफसरों के खिलाफ चीटीं की चाल चल रहीं हैं जांच
नोएडा अथॉरिटी ने 4 अक्टूबर 2021 को लखनऊ में एफआईआर दर्ज करवाई। विजिलेंस डिपार्टमेंट इसकी जांच कर रहा है। अथॉरिटी में विभागीय जांच में सवाल-जवाब चल रहे हैं। यही नहीं विभागीय जांच में आरोपी तत्कालीन किसी आईएएस या पीसीएस अधिकारी को शामिल नहीं किया गया है। जिनकी जांच चल रही है, वह जवाब अपनी सहूलियत से दे रहे हैं। अथॉरिटी को 11 आरोपी अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र जारी करने की मंजूरी शासन से मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त 2021 को फैसला सुनाया था। नोएडा अथॉरिटी में तत्कालीन अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर अदालत ने तल्ख टिप्पणी की थी। इसके बाद सीएम के आदेश पर हाईलेवल एसआईटी बनी। एसआईटी जांच के बाद अथॉरिटी ने एफआईआर करवाई और उसमें 24 तत्कालीन अधिकारी आरोपी हैं। नोएडा अथॉरिटी में इन आरोपी अधिकारियों की तैनाती 2004 से 2012 तक रही है। जांच अथॉरिटी के एसीईओ प्रवीण मिश्रा कर रहे हैं।

आईएएस और पीसीएस के खिलाफ जांच की इजाजत नहीं
टि्वन टावर को लेकर हुए भ्रष्टाचार में पूर्व सीईओ मोहिंदर सिंह, एसके द्विवेदी, पूर्व एसीईओ आरपी अरोड़ा, पूर्व ओएसडी यशपाल सिंह, पीएन बाथम आरोपी हैं। इनके खिलाफ विजिलेंस में एफआईआर तो दर्ज करवाई गई है। विभागीय जांच में ये आईएएस और पीसीएस अब तक बचे हुए हैं। इनके नीचे के अधिकारियों पर आरोप पत्र जारी करने का निर्णय शासन ने लिया है। इनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के लिए शासन की मंजूरी अथॉरिटी को चाहिए। यह मंजूरी अथॉरिटी ने मांगी है, लेकिन शासन से कोई जवाब अब तक नहीं आया है। टि्वन टावर के लिए नियम ताक पर रखकर सुपरटेक बिल्डर ने मंजूरी हासिल कीं। सपा और बसपा की सरकारों में बिल्डर की तूती बोलती थी। दूसरी ओर मंजूरी देने वाले अधिकारी भी बीएसपी-सपा सरकार में पावरफुल थे।

कौन हैं आरके अरोड़ा
आरके अरोड़ा सुपरटेक कम्पनी के संस्थापक हैं। अभी कम्पनी के चेयरमैन और सीएमडी हैं। मूल रूप से मेरठ के रहने वाले हैं। करीब 40 साल से एनसीआर में कंस्ट्रक्शन और रियल एस्टेट कारोबार से जुड़े हैं। उन्होंने करीब 27 साल पहले 7 दिसंबर 1995 को सुपरटेक लिमिटेड की नींव रखी थी। अब वह 32 कंपनियां चला रहे हैं।

ग्रेटर नोएडा में जार सोसायटी में अवैध निर्माण
नोएडा में ट्विन टावर की तरह सुपरटेक बिल्डर ने ग्रेटर नोएडा की जार हाउसिंग सोसाइटी में बिना मंजूरी मिले बड़ी संख्या में अवैध घर बना कर खड़े किए हैं। इस मामले के खिलाफ प्रोफेसर एके सिंह ने आवाज उठाई थी। बिल्डर ने उनका आवंटन रद्द कर दिया। आज तक उन्हें ना तो घर दिया और ना पैसा लौटाया है। एके सिंह कहते हैं, "इस हाउसिंग सोसायटी में सुपरटेक बिल्डर को केवल 844 घर बनाने की इजाजत मिली थी। इतने ही घरों के नक्शे ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में पास किए थे। बिल्डर ने अपनी मनमर्जी से 1,904 घर बना कर खड़े कर दिए। मतलब, 1,060 घर अतिरिक्त बनाए। मैंने इसकी ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में शिकायत की। प्राधिकरण ने जांच की और अतिरिक्त घरों को तोड़ने का आदेश पारित कर दिया।  प्राधिकरण के उस आदेश के खिलाफ आरके अरोड़ा ने औद्योगिक विकास विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव के यहां अपील की। उस वक्त के प्रमुख सचिव ने नियमों को दरकिनार करते हुए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का आदेश रद्द कर दिया था।"

प्रमुख सचिव ने अवैध निर्माण को जायज बताया
एके सिंह कहते हैं, "प्रमुख सचिव ने सुपरटेक बिल्डर के अवैध घरों को नियमित बताते हुए अतिरिक्त एफएआर देने का आदेश नोएडा अथॉरिटी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी को भेज दिया।" आरके सिंह आगे कहते हैं, "मैंने प्रमुख सचिव के आदेश को साल 2016 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी।  हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई की ओर दोबारा प्रमुख सचिव को रिवीजन करने का आदेश दिया। अभी यह रिवीजन ऑर्डर शासन में लंबित पड़ा हुआ है। मैं प्राधिकरण और शासन स्तर पर हो रही हीला-हवाली के खिलाफ 2019 में हाईकोर्ट गया हूं। हाईकोर्ट में याचिका लंबित चल रही है।" आरके सिंह आगे कहते हैं, "सुपरटेक लिमिटेड के चेयरमैन आरके अरोड़ा ने किसी कानून का पालन नहीं किया है। उन्होंने मनमर्जी की है। अपने हिसाब से अथॉरिटी और औद्योगिक विकास विभाग के नियमों को बदलवाया है। नोएडा का ट्विन टावर और ग्रेटर नोएडा की जार हाउसिंग सोसायटी तो सामने आने वाले मामले हैं। अगर सुपरटेक कंपनी के सारे प्रोजेक्ट की जांच करवाई जाए तो ऐसे ही तमाम कारनामे सामने आएंगे। इस कंपनी ने ना नियमों का पालन किया और ना गुणवत्तापूर्ण निर्माण किया है। सभी योजनाओं में नियमों और निर्माण की जांच की जानी चाहिए।"

यमुना प्राधिकरण के सीईओ को हटवाया
गौतमबुद्ध नगर में लम्बे अरसे से काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार आदेश भाटी बताते हैं, "सुपरटेक कंपनी की ताकत का एहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में भी इस कंपनी के हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में मनमानी व धांधली की गई हैं। जब यह बात खुलकर सामने आई तो तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने जांच का आदेश दे दिया। दरअसल, कंपनी ने निर्धारित एफएआर से ज्यादा उपयोग करते हुए अवैध निर्माण किया है। इसे जायज ठहराने के लिए कंपनी की ओर से एक फर्जी शासनादेश यमुना अथॉरिटी में दाखिल किया गया। तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने इस शासनादेश की जांच करवाई। जिसमें शासन ने बताया कि ऐसा कोई शासनादेश सुपरटेक के हक में जारी नहीं किया गया।" आदेश भाटी ने आगे बताया कि सीईओ ने फर्जी शासनादेश को गंभीरता से लिया और सुपरटेक कम्पनी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी। इस एफआईआर पर आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। पूरे मामले को रफा-दफा कर दिया गया है। इतना ही नहीं एफआईआर दर्ज होते ही सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा के दबाव में तत्कालीन सीईओ का तबादला यमुना प्राधिकरण से कर दिया गया था।"

कुल मिलाकर साफ है कि भले ही उत्तर प्रदेश में सरकारें बदलती रहीं लेकिन सुपरटेक के आरके अरोड़ा के रसूख में कोई कमी नहीं आई। ट्विन टावर मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक्शन हो रहा है। अफसर अब भी चुप्पी साधकर बैठे हैं। अवैध निर्माण करके सैकड़ों घर खरीदारों से धोखाधड़ी और जालसाजी करने वाले आरके अरोड़ा के खिलाफ बस जांच चल रही है। दूसरी तरफ शहर को गर्त में पहुंचने वाले रिटायर आईएएस मोहिंदर सिंह के खिलाफ तो जांच भी शुरू नहीं हो रही है। आम आदमी का सवाल यही है, ट्विन टावर तो गिर गए लेकिन आरके अरोड़ा और मोहिंदर सिंह पर गाज कब गिरेगी?

अन्य खबरें