Greater Noida News : नोएडा और ग्रेटर नोएडा की मुख्य कार्यपालक अधिकारी रितु महेश्वरी (Ritu Maheshwari IAS) के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक आदेश दिया है। जिसमें उनके वेतन से 10,000 रुपये काटने का आदेश दिया गया है। वैसे तो यह मामला कुछ खास नजर नहीं आता लेकिन एक सरकारी मुलाजिम के लिए यह सजा से कम नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर रितु महेश्वरी एक बिल्डर की ओर से दाखिल अवमानना याचिका की चपेट में कैसे आ गईं? रितु महेश्वरी के खिलाफ आए इस आदेश के बाद ट्राईसिटी टुडे ने मामले को समझने की कोशिश की। इस पड़ताल में परत-दर-परत चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं।
यह ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का बड़ा घोटाला
बड़ी बात यह है कि जिस मामले में रितु महेश्वरी को यह सजा दी गई है, वह अपने आप में ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण का एक बड़ा घोटाला है। प्राधिकरण के अफसरों, कर्मचारियों और बिल्डर की मिलीभगत के चलते ना केवल मौजूदा सीईओ को परेशानी उठानी पड़ रही है बल्कि आम आदमी की गाढ़ी कमाई को फर्जीवाड़े के जरिए लूटा गया है। आज से हम इस पूरे घोटाले को लेकर एक विशेष समाचार श्रंखला शुरू कर रहे हैं। जिसके जरिए आपको बताएंगे कि किस तरह ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण में तैनात रहे अफसरों ने अपने चहेते बिल्डरों के साथ मिलकर इस 'गोल्डन इंस्टिट्यूशन' को लूटा है। यूं ही ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी आज 7,000 करोड़ रुपए के कर्ज तले नहीं दब गया।
कैसे हुआ यह महाघोटाला
इस महाघोटाले की शुरुआत 1 मार्च 2011 को शुरू हुई, जब ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने स्पोर्ट्स सिटी प्रोजेक्ट लॉन्च किया। स्पोर्ट सिटी के तहत 5,26,540 वर्ग मीटर जमीन का आवंटन किया जाना था। यह प्लॉट ग्रेटर नोएडा वेस्ट के सेक्टर टेकजोन-4 में था। इस स्कीम के नियम-कायदे जानबूझकर कुछ इस तरह बनाए गए, जिनके जरिए अपने चहेतों को फायदा पहुंचाया जा सके। मामूली, छोटी-छोटी और नई-नवेली कंपनियों को अरबों रुपए की जमीन देने का रास्ता निकाला गया। इसके लिए सहूलियत दी गई कि कंपनी या कंपनियों का कंसोर्सियम मिलकर स्पोर्ट सिटी का आवंटन हासिल कर सकता है। यह स्कीम अपने आप में एक फर्जीवाड़ा था। इसकी दो महत्वपूर्ण वजह हैं।
1. शहर में हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए जमीन नहीं थी
उस वक्त ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण मास्टर प्लान-2021 के तहत काम कर रहा था। मास्टर प्लान-2021 के तहत शहर में 22,255 हेक्टेयर जमीन पर डेवलपमेंट किया जाना था। इसमें हाउसिंग योजनाओं के लिए अधिकतम क्षेत्रफल 5,000 हेक्टेयर निर्धारित किया गया था। आवासीय सुविधाओं के लिए आरक्षित यह पूरी जमीन स्पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट लॉन्च करने से पहले ही प्राधिकरण बिल्डरों को बेच चुका था। लिहाजा, इससे ज्यादा जमीन ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए प्राधिकरण आवंटित नहीं कर सकता था। प्राधिकरण के तत्कालीन अफसरों ने मास्टर प्लान-2021 का उल्लंघन किया। स्पोर्ट सिटी जैसी परियोजना लॉन्च करके उसमें 28% जमीन ग्रुप हाउसिंग के नाम पर रिजर्व कर दी गई। यही वजह थी कि इस प्लॉट का साइज 5,26,540 वर्ग मीटर रखा गया था। ताकि ग्रुप हाऊसिंग के लिए अच्छा-खासा क्षेत्रफल मिल जाए। बाकि 70% प्रतिशत जमीन पर स्पोर्ट्स एक्टिविटी और 2% जमीन कमर्शियल यूज के लिए रखी गई।
2. एनसीआर प्लानिंग बोर्ड में स्पोर्ट्स सिटी जैसी सुविधा नहीं
प्राधिकरण के अधिकारियों ने दूसरा सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा एनसीआर प्लानिंग बोर्ड के कायदों को दरकिनार करते हुए किया। दरअसल, एनसीआर प्लानिंग बोर्ड के प्लान में स्पोर्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट की कोई मौजूदगी नहीं है। लिहाजा, यह पूरी तरह फर्जी लैंड एलॉटमेंट कैटेगरी थी। दरअसल, इसका मकसद केवल अपने चहेते बिल्डरों को चोर रास्ते से लाखों वर्ग मीटर जमीन ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं के लिए देना था।
बैलेंसशीट घोटाला किया गया
यह स्पोर्ट्स सिटी प्रोजेक्ट हासिल करने के लिए तीन कंपनियों ने एक कंसोर्टियम बनाया। जिसमें एमएमआर कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड, एनकेजी इन्फ्राट्रक्चर लिमिटेड और एडवांस कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड शामिल हुईं। इन तीनों कंपनियों के कंसोर्सियम ने स्पोर्ट सिटी का आवंटन हासिल करने के लिए आवेदन किया। यह स्कीम 23 मार्च 2011 को केवल 20 दिनों में बंद कर दी गई। स्कीम के ब्रोशर में कंपनी या कंसोर्सियम के लिए कुछ शर्ते हैं। जिनके मुताबिक 31 मार्च 2010 तक इनकी नेटवर्थ कम से कम 50 करोड़ रुपये होनी चाहिए। कम से कम 7.50 करोड़ रुपए का सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट देना था। इन कंपनी या कंसोर्सियम का कम से कम टर्नओवर 200 करोड़ रुपए होना चाहिए था। यह टर्नओवर रियल स्टेट एक्टिविटी के जरिए हासिल किया जाना चाहिए था। पिछले 3 वर्षों में यह टर्नओवर होना चाहिए था।
सबसे छोटी कंपनी को बनाया गया बॉस
टेंडर में इन तीनों कंपनियों ने अपनी बैलेंस शीट लगाईं। जिनके मुताबिक 31 मार्च 2013 को एमएमआर कंस्ट्रक्शन कंपनी की पैड-अप कैपिटल केवल 12.50 रुपये थी। एनकेजी इन्फ्राट्रक्चर लिमिटेड की पैड-अप कैपिटल 55,58,70,140 रुपये थी। एडवांस कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड की पैड-अप कैपिटल 20 करोड़ रुपये थी। इस कंसोर्सियम की खास बात यह रही कि सबसे छोटी मामूली सी कंपनी एमएमआर कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड लीड मेंबर बनी। जबकि दोनों बड़ी-बड़ी कंपनियां रिलीवेंट मेंबर बनी थीं। इससे साफ जाहिर होता है कि यह बोगस स्कीम थी। जिसका मकसद एमएमआर कंस्ट्रक्शन कंपनी को किसी भी तरह अरबपति बनाना था। कंसोर्टियम के नाम पर कौड़ियों की कीमत वाली कंपनियों के लिए करोड़ों की बैलेंसशीट वाली कंपनियों का गलत इस्तेमाल किया गया। एक छोटी सी बिना कारोबार वाली कंपनी को अरबों रुपए की जमीन दे दी गई।
टेंडर में मनमाने नियम बनाए गए
टेंडर की शर्तों में था कि इन कंपनियों को वित्त वर्ष 2007-08, और 2008-09 और 2009-10 की नेटवर्थ बैलेंस शीट उपलब्ध करवानी होगी। कंसोर्सियम की लीड कंपनी एमएमआर कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड तो 4 अगस्त 2008 को रजिस्टर्ड करवाई गई थी। मतलब, लीड कंपनी का कार्यकाल ही टेंडर की शर्तों को पूरा नहीं कर रहा था।
कमजोर नियम बनाए और उन्हें भी पूरा नहीं किया
टेंडर में यह शर्त भी थी कि कंसोर्टियम की कंपनियों में खासतौर से लीड मेंबर को पिछले 5 वर्षों का अनुभव साझा करना होगा। जिसमें कम से कम दो पूरे किए गए प्रोजेक्ट की डिटेल देनी होगी। पिछले 5 वर्षों के दौरान किए गए काम का ब्यौरा और उसके कीमत बतानी होगी। कम से कम 50 लाख स्क्वायर फीट स्पेस का विकास कर चुकी हों। ऐसे प्रोजेक्ट के कंपाउंडिंग वर्क सर्टिफिकेट और कंपलीशन सर्टिफिकेट अथॉरिटी को उपलब्ध करवाने होंगे। एमएमआर कंस्ट्रक्शन कंपनी तो भूमि आवंटन के वक्त 3 साल पुरानी भी नहीं थी। ऐसे में इस कंपनी के पास 3 साल की बैलेंस शीट और 5 साल का कार्यानुभव होना असंभव था। इसके बावजूद कंसोर्सियम के नाम पर यह भूखंड आवंटन कर दिया गया। हद तो तब हुई जब इस कंसोर्सियम की सबसे बड़ी कंपनी एनकेजी इन्फ्राट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड भूमि आवंटन के कुछ दिन बाद ही कंसोर्सियम से बाहर हो गई। इसके बावजूद अथॉरिटी के जिम्मेदार अफसर और कर्मचारी आंखें मूंदकर बैठे रहे। उन्होंने एकबार भी यह नहीं सोचा कि आखिर इतना बड़ा प्रोजेक्ट मामूली सी कंपनी पूरा कैसे करेगी?
आवंटन के 10 महीने बाद बनी कंपनी सबसे बड़े हिस्से की मालिक
एनकेजी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के बाहर होने के बाद एक नई कंपनी यूफोरिया स्पोर्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड कंसोर्सियम में शामिल कर दी गई। इसे 'लीड स्पेशल परपज कंपनी' बताया गया। यहां आपको यह बताना जरूरी है कि यूफोरिया स्पोर्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड 28 नवंबर 2011 को रजिस्टर्ड करवाई गई थी। मतलब, भूमि आवंटन होने के 10 महीने बाद यह कंपनी बनाई गई। जब यह कंपनी कंसोर्टियम में शामिल की गई, तब इसकी पेड-अप कैपिटल महज 50 लाख रुपये थी। आपको यह जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस कपनी के डायरेक्टर भी एमएमआर कंस्ट्रक्शन कंपनी से ताल्लुक रखने वाले दो लोग शीतुल धीरजलाल पटेल और संजीव कुमार थे। इन दोनों और एमएमआर समूह का रिश्ता अगली खबरों में आपको बताएंगे।
50% और 90% सस्ती जमीनें मिल गईं
यूफोरिया स्पोर्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड के नाम 70% जमीन कर दी गई, जिस पर स्पोर्ट सिटी से जुड़ी स्पोर्ट्स एक्टिविटीज का विकास करना था। इस तरह महज 50 लाख रुपये की औकात वाली कंपनी के नाम 2,36,37,13,575 रुपए की जमीन आ गई। आपको यह बताना भी जरूरी है कि स्पोर्ट सिटी के लिए कंसोर्सियम को जमीन का आवंटन महज 6,715 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से किया गया था। जबकि उस वक्त ग्रुप हाउसिंग परियोजनाओं के लिए जमीन का आवंटन 12,500 रुपये वर्ग मीटर की दर से किया जा रहा था। इन लोगों को 1,32,431 वर्ग मीटर जमीन भी इसी आधी कीमत पर और कमर्शियल यूज के लिए करीब 10,530 वर्ग मीटर जमीन महज 10% कीमत पर मिल गई।
कल की खबर में पढ़िए
कल हम आपको बताएंगे किस तरह एमएमआर कंस्ट्रक्शन कंपनी के निदेशकों ने रातों-रात कौड़ियों की कीमत वाली कंपनियों के नाम अरबों रुपए की जमीन हासिल कर लीं। इस मामले में भूमि आवंटन से लेकर रजिस्ट्री और उसके बाद प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में बड़े पैमाने पर धांधली व फर्जीवाड़ा किया गया है। प्राधिकरण और सरकार को अरबों रुपए का चूना लगाया गया है। बड़ी बात यह हैं कि करीब 12 वर्षों से यह घोटाला अब तक चल रहा है। अथॉरिटी के अफसरों या कर्मचारियों को समझ नहीं आ रहा है? या समझकर नजरअंदाज किया जा रहा है?
ट्राईसिटी टुडे के पास इस महाघोटाले से जुड़े तमाम दस्तावेज उपलब्ध हैं। एमएमआर ग्रुप के निदेशकों से उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई लेकिन उनके संपर्क नंबर बंद जा रहे हैं। दूसरी तरफ ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के जिम्मेदार अफसर कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं।