जहां रक्षाबंधन पर पड़ी थी मोहम्मद गौरी की काली छाया, उसी दिन से ...

गाजियाबाद में एक गांव ऐसा भी : जहां रक्षाबंधन पर पड़ी थी मोहम्मद गौरी की काली छाया, उसी दिन से ...

जहां रक्षाबंधन पर पड़ी थी मोहम्मद गौरी की काली छाया, उसी दिन से ...

Tricity Today | सुराना गांव की फाइल फोटो

Ghaziabad News : दिल्ली से सटे गाजियाबाद में एक गांव ऐसा है जहां के लोग रक्षाबंधन का त्यौहार नहीं बल्कि इस दिन शौक मनाते हैं। बताया जाता है ‌कि राजस्थान से आकर मुरादनगर के पास हिंडन किनारे पृथ्वीराज चौहान के वंशजों ने डेरा डाल लिया था। सोन सिंह राणा की अगुवाई में यहां पहुंचे पृथ्वीराज चौहान के 100 वंशजों के कारण गांव का नाम पड़ गया - सौ राणा। यही बाद में सुराना हो गया।

हिंडन किनारे आकर बस गए थे पृथ्वीराज चौहान के वंशज
1191 में तराइन के पहले युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज के हाथों मात खाई थी लेकिन 1192 में ही तराइन का दूसरा युद्ध मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच हुआ था, जिसमें मोहम्मद गौरी की जीत हुई थी। इसी दौरान पृथ्वीराज चौहान के वंशज इधर ऊधर छिटक गए। सौ लोग गाजियाबाद में हिडन किनारे आ बसे।

गांव में पहुंचकर अंधी हो जाती थी गौर की सेना
मोहम्मद गौरी की सेना पीछा करती हुई आयी। उसने कई बार गांव पर हमला किया, लेकिन हर बार अंधी होकर रह गई। दरअसल मोहम्मद गौरी की सेना गांव में घुसते ही अंधी हो जाती थी। बताया जाता है कि मोहम्मद गौरी को यह बात पता चली कि इस गांव की रक्षा खुद देवता करते हैं, इसलिए सेना गांव में घुसते ही अंधी हो जाती है। उनके रहते गांव का बाल भी बांका नहीं किया जा सकता।

रक्षाबंधन पर गंगास्नान करने गए थे देवता
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि रक्षाबंधन के दिन देवता गंगा स्नान करने चले गए थे, जिसकी सूचना मोहम्मद गौरी को लग गई और उसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया था। महावीर सिंह यादव ने बताया कि बुजुर्गों से मिली जानकारी के मुताबिक सन 1206 की बात है। रक्षाबंधन के दिन हाथियों द्वारा मोहम्मद गौरी ने गांव पर आक्रमण किया था।

पूरे गांव को हाथियों ने रौंद दिया था
पता लगाया गया कि रक्षाबंधन के मौके पर देवता गंगा स्नान के ‌लिए जाते हैं। बस मोहम्मद गौरी की सेना ने उसी दिन हमला कर दिया और बड़ी संख्या में बच्चों, बड़ों और महिलाओं को हाथियों से रौंदवा दिया। गांव से केवल एक महिला जसकौर अपने मायके में होने के कारण बच गई थी। उस समय जसकौर गर्भवती थी। उसने दो बच्चों को जन्म दिया था, उनका नाम रखा गया लक्की और चुंडा। वो दोनों बच्चे बड़े होकर अपने गांव में लौटे और इसे फिर से आबाद किया लेकिन उसके बाद गांव में कभी रक्षाबंधन का त्यौह‌ार नहीं मनाया गया। तभी से रक्षाबंधन का त्यौहार यहां अपशगुन माना जाने लगा। गांव वाले इस दिन को काला दिन मानते हैं।

गांव में है 20 हजार की आबादी
अब सुराना गांव की आबादी 20 हजार से अधिक है। इस गांव में सबसे ज्यादा छाबड़िया गौत्र के लोग हैं, जिनका उदगम अलवर के पास राजस्थान से माना गया है। सुराना गांव निवासी छाबड़िया राहुल सुराना ने बताया कि 12वीं सदी में राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह राणा ने हिंडन नदी के किनारे डेरा डाला था. जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते हैं, तो उसने इस गांव में पर हमला करा दिया था।

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