Mahashivratri 2021: महादेव के दूल्हा बनने से पहले जानिए प्रदेश के किस मंदिर में निभाई गई 327 साल पुरानी परंपरा, बारात के एक दिन पहले आखिर मंदिर में क्यों जुट गई भक्तों की भीड़

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Tricity Today | महाशिवरात्रि से पहले तैयारी



महादेव के दूल्हा बनने से पहले प्रदेश के गंगा किनारे इस प्राचीन मंदिर में शिवरात्रि के एक दिन पहले 327 साल पुरानी परंपरा निभाई गयी। परंपरा निभाने के लिए भक्तों की भारी भीड़ मंदिर में जुटी। इसे देखते हुए मंदिर कमेटी की ओर से कुछ देर के लिए भक्तों की भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए मंदिर के कपाट भी बंद करने पड़े।

कानपुर के नवाबगंज स्थित प्राचीन जागेश्वर महादेव मंदिर में बुधवार को महादेव को हल्दी लगाई गई। महादेव को हल्दी लगाए जाने के साथ ही महिलाओं ने मां पार्वती के हाथों में मेहंदी रचाई। गंगा किनारे बसे इस प्राचीन मंदिर में यह परंपरा सैकड़ों वर्षो से निभाई जा रही है। इस तरह से महाशिवरात्रि पर्व की शुरुआत भी मंदिर में हो गई। जागेश्वर महादेव मंदिर कमेटी के मंत्री प्राण श्रीवास्तव ने जानकारी दी कि मंदिर में शिवरात्रि का पर्व लगातार दो दिन और 2 रात मनाया जाता है। मां पार्वती के हाथों में मेहंदी रचने के साथ ही महिलाएं पूरी रात जागरण करती हैं।



इस जागरण में महिलाएं खुद ढोलक और मंजीरे के साथ पूरी रात महादेव और माता पार्वती के विवाह से जुड़े हुए भजन गाती हैं। रात्रि जागरण के दौरान पुरुष भक्त महादेव के अरघे के पास मौजूद रहकर भक्ति में लीन होकर लोकगीत और भजन गाते हैं। इसके बाद भोर में महादेव के मंदिर के पट भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं। महाशिवरात्रि के दिन गोधूलि तक महादेव के दर्शन कराए जाते हैं। इसके बाद महादेव का श्रृंगार किया जाता है।

दो रात होता है जागरण : महाशिवरात्रि की रात में भी महादेव के विवाह संबंधी सभी रस्में पूरी कराई जाती हैं। इस तरह से दूसरी रात भी भक्त पूरी रात जागते हुए शिव जी की भक्ति में लीन होकर काटते हैं। महादेव के विवाह की नसों में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में भक्त पूरी रात मंदिर परिसर में मौजूद रहते हैं। 2 दिन रात्रि जागरण के बावजूद तीसरे दिन दोपहर तक मंदिर परिसर से बचने वाले प्रसाद को लेने के लिए भी बड़ी संख्या में भक्त मौजूद रहते हैं।



इस बार बदले गए हैं नियम : मंदिर कमेटी की ओर से इस बार पूजन एवं दर्शन के कई नियम बदले गए हैं। खास बात यह है कि अधिक भीड़ होने के चलते इस बार कमेटी की ओर से मुख्य मंदिर के भीतर के एक बार में केवल 15 भक्तों को ही प्रवेश दिए जाने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा कोविड-19  ध्यान में रखते हुए मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूल और दूध संबंधी नियमों में भी बदलाव किया गया है।

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